Kaal Kothri - 8 in Hindi Horror Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | काल कोठरी - 8

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काल कोठरी - 8

काल कोठरी उपन्यास की सत्य कहानी ------

                                  कहने को जो मर्जी किसी को बोलने दो, बोले हम किसी का मुँह नहीं पकड़ सकते। बहुत बातो का सामना करना पड़ता है जिम्मेदारी से, पर घोसले साहब केस को हेडल करते हुए आज पांचवे दिन मे चले गए थे ---- लापरवाह होने की मोहर लगना ही बाकी था... पर दीपक समय पे पहुंचा ही था.. फोटोग्राफरो ने घेर लिया था, पत्रकारों को कया जवाब दें.. कुछ सूझ ही नहीं रहा था। मरीजों से जयादा तो लोगों और पत्रकारों ने हॉस्पिटल को ठहराव बना लिया था। मकसद था कोने कोने से भी  वो किसी की इज़त तक भी उछालीं जाये, तो उनकी अख़बार खरीदी जाये। पत्रकार जयादा थे... घोसले जी से पूछ रहे थे, कितना कुछ.. वो बस यही सोच रहे थे कया जवाब दें। जवाब कया बनता है इसका... सोच कर बोलने मे वक़्त लगता है। मुनासिब यही कि बचा जाये।

                       " दीपक हेलो दीपक, बताओ ये कौन है ?

कोई जवाब बनता ही कहा है, वो भी कया बताये। मिलने कि बहुत कोशिश, पर डॉ को कह दिया गया, " डॉ अगर कोई मिले, तो कह देना मरीज कोमे मे है। "

" ये चड़ेल का कया चक्र है, डॉ जोशी जी आप ही बताये... " डॉ इतना सुनते ही भाग निकला। " देखिए  ऐसी कोई खबर, भाईयों जनता को भड़काने की मत छाप देना, कोई आप पर ही कोई केस कर दें। " पत्रकारों के लीडर यशवत ने निमरता से उच्ची आवाज़ मे कहा था। फिर कुछ हौसला कर के दीपक बोला " बे बनआद कुछ भी मत छापना... जो कुछ भी आपने सुनना है, वो एक एक्सीडेंट से जयादा कुछ नहीं है। बाते है बातो का कया, जितनी मर्ज़ी कर लो। " दीपक फिर चुप हो कर घोसले से एक कमरे मे चला गया। उस वक़्त  उसका कद पुलिस की लाइन मे काफ़ी बड़ा हो चूका था। पुलिस समझ चुकी थी, ये आदमी बात को छुपाना भी जानता है, भरोसे योग है।

                            कमरे की चटकनी लगा के घोसले से दीपक ने कहा " घोसले जी आपकी रिटायमेंट इसी महीने है। बात को इधर ही खत्म करो। "  घोसले सोचने पर मजबूर था... "मुसीबत तो डॉ के रूम मे बैठी है, जनाब। "

"कया कौन है ? " दीपक एक दम से काँप गया था।

" हाँ, उसकी पत्नी और माँ  आयी हुई है... वो पर्स उसके हाथ मे है, मगर बॉडी कहा है, इसका कोई जवाब नहीं है।"

घोसले ने दो अल्फाज़ ऐसे बोले कि दीपक के पसीने छूट गए " अगर ये भी लेडी अगर मर गयी... तो केस तुम पर ही जोर डालेगा... कहता था ना बच्चा " मत पड़ो इस खेल मे " ------" दीपक ने जल्दी से चिटकनी खोली... गुस्से मे था.... आँखे एक दम टिक टिकी बाधे थी। " अब कहा जा रहे हो... "

                             "  कोई जवाब नहीं दिया उसने " वो सीधा ही डॉ के पास  एक बजुर्ग पत्रकार को ले गया था, जो सच है पता चल जाये, "दीपक ने कोई जुर्म नहीं किया।"  

                            " ----- वो बोला जा कर, डॉ साहब प्ल्ज़ मेरी बात सुने... कल मुझ पर ये केस आएगा, कयो न मै सच बता दू। अक्सर मेरी भी बीवी है, बच्चे है... काल कोठरी मेरे लिए नहीं, उसके लिए है जो स्टेचर पर लेटी हुई है। "

"---तुम्हारा मतलब ये खून उसने किया है, पर कयो ? "  उसकी पत्नी का सवाल था। "आओ दिखाता हूँ  " दीपक ने हेल्पर को धक्का दिया... "कहा है वो "

एकाएक सब चुप ----" वो बेहोशी  मे है। "

वो स्टेचर के करीब गया... उसने जोर से उसे झटका दिया... तभी कोई सिग्नल नहीं हुआ.. फिर सब चुप छा गयी। बुजुर्ग पत्रकार जैसे सहम डर सा गया हो।  दीपक जोर से चिलाया----" बोलो ---- रब का वास्ता ---- कुछ बोलो। " दीपक की आँखो मे आंसू थे। भय मे सिसकी ले रहा था।

तभी हरकत हुई..... ये आवाज़ भारी थी न मर्द की, न स्त्री की... दोगली भय जनक आवाज़। " किसी को भी छोड़ोगी नहीं... दीपक तुमने मुझे उठाया है, तुझे कदापि नहीं छोड़ोगी.... मुझे कोई नहीं जो मार सके... जो ज़हर मेरी नसों मे डॉ तुमने डाला है, सब को खत्म कर दूगी.. लेकिन तुम मार नहीं सकते।  दीपक तुम्हे नहीं छोड़ोगी..."

बस जो वो पत्रकार को लिखवाना और दिखाना चाहता था, बस उसने वो सब काम कर दिया था.... घोसले ने फिर उसे उकसायेया था, वो पागल समझ ही नहीं सका... जिम्मेदार वो अब खुद उस परिचत का बन चूका था, जो पहले उसे कोई नुकसान पुहचाना नहीं चाहती थी। ठहराव जिंदगी मे जरूर होना चाहिए। चाये थोड़ा ही हो... जल्दबाज़ी आदमी को जल्द खत्म कर देती है.... सच मे।

(चलदा )  ------------------------ नीरज शर्मा।