प्नस्तवना:
भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर में स्थित एक ऐतिहासिक किला, जिसका नाम सुनते ही मराठा साम्राज्य की वीरता, राजनीतिक षड्यंत्र और एक दर्दनाक हत्या की कहानी आंखों के सामने उभर आती है – वह है "शनिवारवाड़ा"। यह किला एक समय पर मराठा शासन का गौरव हुआ करता था, लेकिन आज यह अपने अंदर कई रहस्य, त्रासदियाँ और डरावनी घटनाओं को समेटे हुए एक शापित विरासत के रूप में जाना जाता है।इस किले के साथ जुड़ी सबसे भयावह घटना 13 वर्षीय पेशवा नारायण राव की निर्मम हत्या से जुड़ी है। उस बच्चे की चीखें – "काका, माला वाचवा!" आज भी हवाओं में तैरती हुई महसूस की जाती हैं। आइए हम शनिवारवाड़ा किले की इस भयावह और ऐतिहासिक यात्रा पर चलते हैं, जहाँ इतिहास, राजनीति, धोखा और परालौकिक घटनाएँ एक-दूसरे में उलझी हुई हैं।---
भाग 1:
किले का निर्माण और ऐतिहासिक पृष्ठभूमिसन 1730 में जब पेशवा बाजीराव प्रथम ने पुणे को मराठा साम्राज्य की राजधानी बनाया, तो उन्होंने एक भव्य और मजबूत किले के निर्माण की योजना बनाई। 1732 में शनिवार के दिन इसका शिलान्यास हुआ, इसलिए इसका नाम "शनिवारवाड़ा" पड़ा। यह किला न केवल सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि प्रशासनिक केंद्र भी था।शनिवारवाड़ा में सुंदर दरबार हॉल, बगीचे, झरने, झूमर, विशाल फाटकों और भव्य महलों की एक लंबी श्रृंखला थी। यह मराठा वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण था। लेकिन समय के साथ-साथ यह जगह षड्यंत्रों और राजनीतिक द्वेष का गढ़ बन गई।---
भाग 2:
पेशवाओं की राजनीति और षड्यंत्रबाजीराव प्रथम के निधन के बाद उनके पुत्र नानासाहेब पेशवा बने। उनके बाद रघुनाथ राव (राघोबा) और नानासाहेब के पुत्रों के बीच सत्ता की लड़ाई शुरू हुई। नाना साहेब के तीन पुत्र थे – विष्णुराव, माधवराव और नारायण राव। पहले विष्णुराव और फिर माधवराव की मृत्यु हो गई। अंततः नारायण राव मात्र 13 वर्ष की आयु में पेशवा बने।उनके इतने कम उम्र में सत्ता पर बैठने से असंतोष फैल गया। उनके चाचा रघुनाथ राव और चाची आनंदीबाई को लगा कि अब अवसर है सत्ता को अपने हाथ में लेने का। और वहीं से शुरू हुआ एक भयावह षड्यंत्र।---
भाग 3:
शापित आदेश और हत्यानारायण राव को हटाने की योजना बनी। रघुनाथ राव ने अपने सेनापतियों को एक संदेश भेजा – "धरा पकडो" (उसे पकड़ लो)। लेकिन कहा जाता है कि आनंदीबाई ने उस संदेश को बदल कर कर दिया – "धरा मारो" (उसे मार दो)। यह एक अत्यंत चालाकी भरा खेल था।उस रात, गार्डन दरवाजे से घुसकर सैनिक शनिवारवाड़ा के अंदर आए और नारायण राव को उनके शयनकक्ष से खींच लिया गया। वह चीखते रहे – "काका, माला वाचवा!" लेकिन कोई उन्हें बचा नहीं सका। किले की गलियों में उनकी चीखें गूंजती रहीं और अंततः उन्हें बेरहमी से मार डाला गया।उनका शव टुकड़ों में काटकर नदी में फेंक दिया गया। यह घटना मराठा इतिहास की सबसे शर्मनाक घटनाओं में से एक मानी जाती है।---
