भाग 1: उड़ान की शुरुआतनाम था आरव मलिक। उम्र—23 साल। एक छोटे शहर से निकलकर उसने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी शुरू की थी। शुरू से ही उसकी सोच सबसे अलग थी। वो सिर्फ तनख्वाह लेने नहीं, कुछ नया बनाने की चाह रखता था।
23 से 25 साल की उम्र के बीच आरव ने एक टेक स्टार्टअप शुरू किया — ‘ब्रेनबॉक्स’, जो छोटे व्यापारियों के लिए AI आधारित अकाउंटिंग और मार्केटिंग टूल बनाता था। देखते ही देखते 2 साल में ही वह कंपनी 100 करोड़ रुपये की वैल्यूएशन तक पहुंच गई। अख़बारों, टीवी और सोशल मीडिया में आरव की धूम थी।
हर कोई कहता — “ये लड़का तो अगला बिज़नेस चमत्कार है।”
भाग 2: काली घटाएंलेकिन समय का पहिया जब घूमता है, तो सबसे ऊंचे को भी गिरा देता है। आरव की कंपनी को तीसरे साल एक विदेशी निवेशक से बड़ा फंड मिला। साथ ही शर्तें भी थीं — प्रबंधन में दखल, दिशा बदलने की मांग, और तेज़ मुनाफा।
आरव ने कुछ फैसले लिए जो जोखिम भरे थे — एक नया ऐप लॉन्च किया बिना पूरी टेस्टिंग के, जिससे ग्राहकों की डेटा चोरी हो गई। साथ ही फाइनेंस हेड ने निवेशकों के दबाव में कुछ गलत ट्रांजेक्शन किए। मामला कोर्ट तक पहुंचा। मीडिया ने जो कल तक तारीफ की थी, अब वही निंदा कर रही थी।
25 की उम्र में आरव पर धोखाधड़ी के आरोप लगे। कंपनी सील हो गई, बैंक अकाउंट फ्रीज़, और दोस्त… सब गायब।
भाग 3: ध्वस्त जीवन26 की उम्र में आरव अपने उसी छोटे शहर के एक किराए के कमरे में वापस आ चुका था। वो लड़का जो कभी लाखों कमा रहा था, अब साइकिल पर सब्ज़ी लाने जाता था।
माँ की आँखों में आँसू थे, पर उसके चेहरे पर नहीं। उसने खुद को शीशे में देखा और कहा — "मैं गिरा हूँ, हारा नहीं।"
कई महीनों तक वो अवसाद, अकेलेपन और खुद पर क्रोध से लड़ता रहा। पर एक दिन एक छोटा बच्चा उसे सब्ज़ी वाले से बहस करते देख हँस पड़ा और कहा — “भैया, आप TV में आते थे ना?”
उस पल उसे एहसास हुआ — उसकी पहचान अभी ज़िंदा है।
भाग 4: वापसी की तैयारीआरव ने फिर से किताबें उठाईं, लैपटॉप खोला और सीखा — नए जमाने की तकनीक: Blockchain, Deep Learning, Ethical Hacking।
वो जानता था कि लोगों का भरोसा फिर से जीतना आसान नहीं होगा। उसने सबसे पहले मुफ्त में लोकल व्यापारियों को डिजिटल ट्रेनिंग देना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग उसकी मेहनत और ईमानदारी से प्रभावित होने लगे।
27 की उम्र में उसने फिर एक नया वेंचर शुरू किया — ‘ज्ञानतंत्र’, एक ओपन-सोर्स प्लेटफ़ॉर्म जो युवाओं को तकनीकी शिक्षा मुफ्त में देता था। इस बार उसने निवेशकों से नहीं, जनता से क्राउडफंडिंग से पैसा जुटाया।
भाग 5: दूसरी उड़ान, इस बार स्थायी28 की उम्र तक ‘ज्ञानतंत्र’ पूरे देश में फैल चुका था। लाखों युवा इससे जोड़कर खुद का करियर बना चुके थे। सरकारी संस्थानों ने भी इसे स्वीकार किया। आरव को अब TED Talk, नीति आयोग, और अंतरराष्ट्रीय मंचों से बुलावा आने लगा।
एक अख़बार की हेडलाइन थी —“जिसे सबने छोड़ा, उसने सबको जोड़ दिया।”
29 की उम्र में आरव ने देश की सबसे बड़ी एजुकेशनल टेक कंपनी का निर्माण कर लिया था — और इस बार वो सिर्फ एक CEO नहीं था, बल्कि एक आंदोलन का चेहरा बन चुका था।
भाग 6: इतिहास का निर्माण30वें जन्मदिन पर उसे देश का सर्वोच्च युवा पुरस्कार मिला। पर जब मंच पर बुलाया गया, तो उसने सिर्फ इतना कहा —"मैं गिरा था इसलिए उठा, क्योंकि ज़मीन की ठोकर ने मुझे ऊँचाई का मतलब सिखाया। हार मानना विकल्प नहीं होता, जब तक ज़िंदा हो — तब तक सम्भावना ज़िंदा है।"
आज आरव सिर्फ एक नाम नहीं, एक प्रेरणा है — उन लाखों युवाओं के लिए जो गिरने से डरते हैं।
अंतिम संदेश:“सफलता कभी अंतिम नहीं होती, और असफलता कभी घातक नहीं — मायने रखता है सिर्फ साहस।”
लेखक:- शैलेश वर्मा