Kaal Kothri - 3 in Hindi Horror Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | काल कोठरी - 3

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काल कोठरी - 3

काल कोठरी----------(3) धारावाहिक।

सच्ची घटनो पर आधारित ये उपन्यास की तीसरी कड़ी.... आग वही लगती है यहां कुछ पहले से सुलगता हो... जगल से गुज़र गए तो जिंदा आ गए उसकी रहमत के सिवा कुछ नहीं होगा। नाग से दोस्ती कौन रखते है, जो या तो खुद जहरीले हो या फिर मौत आयी हो। कुछ नहीं समझे होंगे आप लोग... जानता हूं। चलो देखे आगे डाबे को ------

दो चाये टेबल पर आ गयी.... फिर दीपक बोला " सर आप सच मानेगे या नहीं, मै नहीं जानता। "

घोसले बोले ----" कुछ बोलोगे फिर ही कहुगा। "

दीपक ने बात शुरू से अंत तक सुना दी। फिर घोसले बोला " सिर्फ मुझे ही पता है। "

"हाँ सर " दीपक बोला।

"कया सोचते हो.... दीपक, कि ये हत्या भुत प्रेत ने की "

"नहीं दोस्त " ----- घोसले रुक कर बोला, " तुम पर इल्जाम आएगा। "

"---प्रेक्टिकल ,अदालत को तफतीश करनी होती है ।"  घोसले रुक के बोला, " जेंटलमैन, तुम शरीफ इंसान और बच्चो को पालने वाले केवल एक ही हो घर को चलाने वाले। "  घोसले ने पूछा।

"हाँ सर। " घोसले को चाये का आख़री घुट पीते हुए उसने जवाब दिया।

" मेरी रिटायरमेंट दो महीने मे होने वाली है। " उसने कहा।

" सुनो दीपक ---- इस  झमेले मे मत पड़ो। "  दीपक को समझाया था उसने।

" मेरी मानो इसका चश्म दीं गवाह भी मत बनना " समझाने चक्र मे घोसले ने उसको बचाते हुए कहा था।

"जी सर " दीपक थोड़ा अटक के बोला " आप सही कह रहे है। " घोसले ने फिर कहा ----" ये बहुत क्रूल ड्यूटी है दीपक, क़ानून नहीं, यहां ज़िद चलती है... इसलिए तुम यहां से निकलो.. हाँ मुझे आपना कार का ड्राइवग कार्ड देते जाना, कभी जरूरत लगे तो बात कर लुगा, पफ तुम मत आना, पुलिस स्टेशन -----"

"जी सर ---- आप जैसे अफसर इस देश मे कहा, मिलते है,

आपका बहुत धन्यवाद देता हूँ।"

दीपक ने दोनों हाथ जोड़ के धन्यवाद किया।

और घर को रुखसत हो गया। घर से उसने देखा बहुत कॉल आयी हुई थी। वो सीधा ही घर को चला।

उसके चेहरे पे मुस्कान थी, एक भय रहत मुस्कान।

जैसे उसने जिगर का दुःख सुना कर कम कर लिया हो। वो उस अफसर के बारे मे सोच रहा था, जो एक नसीयत देकर दीपक को भयमुक्त कर चुका था। ऐसे अफसर कहा मिलते है आज के समय मे।

कुछ विचार करता हुआ वो फ्लेट मे जा चुका था। घर मे घुसते ही जोर शौर पूरा था।

" पापा आप  कहा चले गए थे। " बबलू ने कहा था।

" लो आप किधर से आ रहे है, आपने फोन भी नहीं उठाया, कयो?? "

"बिज़ी था थोड़ा "

"शाम की रोटी ही सीधी खा लीजिये।"

" हाँ ठीक है ------ एक कप चाये का दें दोगी..... "

"हाँ कयो नहीं ---- नौकररानी हूँ " मुँह बनाते हुए रोजा ने कहा।

"चलो रहने दो... नौकररानी कौन कहता है तुझे। "

"मेरे नसीब " रोजा ने थोड़ा हसते हुए कहा था।

"लो एक कप चाये -----"

"धन्यवाद, रोजा " चाये का कप पकड़ते हुए कहा।

सोफे पर ही वो लेट गया। दीपक की कब आँख लग गयी, कुछ पता नहीं, रोजा ने उनका मोबाइल ऊपरी जेब से निकाल के ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया था।

कब दिल्ली रात के अँधेरे मे चली गयी.... समय भाग रहा था।

(चलदा)------------------- नीरज शर्मा