समीरा की चिंता
समीरा जैसे ही घर पहुंची, उसे अंदर से अजीब-सी बेचैनी महसूस हुई। घर का माहौल गंभीर लग रहा था। उसने देखा कि उसकी माँ राधा और पिता अजय जल्दी-जल्दी में कुछ सामान समेट रहे थे, जैसे कहीं जाने की जल्दी हो। उनके चेहरे पर तनाव और घबराहट साफ झलक रही थी। समीरा का दिल जोर से धड़कने लगा।
"क्या हुआ, माँ? आप दोनों इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हैं?" समीरा ने घबराई हुई आवाज़ में पूछा।
राधा ने एक पल के लिए नजरें झुका लीं, फिर बोलीं, "बेटा, हमें अभी अस्पताल जाना है... वहाँ से फोन आया था कि तेरी बुआ..."
राधा की आवाज़ लड़खड़ा गई। वह पूरी बात कह भी नहीं पाई थी कि अजय ने गंभीर स्वर में कहा, "जल्दी चलो, देर हो रही है।"
राधा ने समीरा की तरफ देखा और कहा, "बेटा, तुम घर पर रहो। हम रात तक लौट आएँगे। चिंता मत करना।"
"लेकिन, माँ..." समीरा ने कुछ कहने की कोशिश की, मगर तब तक वे दोनों घर से निकल चुके थे।
चिंता और बेचैनी
समीरा वहीं दरवाजे के पास कुछ देर तक खड़ी रही, फिर धीरे-धीरे सोफे की तरफ बढ़ी और धम्म से बैठ गई। उसके दिल में अजीब-सी घबराहट होने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बुआ को क्या हुआ होगा। क्या वे ठीक होंगी? क्यों अचानक अस्पताल से फोन आया?
उसके मन में तरह-तरह के ख्याल उमड़ने लगे।
आज जब वह बुआ की तबीयत को लेकर अनजान थी, तो मन में घबराहट बढ़ती जा रही थी। उसने मोबाइल उठाया और माँ को फोन करने की कोशिश की, लेकिन माँ का फोन स्विच ऑफ था। फिर उसने पापा को कॉल किया, मगर उधर से कोई जवाब नहीं आया। अब उसकी चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई।
यादों की परछाइयाँ
समीरा का दिमाग पुरानी यादों में खो गया। उसे याद आया कि जब वह छोटी थी और रात में अंधेरे से डरती थी, तो बुआ उसे अपने पास सुला लेती थीं। उनकी हल्की-हल्की थपकी से उसे तुरंत नींद आ जाती थी। जब भी वह बीमार पड़ती, बुआ उसके सिरहाने बैठी रहतीं और धीरे-धीरे उसके सिर पर हाथ फेरती रहतीं।
बुआ हमेशा कहती थीं, "बेटा, ज़िंदगी में कितना भी बड़ा तूफान आए, खुद को कमजोर मत समझना। बस धैर्य रखना और विश्वास बनाए रखना।"
समीरा को बुआ की वह बातें याद आईं, और उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। अगर बुआ को कुछ हो गया तो? अगर वह उन्हें फिर कभी नहीं देख पाई तो? ये ख्याल उसे अंदर तक तोड़ रहे थे।
प्रार्थना और उम्मीद
उसने तुरंत भगवान के सामने घुटनों के बल बैठकर हाथ जोड़ लिए। उसकी आँखें भीग चुकी थीं, और उसकी आवाज़ कांप रही थी।
"भगवान, प्लीज मेरी बुआ को ठीक कर दो। उन्हें कुछ मत होने देना। वे मेरे लिए सबकुछ हैं। मैं उनके बिना नहीं रह सकती।"
हर बीतता पल उसकी बेचैनी बढ़ा रहा था। उसने घड़ी की तरफ देखा—रात के 9 बज चुके थे, लेकिन माँ-पापा अभी तक नहीं लौटे थे। घर में अजीब-सी खामोशी थी।
इंतजार की घड़ियाँ
हर छोटी-छोटी आवाज़ पर उसका दिल जोर से धड़कने लगता। जब भी गली में किसी गाड़ी के रुकने की आवाज़ आती, उसे लगता कि माँ-पापा आ गए, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगती।
