Taam Zinda Hai - 1 in Hindi Detective stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | टाम ज़िंदा हैं - 1

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टाम ज़िंदा हैं - 1

टाम जिन्दा हैं -----

दुनिया सीधे लोगों की नहीं हैं.... चलाक बनो.. जानकारी उतनी ही इकठी करो जिसको तुम रख सकते हो.. जयादा जानकारी बहुत सेहत के लिए हानिकारक होती हैं.. हाँ मेरी बात अक्सर त्रिपाठी से होती हैं मोबइल पर... आज कल वो नये केस की भाग दौड़ मे लगा हुआ हैं। हम सब जानते हैं... वो एक सुलझा हुआ अफसर हैं। हर बात बारीकी से लेता हैं --- आम ताम तो उससे बात करने को भी घबराते हैं... उसका हेयर स्टाइल ऊपर को सुनहरी वाल वाहना... लम्बा चेहरा.. सडोल सीना.. मसल बने हुए... टागे फुर्तीली थी।

जयादा तर वो सधारण ही रहता था... ऊपर शर्ट के बटन खुले रखता था। एक बॉलपेन जेब से लगा रखा था... वो भी गोल्ड़न खोल वाला। उसके पास आपने गांव की खेती के ठेके से जीप लीं हुई थी... शौकीन था जीप चलाने का... उम्र कोई होंगी बतीस के करीब.. पालिश किये बूट अक्सर पहना करता था। और जानने के लिए आगे चलना हैं अभी।

केस नया था... उसके लिए।

फिर दुबारा खुला था।

रिट पुटिशन पर।

डलवाई किसने थी, खुद त्रिपाठी ने।

केस की फाईल पर एक मासूम पिकचर थी।

उसमे लिखा था इसके पहले दो अफसरों ने....

जो अब इस संसार म नहीं थे।

इसलिए मीना के कहने पर केस को खंगालना बनता ही था।

अब मीना कौन हैं.... मीना एक अफसर की बीवी ---- जो कहती थी.. केस की वजह से उसके हस्बेंड दुनिया छोड़ गए।

अब पढ़ना शरू करे।

दो लाइन म लिखा था... ज्योति ने खूब पैसा कमाया। कैसे समग्लिग से। उसका जिक्र नहीं था। ये पैसा उसने नामवार कपनीयों मे लगा दिया था.. उसके सारे शेयर ज्योति ने खरीद लिए... कपनी उसकी हो गयी।

पैसे और दबाब से केस बंद करा दिया गया।

एक अफसर को सुसाइड का नोटिस निकाल के मारा गया, दूसरे को ट्रक के नीचे कुचला गया....

चार दिन बाद -------

मोबाईल की घंटी वजी। फोन उठा लिया गया। एक धमकी -----" त्रिपाठी जी जो बैठ कर बात हम कर ले, तो जयादा अच्छा नहीं। " ये आवाज़ किसी मझे हुए आदमी की थी।

" इसको मै धमकी समझो। " त्रिपाठी ने सिगरेट का आख़री छोर एस्टेरे मे दबाते हुए कहा।

----" जनाब आप काहे गर्म हो रहे हो... इसको छोड़ दो, इस केस को कयो खोला आपने। "

त्रिपाठी ने मुस्कराते हुए पूछा ----" ये मै आपसे पूछुंगा, कि केस खोलू या न। "

दूसरी ओर से स्टपती सी क्रूरता भरी आवाज़ आयी ---" केस खोल लिए हो जनाब... बंद हम ही करेंगे। "

"इतना दम रखते होते ---तो दो अफसरों को ऐसे न मारते.. जैसा तुम कुतो ने किया हैं।"

तभी फोन कट कर गया। सोच ऐसे ही बरकरार थी। त्रिपाठी ने तभी फोन किया... " शोभा बच्चे घर आ गए हैं ----"

दूसरी और से ----" हांजी... आ गए हैं... होम वर्क कर रहे हैं। कया हुआ। "

तभी जीप से घर की ओर रवानगी थी त्रिपाठी की -----

बम्बे के बाजार की भीड़ से गुज़र हो जाना बहुत कठिन था। रास्ते  मे एक शिव शंकर जी का मंदिर आता था... जिसकी घंटी अक्सर वजती रहती थी... कितना वो हर पल बॉमूल्य होगा कि कान मे उसकी गुज पड़ती थी। खसबू उतने से रास्ते बिखरी रहती थी।

(---चलदा )                     नीरज शर्मा।