भाग 4:
किले का पतन और आत्माओं की शुरुआतनारायण राव की हत्या के बाद शनिवारवाड़ा की प्रतिष्ठा पर धब्बा लग गया। रघुनाथ राव कुछ समय के लिए सत्ता में तो आए, लेकिन उनका शासन अस्थिर रहा। अंततः ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरे पुणे पर अधिकार कर लिया।कहते हैं कि नारायण राव की आत्मा कभी भी किले से मुक्त नहीं हुई। लोग कहते हैं कि हर अमावस्या की रात, विशेष रूप से पूर्णिमा या शनिवार की रातों को, उस बच्चे की चीखें सुनाई देती हैं।रात को घूमते हुए लोगों ने किसी अदृश्य साए को महसूस किया है। कुछ पर्यटक बताते हैं कि जैसे ही वे किले में किसी खास हिस्से में पहुँचते हैं, कोई उनके पीछे चलता है, लेकिन पीछे मुड़ने पर कोई नहीं होता।---
भाग 5:
परालौकिक घटनाएं और वर्तमान स्थितिशनिवारवाड़ा आज एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है। लेकिन सूरज ढलते ही यहां का वातावरण रहस्यमयी और भारी हो जाता है। यहाँ रात को प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित है। सुरक्षाकर्मी भी दिन ढलने के बाद अंदर नहीं जाते।लोगों के अनुभव:1. कुछ लोगों ने रोशनी के गोले हवा में उड़ते देखे हैं।2. बिना हवा के दरवाज़ों का अपने आप खुलना और बंद होना।3. कुछ पर्यटकों को अंदर से किसी की हल्की-हल्की फुसफुसाहटें सुनाई दीं।4. एक पर्यटक ने दावा किया कि एक सफेद कपड़े में लिपटी परछाईं दरबार हॉल से गुज़री।---
भाग 6:
मीडिया, फिल्में और लोकप्रियताशनिवारवाड़ा को लेकर कई डॉक्युमेंट्रीज़, टीवी शो, और वेब सीरीज़ बन चुकी हैं। बॉलीवुड की फिल्म "बाजीराव मस्तानी" ने इस किले को नए सिरे से चर्चा में ला दिया। लेकिन अधिकांश लोग इसकी सुंदरता के पीछे छिपे रहस्य को नहीं जानते।पुणे के लोकगीतों में अब भी नारायण राव की हत्या और किले के शापित होने की कथा सुनाई जाती है।---
भाग 7:
क्या आत्माएँ सच होती हैं?यह सवाल हमेशा बहस का विषय रहा है। लेकिन शनिवारवाड़ा में जो घटनाएँ होती हैं, वे सिर्फ कल्पना नहीं लगतीं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ये सभी घटनाएँ मनोवैज्ञानिक प्रभाव या वातावरणीय बदलावों का परिणाम हो सकती हैं। लेकिन जब सैकड़ों लोग एक जैसी घटनाओं का अनुभव करते हैं, तो वह केवल कल्पना नहीं होती।---
भाग 8:
निष्कर्ष – इतिहास का दर्द और रहस्यशनिवारवाड़ा सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं है, यह एक बच्चे की चीखों की गूंज है, एक राजनीतिक षड्यंत्र की निशानी है, और एक ऐसा स्थान है जहाँ आज भी आत्मा का साया महसूस किया जा सकता है। यह किला हमें याद दिलाता है कि सत्ता की लालसा कभी-कभी इंसानियत को मार देती है, और उस अन्याय की सजा सिर्फ इतिहास नहीं, आत्माएँ भी देती हैं।
अगर आप कभी पुणे जाएँ, तो शनिवारवाड़ा अवश्य देखें। लेकिन सूर्यास्त से पहले। क्योंकि हो सकता है कि सूरज के ढलते ही वहाँ की हवाओं में कोई कहे –> "काका, माला वाचवा...!"
-समाप्त-
लेखक:-शैलेश वर्मा