Kaal Satta: A deal of blood and power in Hindi Adventure Stories by Shailesh verma books and stories PDF | कालसत्ता: रक्त और सत्ता का सौदा

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कालसत्ता: रक्त और सत्ता का सौदा

वर्ष था 2014 पूरे देश में बदलाव की बयार थी। भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ़ जनता में आक्रोश था। और तभी सत्ता के शिखर पर बैठने की होड़ में उभरा एक नया नाम — अश्वराज सिंह, जो खुद को "जनता का सेवक" कहता था। पर किसी को नहीं पता था कि इस चेहरे के पीछे छिपा था अंधकार, हिंसा और रहस्य का समंदर।

भाग 1: परिवर्तन या छलावाअश्वराज की पार्टी ने जब 2014 में भारी बहुमत से सरकार बनाई, तो उसे लोकतंत्र की जीत बताया गया। लेकिन राजधानी शिवगढ़ की अंधेरी गलियों में कुछ और ही पक रहा था। सत्ता परिवर्तन के कुछ ही महीनों बाद कई छोटे पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्षी नेता रहस्यमयी हालात में मारे जाने लगे।

एक खुफिया अफसर वीर प्रताप, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ काम करता था, उसने इन मौतों को सामान्य नहीं माना। जब उसने जांच शुरू की, तो उसे पता चला कि हर मृतक ने एक गुप्त संगठन “कालसत्ता” का जिक्र किया था — एक ऐसा संगठन जो सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को “राक्षसी शक्तियों” से जोड़ता था।

भाग 2: रक्त का सौदाशिवगढ़ के पुराने किले में एक रात वीर प्रताप चोरी-छिपे पहुंचा। वहाँ उसे एक भूमिगत सुरंग मिली, जो एक प्राचीन मंदिर तक जाती थी। वहाँ उसने जो देखा, उसने उसकी रूह कंपा दी — सत्ताधारी मंत्रीगण काले वस्त्रों में किसी तांत्रिक अनुष्ठान में लीन थे। सामने एक बकरी नहीं, बल्कि एक इंसान की बलि दी जा रही थी।

वो अनुष्ठान रक्त का था — ‘रक्तयज्ञ’, जिसमें बलि देकर राजनैतिक शक्ति को अभिशप्त ऊर्जा में बदला जाता था। वीर प्रताप ने सब कुछ रिकॉर्ड किया, पर जैसे ही उसने वहाँ से निकलने की कोशिश की — उसे किसी ने पीछे से बेहोश कर दिया।

भाग 3: जिन्न का उदयएक सप्ताह बाद उसकी लाश एक नदी किनारे मिली — शरीर पूरी तरह जला हुआ, चेहरा पहचान से बाहर। पुलिस ने मामला आत्महत्या करार दिया।

लेकिन वीर प्रताप की मौत से पहले उसकी बहन नैना को वह वीडियो मिल चुका था। नैना, एक तेजतर्रार पत्रकार, जानती थी कि यह कोई साधारण राजनीतिक हत्या नहीं थी। उसने वीडियो को सुरक्षित एक पुराने चर्च के तहखाने में छुपा दिया और खोज शुरू की कालसत्ता की।

इसी बीच शिवगढ़ में एक अजीब बीमारी फैलने लगी — लोग अंधेरे में बड़बड़ाने लगते, खुद पर वार करते और अंत में आत्महत्या कर लेते। डॉक्टर हार मान गए। पर कुछ पुराने तांत्रिकों ने कहा — "ये बीमारी नहीं, तांत्रिक ऊर्जा की बर्बर लहर है, जो रक्त की बलियों से जन्मी है।”

भाग 4: अपराजेय अश्वराज2020 तक अश्वराज देश में एक अर्ध-ईश्वर जैसा बन चुका था। उसके विरोधी या तो गायब थे या मरे। मीडिया उसके इशारों पर चलती थी। पर नैना हार मानने वाली नहीं थी। उसने एक और अफसर रघुवीर राणा से संपर्क किया, जो कभी वीर प्रताप का करीबी था।

रघुवीर ने बताया कि 2013 में ही अश्वराज ने एक तांत्रिक वाचा की थी — “जब तक हर पाँच साल में पाँच निर्दोषों की बलि दी जाएगी, तब तक सत्ता उसके चरणों में रहेगी।” और यही कारण था कि हर चुनाव से पहले हत्याओं की संख्या बढ़ जाती थी।

पर अब कुछ बदल गया था। बलि के लिए चुने गए पांच लोगों में इस बार नैना भी थी।

भाग 5: डर का महाकालनैना और रघुवीर ने 2024 के चुनावों से पहले अश्वराज की पार्टी के एक मंत्री बिंदुसार को पकड़कर सच्चाई उगलवाई। बिंदुसार ने कहा, “हम अब मनुष्यों की नहीं, आत्माओं की सत्ता चला रहे हैं। अश्वराज अब इंसान नहीं, वह कालसत्ता का ‘चयनित पिशाच’ है। उसकी आत्मा एक राक्षसी मूर्ति में बंद है, जिसे हर पूर्णिमा पर रक्त से सींचा जाता है।”

वे मूर्ति शिवगढ़ के श्मशान में थी, जहाँ हर पूर्णिमा को “काल-संस्कार” होता था — एक विशेष बलि अनुष्ठान। नैना और रघुवीर ने उस रात को रोकने की योजना बनाई।

भाग 6: रक्त की पूर्णिमा2024 की पूर्णिमा की रात। चारों ओर घना कुहासा और भयावह शांति। श्मशान में अश्वराज के समर्थक एकत्रित थे, मंत्रोच्चारण गूंज रहा था। उसी समय नैना, रघुवीर और कुछ वफादार सैनिक वहाँ पहुंचे। एक गुप्त सुरंग से वे अंदर घुसे।

जैसे ही अश्वराज बलि चढ़ाने को बढ़ा, नैना ने वीडियो लाइव कर दिया। पूरा देश वह नजारा देख रहा था — एक नेता, रक्त के लिए तड़पता हुआ, तांत्रिक मंत्र पढ़ता हुआ।

अश्वराज ने क्रोधित होकर हमला किया। उसकी आँखें लाल, शरीर लोहे की तरह सख्त और आवाज़... राक्षसी।

रघुवीर ने अश्वराज की आत्मा बंधी मूर्ति को जलाने का प्रयास किया। पर मूर्ति हिलने लगी, उसमे से चीखें आने लगीं। तभी नैना ने वीर प्रताप की राख उस मूर्ति पर फेंक दी — वो राख विशेष थी, जिसमें ‘त्याग’ की ऊर्जा थी। मूर्ति चटक गई, और एक भीषण विस्फोट हुआ।

समाप्ति: रक्त का अंत या शुरुआत?अश्वराज की मौत के बाद देश में नए चुनाव हुए। नैना ने राजनीति से दूर रहने का निर्णय लिया। पर अब भी लोग कहते हैं — "शिवगढ़ की हवा में कभी-कभी कोई राक्षसी फुसफुसाहट सुनाई देती है।"

और कालसत्ता? शायद वो खत्म नहीं हुई, शायद सिर्फ सोई हुई है।

क्योंकि सत्ता कभी खत्म नहीं होती... वह सिर्फ रूप बदलती है।




शैलेश वर्मा