taam zinda hai -----(2) Don't consider life so valuable that you lose every battle because of it in Hindi Detective stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | टाम ज़िंदा हैं - 2

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टाम ज़िंदा हैं - 2

टाम ज़िंदा है -------(2) धारावाहिक।

मृत्युलोक मे ज़ब भी अच्छा करने की किसी ने भी कोशिश की, उसका सब कुछ बिखर गया। कोई भी ऐसा कयो नहीं कर सकता। ये जीवन की कुछ कड़िया है।

तंग गली मे त्रिपाठी का गोरमिंट फ्लेट था... पुलिस वालो का जैसा होता है... पहले सीढिया चड़ कर, फिर साथ ही कमरा, बाहर बालकोनी... साथ मे एक बेडरूम, अटैच बाथरूम। किचन एक दम से खुला हुआ था। कोई डोर नहीं थी... आज कल का फेशन का किचन... ड्राइंगरूम मे एक सडोल आदमी की पिचर लगी हुई ओर हार डले हुए पुलिस वर्दी मे... ये त्रिपाठी के पिता थे। जो पुलिस की नौकरी पूरी कर के गए थे। नीचे फ्लेट के कास्टेबल बॉय रहता था जो अकेला ही था... कलोनी तंग गली मे अच्छी स्तिथि मे थी। बस मुसीबत थी बच्चों की पार्क इससे काफ़ी दूर तो नहीं थी... लेकिन वहा शायद ही कोई जाता हो।

त्रिपाठी की माँ जयादा तर चिटी साड़ी मे ही रहती थी... गोल चेहरे मे नाक लम्मा था। त्रिपाठी का भी नाक इस लिए लम्मा ही था।

उसकी बीवी शोभा जिसका चेहरा ना गोल ना लम्मा था हसने पर उसकी ठोड़ी का कट जैसे टोया बन जाता था।

दो बच्चे थे जो अच्छे स्कुल मे पढ़ रहे थे आखिर इंस्पेक्टर की औलाद थी। गुड़िया बड़ी थी... लड़का चार साल छोटा था। शोभा एक अच्छी घर की हाउस वाइफ थी...

हाँ जो नीचे फ्लेट मे कास्टेबल बॉय अँधेरी मे पोस्टिंग पर था... जयादा तर त्रिपाठी की वाइफ उसे भईया मानती थी...

आजकल त्रिपाठी थोड़ा अशांत चल रहा था।

शोभा ने कितनी वार पूछा था, आखिर त्रिपाठी जी कया हुआ। वो बस यही कहता रहा -----" ऐसा करो तुम, बच्चों को लेकर मै तुम्हे बॉय कास्टेवल को लेकर आपने भैया संतोष जंग के घर जा आओ... "

"-- ठीक है, मान लेती हूँ, पर कयो... " शोभा का फिर वही जबाब था।

"सुनो --- कभी कभी पुलिस लाइन मे ऐसा करना पड़ता है... " त्रिपाठी ने कहा।

तभी एक मोबइल काल -----

"हेलो " अजनबी किसी लड़की की सुरीली आवाज।

" हूँ स्पीकिंग ---" त्रिपाठी ने उच्ची स्वर मे कहा।

" बड़े स्मार्ट हो.. डिअर त्रिपाठी जी... और काम के प्रति वफादार भी.... जैसे एक कुत्ता होता है। "

" तुमने अभी मेरी वफादारी देखी ही कहा है... चोर को पकड़े जाने का भय अक्सर रातो को सोने नहीं देखा... मैं पुलिस अफसरों की मौत का बदला..... " तभी अचानक फोन कट कर गया.... पास ही एक बम्ब धमाका हुआ... जिससे फ्लेटो की खिड़कियों के शीशे टूट गए। और बहुत देर तक कानो मे छा छा छा होती रही।

उस तंग गली मे जो यही वही था सिमट गया। माली नुकसान था.. एक इमारत गिर गयी थी... किसी की जान नहीं गयी थी। पुलिस की गाड़ियों की लम्मी चीखे चारो ओर छायी हुई थी... ये जो साथ नुकड़ वाली अंकम्प्लीट इमारत थी उसका कुछ हिस्सा ख़डी पार्किंग की गाड़ियों पर गिर गया था... ये धमाका बम्ब का था।

सूरज दुपहर का गर्म आग बरसा रहा।

घेरा पुलिस ने कारो से उतरते ही डाल लिया था... उसमे त्रिपाठी भी शामल था। ज़िन्दगी की जंग का यही से एलान बहुत ही भावुकता से भाग दौड़ जैसे होता है।

(चलदा)---------------- नीरज शर्मा।