प्रस्तावना:
प्रेम को अक्सर सिर्फ एक भावना कहा जाता है, लेकिन जब देह और आत्मा दोनों एक साथ प्रेम में उतरते हैं, तब वह एक ऐसी यात्रा बन जाती है — जिसमें समर्पण भी होता है, स्पर्श भी और आह्लाद भी। यह कहानी है युवराज और चाँदनी की, जो पहले सिर्फ आकर्षण से बंधे, मगर अंततः आत्मिक प्रेम तक पहुँचे।---
भाग 1: अजनबी स्पर्शमुंबई की एक बेकरी कैफ़े में शाम का वक़्त था। युवराज एक युवा आर्किटेक्ट था, जो लंबे दिन के बाद अपनी डायरी में कुछ स्केच बना रहा था। तभी सामने एक लड़की आकर बैठ गई — सफेद कुर्ता, खुले बाल, और आँखों में कुछ छुपा हुआ दर्द।"क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ?""जी, ज़रूर," युवराज ने मुस्कुराते हुए कहा।वो थी — चाँदनी मेहरा, जो हाल ही में किसी रिश्ते से टूटकर अकेली हो गई थी।---
भाग 2: टूटे दिलों की नज़दीकीदोनों की बातचीत धीरे-धीरे खुलने लगी। युवराज को शब्दों में सुकून मिलता था, चाँदनी को चुप्पी में शांति। उनका रिश्ता दोस्ती से शुरू हुआ, लेकिन उसके पीछे जो लहरें थीं, वो बहुत गहरी थीं।एक दिन चाँदनी ने पूछा,"क्या तुम्हें कभी किसी ने छुआ, ऐसे कि तुम भीतर से काँप जाओ?"युवराज ने कहा, "शायद नहीं, लेकिन तुम्हें देख कर लगता है जैसे तुम किसी की गहराई महसूस कर चुकी हो।"चाँदनी ने जवाब नहीं दिया, सिर्फ उसकी उंगलियाँ युवराज की उंगलियों को छू गईं — वो पहला स्पर्श था।---
भाग 3: कामना या करुणाधीरे-धीरे, उनके बीच जो रिश्ते की लकीर थी, वो धुँधली होने लगी। दोनों ने एक-दूसरे को समझा, सहा और फिर चाहा। पर चाँदनी के मन में डर था — क्या ये फिर कोई क्षणिक वासना तो नहीं?एक शाम, जब बारिश ज़ोर से हो रही थी, चाँदनी ने युवराज को अपने घर बुलाया। मोमबत्तियों की रोशनी, और भीगी हवा में, वह पहली बार खुद को खुलकर देखना चाहती थी।"मैं डरती हूँ... कहीं फिर से ना टूट जाऊँ," चाँदनी बोली।युवराज ने धीरे से उसका चेहरा थामा और कहा,"मैं तुम्हें छूना चाहता हूँ, लेकिन पहले तुम्हारी रूह तक पहुँचना चाहता हूँ।"---
भाग 4: मिलन की पूर्णताउस रात, उनका मिलन हुआ — देहों का नहीं, आत्माओं का।युवराज ने उसकी पीठ पर अपने होंठ रखे — न वासना थी, न जल्दबाज़ी। वह हर स्पर्श को पूजा बना रहा था। चाँदनी ने पहली बार अपने शरीर को अपराध नहीं, गरिमा की दृष्टि से देखा।वे दोनों एक-दूसरे की गर्म साँसों में खुद को पिघलाते रहे। वह रात लंबी थी, लेकिन कभी थकी नहीं। वे थमे नहीं, घुलते रहे — एक आत्मा से दूसरी आत्मा में।---
भाग 5: सुबह की संकोचहीनतासुबह, चाँदनी की आँख खुली तो उसने देखा युवराज अभी भी उसकी हथेली थामे हुए था। न कोई घबराहट, न कोई शर्म।"तुमने मुझे देह से नहीं, आत्मा से स्पर्श किया," वह बोली।युवराज ने कहा, "प्रेम अगर सिर्फ शरीर का भूख बन जाए तो वह समाप्त हो जाता है... मगर आत्मा का लगाव, कभी मरता नहीं।"---
भाग 6: समाज और निर्णयधीरे-धीरे उनका प्रेम परिपक्व हुआ। मगर समाज को यह रिश्ता 'असामान्य' लगा। एक तलाकशुदा लड़की और एक कुंवारा लड़का — कैसे हो सकता है?पर युवराज ने सबके सामने खड़े होकर कहा:"मुझे उसकी देह नहीं, उसकी आत्मा से प्रेम है। और आत्मा का कोई स्टेटस नहीं होता।"चाँदनी ने पहली बार खुद को एक मुकम्मल स्त्री की तरह महसूस किया — जिसने प्रेम किया, खुद को समर्पित किया और फिर से जिया।---
भाग 7: प्रेम की पुनर्रचनाउन्होंने विवाह नहीं किया। उन्होंने साथ रहना चुना — हर दिन प्रेम को नये रूप में जीना चुना।कभी एक-दूसरे की पीठ पर कविता लिखना, कभी देह की हर रेखा को प्रेम की लकीर मान लेना, कभी बिना कहे घंटों आँखों में देखना — यही उनका प्रेम था।सेक्स अब उनके लिए सिर्फ एक क्रिया नहीं रहा, वह बन गया था पूजा।---
अंतिम पंक्तियाँ"
प्रेम जब देह से शुरू होकर आत्मा तक पहुँचे, तो वह रूपमयी बन जाता है —ऐसा रूप जो दिखाई नहीं देता, मगर महसूस किया जा सकता है — हर रात, हर आलिंगन में, हर स्पर्श में।"
-समाप्त-