धीरु, रीमा, पूनम, खुशी, संतोष और सोनू—छह दोस्तों का एक पुराना ग्रुप था। कॉलेज के दिनों से ही एक-दूसरे के साथ हर खुशी और हर डर बांटने वाले ये दोस्त अब बड़े हो चुके थे। एक दिन छुट्टी के मौके पर, संतोष ने एक प्रस्ताव रखा—“क्यों न इस बार किसी रहस्यमय जगह की ट्रिप करें?” और सबने मजाक में एक पुराने खंडहरनुमा महल का नाम लिया—"काली हवेली"—जो शहर से दूर एक सुनसान पहाड़ी इलाके में था।
स्थानीय लोगों का कहना था कि वो महल भूतिया है, वहां कोई नहीं जाता, और जो गया, वो वापस नहीं आया। लेकिन युवा जोश और एडवेंचर के शौक में सबने हंसते हुए हामी भर दी। रीमा ने शुरू से ही मना किया था, लेकिन जब धीरु ने कहा, “मैं साथ हूं, डरने की क्या बात है?”, तो वह भी चलने को मान गई। रीमा, जो धीरु से दिल ही दिल में सच्चा प्यार करती थी, अपने डर से ज़्यादा उसके साथ होने को तरजीह दे बैठी।
सफर की शुरुआत हंसी-मजाक से हुई, कैमरे में तस्वीरें, मोबाइल में मस्ती भरे वीडियो, और मन में उत्साह की लहरें थीं। लेकिन जैसे-जैसे वे महल के करीब पहुंचे, आसमान पर बादल घिरने लगे, हवा में अजीब सी सरसराहट और वातावरण में रहस्यमय सन्नाटा छा गया।
काली हवेली एक पुरानी लेकिन शाही इमारत थी, जिसके ऊंचे दरवाज़े, टूटे-फूटे झूमर और जाले लगे बरामदे किसी खामोश चीख की तरह सिहरन पैदा कर रहे थे। उन्होंने दरवाजा धक्का देकर खोला, और जब अंदर कदम रखा, तो एक ठंडी हवा का झोंका आया, मानो हवेली ने अपनी बांहों में उन्हें कैद कर लिया हो।
अंदर की दीवारों पर उकेरे गए चित्र, अजीब सी भाषा में लिखे कुछ मंत्र और हर कोने में डरावनी परछाइयों का अहसास था। लेकिन दोस्त हंसते रहे, मजाक करते रहे। धीरु ने सबको बोला कि “डर सिर्फ एक भावना है, हम इंसान हैं, भूत नहीं।”
रात करीब 9 बजे उन्होंने हवेली में ही डेरा डालने का फैसला किया। उन्होंने एक बड़ा हॉल चुना, जिसमें एक पुराना फर्श, फटी हुई कालीनें और एक बड़ा टूटा हुआ आईना था। तभी अचानक हवा की गति बढ़ी और झूमर हिलने लगा। रीमा ने डरते हुए धीरु का हाथ थामा और बोली, “कुछ तो गड़बड़ है।”
धीरे-धीरे अजीब घटनाएं शुरू हुईं। सोनू, जो सबसे जिद्दी और मजाकिया था, बोला कि वह ऊपर की मंजिल घूम कर आता है। बाकी सब नीचे इंतज़ार करते रहे। पर 15 मिनट बीत गए और सोनू वापस नहीं आया। सब ऊपर की ओर दौड़े। वहां सोनू एक कमरे में बेसुध पड़ा था। जब उसे उठाया गया तो उसकी आंखें पूरी तरह सफेद थीं और शरीर कांप रहा था। उसने जो कहा, उसने सबके रोंगटे खड़े कर दिए—"यहां कोई है... बहुत सारे हैं... हमें जाने नहीं देंगे।”
सभी डर गए, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। हवेली के दरवाज़े खुद-ब-खुद बंद हो गए। उन्होंने कई बार कोशिश की, लेकिन बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। तभी कमरे की दीवारों से खून बहने लगा, और एक रहस्यमयी औरत की चीखें सुनाई देने लगीं।
