भूमिका
यह कहानी महाराष्ट्र के पश्चिमी घाटों में बसे एक दुर्गम और वीरान गाँव 'नागवाडी' की है, जो अब आधिकारिक रूप से एक परित्यक्त गाँव घोषित किया जा चुका है। कहा जाता है कि इस गाँव में एक ऐसा तांत्रिक यज्ञ हुआ था, जो ब्रह्मांड के नियमों के विरुद्ध था। तब से यहाँ का वातावरण भय, दर्द और मृत्यु की कराहटों से भरा हुआ है। यह एक सच्ची घटना पर आधारित कथा है, जिसे किसी ने भी पूरी तरह नहीं समझा—क्योंकि जो समझ गया, वह जीवित नहीं रहा।
शुरुआत: मृत्यु का निमंत्रण
2019 में पुणे यूनिवर्सिटी की 'मायथोलॉजी एंड पैरानॉर्मल रिसर्च टीम' के 5 सदस्य नागवाडी गाँव में रिसर्च के लिए पहुँचे। इस दल का नेतृत्व कर रही थी डॉक्टर रेखा शर्मा, जिनका सपना था कि वह भारत के सबसे रहस्यमय स्थानों पर रिसर्च कर एक पुस्तक लिखें। नागवाडी उनके रिसर्च का अंतिम स्थान बन गया—लेकिन हमेशा के लिए।
पहली झलक: जलते शव और उलटे पेड़
गाँव में घुसते ही दल को अजीब-सी दुर्गंध महसूस हुई—जैसे किसी जले हुए मांस की। रास्ते में एक पेड़ मिला, जिसकी सभी शाखाएँ नीचे की ओर झुकी हुई थीं और उसके नीचे मिट्टी में आधा जला शव पड़ा था, जिससे धुआँ निकल रहा था, लेकिन आसपास कोई आग नहीं थी।
रहस्यमयी मंदिर: जहाँ देवता नहीं, राक्षस पूजे जाते थे
गाँव के मध्य में एक खंडहर नुमा मंदिर था, जिसमें शिवलिंग की जगह एक राक्षस समान आकृति स्थापित थी। मंदिर की दीवारों पर खून से लिखे मंत्र थे, जो प्राचीन नागलिपि में थे। डॉ. रेखा ने जब उसका अनुवाद किया, तो उसमें लिखा था: "जो द्वार खोलेगा, उसे मुक्ति नहीं, मोक्ष नहीं—केवल शाश्वत पीड़ा मिलेगी।"
दूसरी रात: तांत्रिक की वापसी
रात के समय अचानक ज़मीन हिलने लगी, और मिट्टी के नीचे से तांत्रिक की एक काली, सड़ी-गली आकृति बाहर निकली। उसकी आँखें जल रही थीं, और वह हर सदस्य का नाम लेकर उन्हें श्राप दे रहा था। कैमरा अपने आप चलने लगा और एक विचित्र मंत्र की ध्वनि रिकॉर्ड होने लगी:
"काली रक्त की धार, नागिनी की पुकार,मृत्युलोक के द्वार खोलो, आओ तुम नरक पार।"
रहस्यमयी मौतें
अगले दिन, दल का एक सदस्य 'अमित' अपने टेंट में मृत पाया गया। उसकी आँखें बाहर निकली थीं, पूरा शरीर नीला पड़ चुका था और उसकी छाती पर किसी नाग की आकृति खुदी हुई थी।
नरक द्वार का उद्घाटन
तीसरी रात, रेखा और बाकी दो सदस्यों ने उस मंदिर में प्रवेश किया जहाँ गहराई में एक दरवाज़ा था, जिस पर साँपों और राक्षसों की मूर्तियाँ बनी थीं। दरवाज़ा खोलते ही ऐसा लगा जैसे हज़ारों आत्माएँ चीख रही हों। नीचे एक सुरंग थी, जहाँ की हवा में साँस लेना मुश्किल था। उन्होंने देखा कि वहाँ दीवारों पर मनुष्यों की खोपड़ियाँ लगी थीं, जिनमें आँखें अब भी चमक रही थीं।
भयानक सत्य
सुरंग के अंत में एक हॉल था जहाँ एक विशाल ताम्र पत्र पर खून से एक वाक्य लिखा था:
"जो सत्य जानता है, वह मरता है… पर जो देखता है, वह जीवित लाश बन जाता है।"
वहाँ उन्होंने उन आत्माओं को देखा, जिनका मांस गल रहा था, लेकिन वे जीवित दिख रही थीं। वे चीख रही थीं—"हमें मुक्ति दो! हमें मुक्ति दो!"
अंतिम भाग: आत्मा का करार
रेखा को एक आत्मा ने पकड़ा और कहा कि जब तक वह तांत्रिक के हवन को दोहराकर उसे पूर्ण न करे, तब तक सभी आत्माएँ इस नरक में फँसी रहेंगी। आत्मा ने उसे झलक दी—अपना चेहरा, जो खुद रेखा का ही था, लेकिन पूरी तरह जला हुआ। आत्मा ने कहा: "तू ही मैं है… तू ही मुझे बनाया… अब तू ही मुक्त कर।"
प्रायश्चित या शाप?
रेखा ने मजबूरी में वही तांत्रिक विधि दोहराई, लेकिन जैसे ही अंतिम मंत्र पूरा हुआ, वह धू-धू कर जलने लगी। उसकी चीखें अब तक उस गाँव की हवाओं में गूंजती हैं।
अब क्या है वहाँ?
सरकार ने गाँव को सील कर दिया है। अब वहाँ कोई नहीं जाता। लेकिन हर साल दशहरे की रात, पास के गाँव वालों को नागवाडी की ओर से शंख की आवाजें, तांत्रिक मंत्र और औरतों की चीखें सुनाई देती हैं।
निष्कर्ष
यह कहानी केवल आत्माओं की नहीं, उस लालच और जिज्ञासा की है, जो इंसान को उसकी सीमा से बाहर ले जाती है। कभी-कभी कुछ दरवाज़े बंद ही रहने चाहिए—क्योंकि जो उनके पार है, वह इंसान नहीं सह सकता।
(सावधानी: इस कहानी को पढ़ते समय यदि आपके आस-पास अचानक ठंडी हवा या अस्पष्ट आवाज़ें महसूस हों, तो शांत रहें। हो सकता है... वह केवल आपकी कल्पना हो... या शायद नहीं।)
-समाप्त-
लेखक:शैलेश वर्मा