अध्याय 1:
धूल और हौसलेउत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव रामगढ़ की कच्ची गलियों में दिन-रात धूल उड़ती थी। वहीं, एक टूटी-फूटी झोपड़ी में शिवा नाम का लड़का अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसके पिता रामकिशोर एक साधारण किसान थे, जिनके पास एक बीघा ज़मीन थी, वो भी कर्ज में डूबी हुई। माँ कमला देवी खेतों में मजदूरी करती थीं।शिवा की उम्र भले ही छोटी थी, लेकिन उसकी सोच बड़ी थी।
उसके पास स्कूल बैग नहीं था, किताबें फटी हुई थीं, चप्पलें घिसी हुईं थीं — पर आँखों में सपना था: "कुछ ऐसा करूँ कि दुनिया जाने कि गरीब का बेटा क्या कर सकता है।"रात में जब गाँव के बच्चे सोते थे, शिवा लालटेन की हल्की रोशनी में पढ़ाई करता था। उसके पिता जब थककर खेत से लौटते, शिवा उनके पैरों को दबाते हुए कहता,“एक दिन मैं आपको आराम दिलाऊँगा पिताजी, बस पढ़ लेने दीजिए।”---
अध्याय 2:
स्कूल से संघर्ष का सफरशिवा ने गाँव के सरकारी स्कूल से दसवीं और बारहवीं पास की — और वो भी हर साल टॉप करके। मास्टरजी तक हैरान थे कि इतना होशियार लड़का इस गरीबी में कैसे पढ़ता है।बारहवीं में उसने जिले में पहला स्थान पाया। यह खबर अख़बारों में भी छपी।
गाँववालों ने उसे सराहा, लेकिन उसके सामने नई मुश्किल खड़ी हो गई — आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे।माँ के गहने पहले ही गिरवी थे। पिता ने कहा,“बेटा, अब खेत संभाल ले। हमसे जितना बन पड़ा, कर दिया।”पर शिवा ने हार नहीं मानी। उसने शहर जाने का फैसला किया — लखनऊ, जहां उसे एक सस्ते कॉलेज में दाखिला मिला।---
अध्याय 3:
शहर की जंगशहर की ज़िंदगी आसान नहीं थी। शिवा ने एक ढाबे में बर्तन धोने का काम पकड़ लिया। सुबह कॉलेज, दोपहर में लाइब्रेरी, और शाम को ढाबा — ये उसका रूटीन बन गया।उसने जितने भी पैसे बचाए, उनका इस्तेमाल किताबें और इंटरनेट कैफे में रिसर्च करने में किया।
पढ़ाई के साथ-साथ उसे एक बात समझ में आने लगी — गाँव के किसान आज भी दलालों और बिचौलियों के कारण लुट रहे हैं।शिवा ने ठान लिया कि वो किसानों के लिए कुछ करेगा।"अगर मैं खुद का बिजनेस शुरू कर सकूँ, तो क्यों न किसानों को सीधे बाजार से जोड़ने वाला प्लेटफॉर्म बनाऊँ?"---
अध्याय 4:
विचार से निर्माणशिवा ने कॉलेज में रहते-रहते अपने जैसे एक और छात्र नीलेश के साथ मिलकर एक मोबाइल ऐप का आईडिया तैयार किया — "सीधा खेत से"।
इस ऐप के माध्यम से किसान सीधे ग्राहक से जुड़ सकते थे, जिससे उन्हें उनकी मेहनत का पूरा दाम मिल सके।लेकिन कोई निवेशक पैसे देने को तैयार नहीं था। गाँव का लड़का, न कोई MBA डिग्री, न कोई पहचान — सबने मुँह मोड़ लिया।
पहली बार में ऐप लॉन्च ही नहीं हो पाया। दूसरी बार लॉन्च किया, लेकिन ग्राहक नहीं आए।शिवा टूट गया, पर रुका नहीं। उसने खुद शहर के दरवाजे-दरवाजे जाकर लोगों को अपने ऐप के फायदे समझाए। अपने ही कॉलेज के एक सीनियर से मदद मिली, जिसने 50,000 रुपये का छोटा निवेश किया। यही निवेश शिवा की मेहनत और किस्मत का मोड़ बन गया।---
अध्याय 5:
बदलाव की बयारछह महीने के भीतर ऐप से 200 किसान जुड़ चुके थे। ग्राहक भी बढ़ने लगे। अब किसान बिना बिचौलियों के सब्ज़ी, फल, अनाज सीधे बेचने लगे।शिवा का बिजनेस मॉडल इतना कारगर था कि कई जिलों से लोग जुड़ने लगे।शिवा ने अपने पहले मुनाफे से सबसे पहले गाँव में अपने घर की मरम्मत करवाई, फिर अपने माता-पिता को शहर बुलाया। रामकिशोर, जिनके पाँव कभी खेत की धूल से सने रहते थे, अब एयर-कंडीशन्ड ऑफिस में अपने बेटे के साथ बैठते थे।---
अध्याय 6:
गाँव का गौरव तीन साल बाद, “सीधा खेत से” एक राष्ट्रीय स्तर की कंपनी बन गई। बड़े निवेशक आए, मीडिया में इंटरव्यू छपने लगे, और शिवा को "ग्रामीण भारत का यूथ आइकॉन" कहा जाने लगा।
जब शिवा एक बार फिर अपने गाँव लौटा, तो वह अकेला नहीं था। उसके साथ आई थी — एक लंबी कार, टीवी चैनलों की टीम, और ढेर सारे रोजगार के अवसर।गाँव के लोग जो कभी कहते थे, “बेटा पढ़-लिख कर भी क्या करेगा, खेती ही करनी है,” — अब गर्व से कहते,“शिवा हमारा हीरो है।”उसने गाँव में एक फ्री डिजिटल स्कूल खोला, जहाँ बच्चों को कंप्यूटर और इंटरनेट की पढ़ाई मिलने लगी। उसने किसानों के लिए कोल्ड स्टोरेज और प्रशिक्षण केंद्र बनवाए।---
अंतिम अध्याय:
सम्राट की पहचान एक दिन एक इंटरव्यू में जब पत्रकार ने पूछा,“आपने सब कुछ कैसे पाया?”शिवा मुस्कराया और बोला:“मैंने सोने की खान में जन्म नहीं लिया, लेकिन मैंने मिट्टी को सोना बनाना सीख लिया। मैं उस संघर्ष का बेटा हूँ जिसने मुझे सम्राट बना दिया।
”---उपसंहार"संघर्ष से सम्राट तक" सिर्फ शिवा की नहीं, हर उस व्यक्ति की कहानी है, जो हालातों से नहीं, अपने हौसलों से अपनी तक़दीर गढ़ता है।क्योंकि जब इरादे बुलंद हों, तो कोई भी मिट्टी का हीरा चमकने से नहीं रुक सकता।---
समाप्त
लेखक:- शैलेश वर्मा