खुशी, जो सबसे छोटी और चंचल थी, रोने लगी। उसने भागते हुए बाहर जाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने एक दरवाज़ा खोला, वह हवा में उठी और दीवार पर ज़ोर से टकरा गई। उसकी चीख सुनते ही सब दौड़े, लेकिन अब वह बिल्कुल शांत थी। उसकी आंखें खुली थीं लेकिन ज़िंदगी जा चुकी थी।
अब रह गया था पांच का ग्रुप। रीमा बुरी तरह कांप रही थी और धीरु उसे लगातार संभाल रहा था। तभी पूनम बोली, “इस हवेली में किसी आत्मा का वास है। हमें कुछ करना होगा।” उन्होंने हवेली के पुराने दस्तावेज़ तलाशने शुरू किए और एक तहखाने में उन्हें एक डायरी मिली।
उस डायरी में लिखा था—“मैं राधिका, इस हवेली की अंतिम रानी हूं। मेरे पति ने मुझे धोखा दिया, और मेरी आत्मा को इस हवेली में कैद कर दिया। अब मैं हर उस आत्मा को बुलाती हूं जो प्रेम, विश्वास और दोस्ती पर भरोसा करती है। मैं उन्हें आज़ाद नहीं करूंगी, जब तक कोई मेरी पीड़ा समझ कर मेरी मुक्ति न करे।”
संतोष ने जब यह पढ़ा, तो उसका माथा चकराया। वह चिल्ला कर बोला—"यह सब बकवास है!" और उसी क्षण वह हवा में उठा और छत से नीचे गिर पड़ा। उसकी गर्दन मुड़ गई थी।
अब सिर्फ धीरु, रीमा और पूनम बचे थे। पूनम बोली, “हम इस आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।” उन्होंने मंत्रों का सहारा लेने की कोशिश की, लेकिन तभी पूनम के शरीर में खुद राधिका की आत्मा समा गई। उसकी आंखें लाल हो गईं, और आवाज बदल गई।
अब वह बोली, “तुम सबने मजाक उड़ाया मेरी पीड़ा का! अब तुम भी कैद रहोगे।” उसने धीरु की ओर हाथ बढ़ाया, लेकिन रीमा ने अपने आंसुओं से भीगे हाथ जोड़कर कहा, “अगर तुमने कभी सच्चा प्यार किया है, तो हमें छोड़ दो... मैं अपने प्यार की कसम देती हूं, हमें आज़ाद कर दो।”
अचानक पूनम की आंखों से आंसू बहे। शायद आत्मा को पहली बार कोई इंसान का दर्द महसूस हुआ। एक पल के लिए हवेली हिल गई, बिजली चमकी और सब कुछ अंधेरे में डूब गया।
जब धीरु और रीमा की आंखें खुलीं, तो वे हवेली के बाहर थे। दरवाज़ा खुला हुआ था, हवा शांत थी, और दूर से सूरज की पहली किरणें आ रही थीं।
वे रोते हुए एक-दूसरे के गले लगे। रीमा ने धीरु से कहा, “मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। तुम्हारे लिए जान भी दे सकती थी।” धीरु ने रीमा का हाथ थामा और बोला, “शायद तुम्हारे सच्चे प्यार ने ही हमें बचा लिया।”
दोनों पीछे मुड़े, हवेली अब भी वैसी ही खड़ी थी—खंडहर, लेकिन शांत। बाकी सब अब नहीं थे। दोस्ती, मस्ती और विश्वास की उस रात की कीमत उन्होंने बहुत बड़ी चुकाई थी।
पर रीमा और धीरु जानते थे कि वे अब कभी भी अंधविश्वास या किसी की पीड़ा का मजाक नहीं उड़ाएंगे। उस दिन के बाद उन्होंने शहर छोड़ दिया और एक नई ज़िंदगी शुरू की—जहां हर सुबह उन्हें अपने ज़िंदा बच निकलने की अहमियत का एहसास दिलाती थी।
"खामोश महल का रहस्य" आज भी पहाड़ियों पर खड़ा है, और कहते हैं… अगर कोई सच्चे दिल से वहां प्रार्थना करे, तो राधिका की आत्मा रो देती है…
क्योंकि वो भी एक इंसान थी… जिसने बस प्यार मांगा था, मगर बदले में मौत और तन्हाई मिली थी।