Tere ishq mi ho jau fana - 32 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 32

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 32

नया दिन, नई उम्मीद

अगले दिन सुबह-सुबह ही समीरा अस्पताल पहुँच गई। उसने बुआ के लिए कुछ ताजे फूल लाए थे, जिन्हें देखकर अस्पताल के उदास माहौल में भी हल्की-सी ताजगी महसूस हो रही थी। कमरे में प्रवेश करते ही उसने देखा कि बुआ अंकिता खिड़की के बाहर टकटकी लगाए देख रही थीं। उनकी आँखों में गहराई थी, जैसे वे किसी गहरे विचार में खोई हुई हों।

"बुआ," समीरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखिए, मैं आज फिर आ गई। और आपके लिए ये फूल भी लाई हूँ। आपको पसंद हैं न गुलाब?"

अंकिता ने धीरे से उसकी ओर देखा, फिर बहुत हल्की मुस्कान उनके चेहरे पर आई। यह मुस्कान भले ही छोटी थी, लेकिन समीरा के लिए यह किसी जीत से कम नहीं थी।

"कैसी हो, बुआ?" समीरा ने उनके हाथों को प्यार से थाम लिया।

अंकिता ने गहरी सांस ली और धीरे से बोलीं, "थोड़ा... बेहतर महसूस कर रही हूँ।" उनकी आवाज़ अब भी कमजोर थी, लेकिन उसमें पहले से अधिक जीवन था।

समीरा ने उत्साह से कहा, "यही तो अच्छी बात है! आप देखना, आप जल्द ही पूरी तरह ठीक हो जाएंगी। और फिर हम घर चलेंगे। मैं आपके लिए आपके पसंदीदा पकवान बनवाऊंगी।"

अंकिता ने अपनी आँखें बंद कीं और हल्के स्वर में कहा, "घर... कितना समय हो गया घर गए हुए।"

समीरा को एहसास हुआ कि बुआ का मन अभी भी कहीं भटका हुआ है। वह उन्हें अच्छा महसूस कराने के लिए बोली, "बुआ, याद है जब मैं छोटी थी, तो आप मुझे कहानियाँ सुनाया करती थीं? मुझे अब भी वो दिन याद हैं। आप सबसे अच्छी कहानियाँ सुनाती थीं!"

अंकिता की आँखों में हल्का-सा चमक आई। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, "हाँ... तुम्हें परी-कहानियाँ बहुत पसंद थीं। हमेशा कहती थी कि राजकुमारी सबसे बहादुर होती है।"

समीरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "बिल्कुल! और आप भी मेरी राजकुमारी हैं, बुआ। आप सबसे बहादुर हैं। देखिए, आपने इतनी मुश्किलें झेली हैं, लेकिन अब धीरे-धीरे सब ठीक हो रहा है। आप कमजोर नहीं हैं। बस थोड़ा और समय लगेगा, लेकिन मैं हर दिन आपके साथ रहूंगी।"

अंकिता की आँखों में नमी आ गई, लेकिन इस बार यह सिर्फ दर्द के आँसू नहीं थे—इनमें थोड़ा सुकून भी था। समीरा की बातें उनके दिल तक पहुँची थीं।

"समीरा..." उन्होंने धीरे से कहा, "तुम बहुत समझदार हो गई हो।"

समीरा ने प्यार से उनका हाथ दबाया, "और आप बहुत हिम्मती हैं। हम दोनों एक-दूसरे को मजबूत बनाएंगे।"

कमरे में एक पल के लिए शांति छा गई, लेकिन यह उदासी वाली चुप्पी नहीं थी—यह सुकून और समझ की चुप्पी थी।

समीरा को यकीन था कि यह सफर लंबा है, लेकिन आज वह अपनी बुआ की आँखों में थोड़ी उम्मीद देख सकती थी। और यही उसके लिए सबसे बड़ी जीत थी।

खाली क्लासरूम में नई बातें

कॉलेज के बड़े से भवन में एक खाली क्लासरूम। खिड़की से आती हल्की धूप और बाहर से आती चिड़ियों की चहचहाहट माहौल को शांत बना रही थी। समीरा अपनी बुआ की यादों में खोई थी, उसकी आँखों में कई भाव उमड़ रहे थे—दुख, उम्मीद, और थोड़ा सुकून। तभी उसकी सहेली रिया कमरे में दाखिल हुई।

"अरे! यहाँ बैठी हो? कब से ढूँढ रही हूँ तुम्हें!" रिया ने हँसते हुए कहा और समीरा के पास वाली कुर्सी पर बैठ गई।

समीरा ने धीरे से मुस्कुराकर कहा, "बस, थोड़ा अकेले बैठना चाह रही थी।"