फिर अचानक दरवाजे की घंटी बजी। समीरा का दिल जोरों से धड़क उठा। वह तेजी से भागती हुई दरवाजे तक गई और झट से दरवाजा खोला। सामने माँ-पापा खड़े थे, लेकिन उनके चेहरे के भावों को देखकर समीरा का दिल बैठ गया। माँ की आँखें लाल थीं, और पापा का चेहरा उतरा हुआ था।
"माँ... बुआ कैसी हैं?" समीरा ने कांपती आवाज़ में पूछा।
राधा ने एक गहरी सांस ली, फिर समीरा को गले से लगा लिया। "बेटा, बुआ अब खतरे से बाहर हैं। डॉक्टर ने कहा है कि अगर थोड़ी देर और हो जाती, तो स्थिति गंभीर हो सकती थी। लेकिन अब वे ठीक हैं।"
समीरा की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे। उसका दिल हल्का हो गया था। उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया और मन ही मन सोचा—"बुआ सही कहती थीं, उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए।"
उसने माँ से कहा, "मुझे भी अस्पताल जाना है, मैं बुआ को देखना चाहती हूँ।"
राधा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा, "बेटा, वे अभी बेहोश हैं। सुबह होते ही हम उनसे मिल सकते हैं।"
समीरा ने सिर हिलाया और मन ही मन प्रार्थना की कि सुबह जल्दी आए ताकि वह बुआ को देख सके। आज की रात उसके लिए बेहद लंबी थी, लेकिन उसे सुकून था कि बुआ ठीक हो रही थीं।
अस्पताल का दर्दभरा माहौल
सुबह का सूरज हल्की सुनहरी किरणें बिखेर रहा था, लेकिन समीरा के दिल में एक अजीब-सी घबराहट थी। वह अजय और राधा के साथ अस्पताल की ओर बढ़ रही थी। उनके कदम तो आगे बढ़ रहे थे, लेकिन मन भारी था। अस्पताल का वातावरण हमेशा से ही उदासी और चिंता से भरा होता है, और आज यह अहसास और भी गहरा था। समीरा की बुआ, अंकिता, पिछले कुछ समय से मानसिक रूप से अस्थिर थीं। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उनकी हालत में कोई खास सुधार नहीं था।
अस्पताल के गेट पर पहुंचते ही तीनों ने एक गहरी सांस ली और भीतर प्रवेश किया। अंदर का दृश्य हमेशा की तरह था—नर्सें जल्दी-जल्दी इधर-उधर घूम रही थीं, मरीजों के रिश्तेदार चिंता में इधर-उधर टहल रहे थे, और डॉक्टर अपने काम में व्यस्त थे। चारों ओर दवाइयों की तीखी गंध फैली हुई थी। समीरा को यह सब असहज महसूस हो रहा था, लेकिन वह अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए वार्ड की ओर बढ़ी।
वार्ड में दाखिल होते ही समीरा की नजर बेड नंबर 12 पर पड़ी, जहां उसकी बुआ अंकिता लेटी हुई थीं। वह हल्की झुकी हुई थीं, उनके बाल बिखरे हुए थे और चेहरा थका हुआ लग रहा था। उनकी आंखों में एक अजीब-सी बेचैनी थी, जैसे वे कुछ कहना चाहती हों लेकिन कह नहीं पा रही थीं। समीरा का दिल जोर से धड़कने लगा।
समीरा उनके पास गई और धीरे से बोली, "बुआ, आप कैसी हैं?"
अंकिता की आंखों में हल्की चमक आई। उन्होंने अपनी नजरें समीरा पर टिकाईं और एक पल के लिए शांत हो गईं। वह अपनी भतीजी को पहचान रही थीं, लेकिन उनका चेहरा किसी अधूरे एहसास से भरा था। वह कुछ बोलने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन उनके होंठ बस कांपकर रह जाते।
"बुआ, आप मुझे पहचान रही हैं, है ना?" समीरा ने उनकी हथेली को अपने हाथों में लेते हुए कहा।
अंकिता की आंखों में हल्का-सा पानी आ गया। उन्होंने सिर हिलाने की कोशिश की, लेकिन शब्द उनके गले में अटक से गए।