रिया ने उसकी आँखों की थकान को भाँप लिया। वह जानती थी कि समीरा पिछले कुछ दिनों से परेशान थी, लेकिन आज उसके चेहरे पर कुछ अलग था।

"क्या हुआ? बुआ कैसी हैं अब?" रिया ने नरम आवाज़ में पूछा।

समीरा ने गहरी साँस ली और कहा, "आज सुबह अस्पताल गई थी। बुआ पहले से बेहतर लग रही थीं। वो थोड़ी मुस्कुराईं भी... बहुत दिनों बाद।" उसकी आँखों में हल्की चमक आई।

रिया ने उत्सुकता से पूछा, "सच? ये तो बहुत अच्छी खबर है! लेकिन फिर भी तुम इतनी गहरी सोच में क्यों हो?"

समीरा खिड़की के बाहर देखने लगी, जैसे सही शब्द तलाश रही हो। फिर बोली, "पता है, जब मैं छोटी थी, तो बुआ मुझे कहानियाँ सुनाया करती थीं। उनकी कहानियों में हमेशा कोई न कोई बहादुर राजकुमारी होती थी, जो हर मुश्किल का सामना करती थी। आज जब मैं उनसे मिली, तो ऐसा लगा कि वो खुद एक कहानी का किरदार हैं—लेकिन उनकी कहानी में बहुत सारी तकलीफें थीं।"

रिया चुपचाप सुन रही थी। वह जानती थी कि यह वक्त सिर्फ बोलने का नहीं, बल्कि सुनने का भी है।

समीरा ने आगे कहा, "बुआ हमेशा दूसरों के लिए जीती रहीं, खुद के लिए कभी कुछ नहीं माँगा। लेकिन जब उन्हें हमारी सबसे ज़्यादा जरूरत थी, तो हम उन्हें अकेला छोड़ बैठे थे। मैं खुद भी तो कितने वक़्त से उनसे मिलने नहीं गई थी, बस फोन पर हाल-चाल पूछ लेना ही काफी समझ लिया।"

रिया ने उसके हाथ पर हाथ रखा, "लेकिन अब तो तुम उनके पास हो न? अब तो तुम उनके लिए सब कुछ कर रही हो?"

समीरा ने धीरे से सिर हिलाया, "हाँ, लेकिन सोचती हूँ कि क्या मैं देर से तो नहीं आई? क्या वो अकेलेपन के अंधेरे में बहुत ज्यादा वक्त बिता चुकी हैं?"

रिया ने उसकी बात पर गौर किया, फिर मुस्कुराते हुए बोली, "देख, जिंदगी में हर किसी का संघर्ष अलग होता है। हम कभी-कभी देर से समझते हैं कि कौन-से रिश्ते हमारे लिए सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं। लेकिन सबसे अहम बात ये है कि हमने उन्हें पहचान लिया। तुम अपनी बुआ के लिए जो कर रही हो, वही सबसे ज़्यादा मायने रखता है।"

समीरा उसकी बातों पर सोचने लगी। शायद रिया सही कह रही थी। शायद देर और गलतियों को पीछे छोड़कर अब सिर्फ आगे बढ़ना ज़रूरी था।

कुछ पल की शांति के बाद, रिया ने माहौल हल्का करने के लिए मुस्कुराते हुए कहा, "तो अब आगे क्या प्लान है? बुआ ठीक होते ही उन्हें कहीं घुमाने ले जाओगी?"

समीरा की आँखों में चमक आ गई। "हाँ! सोचा है, जब वो पूरी तरह ठीक हो जाएँगी, तो हम सब साथ में किसी शांत और सुंदर जगह जाएँगे। वो हमेशा पहाड़ों से प्यार करती थीं। शायद किसी हिल स्टेशन का प्लान बना लूँ।"

रिया ने मज़ाकिया लहजे में कहा, "वाह! मुझे भी ले चलना, मुझे भी पहाड़ों से प्यार है!"

समीरा हँस पड़ी, "बिलकुल! पर पहले बुआ को ठीक होना होगा।"

रिया ने हौसले से कहा, "और वो ठीक हो जाएँगी, क्योंकि उनके पास अब तुम्हारा प्यार और साथ है।"

उस खाली क्लासरूम में दोनों दोस्त बातें करते रहे। बाहर सूरज ढल रहा था, लेकिन समीरा के दिल में उम्मीद की नई किरण उभर रही थी। अब उसे यकीन था कि उसकी बुआ की कहानी में भी एक खूबसूरत मोड़ आने वाला है—जहाँ दर्द के पन्नों के बाद खुशियों का नया अध्याय शुरू होगा।