टाम ज़िंदा है -------(9) धारावाहिक
मिलते किसी की झोली मे फुल तो किसी की झोली मे खार... जान सकते हो, कयो होता है ऐसा, कर्मो के फल नतीजे होते है। नतीजे रब की दरगाह से आते है संदेश बन कर, किसी को इसका पता चलता है किसी को नहीं...
इंडिगेटर वो सब को ही देता है। पहले कया होगा यही मालूम किसी किसी को होता है।
आज के जमाने मे भी जूती पालिश वाला जूती पालिश कर रहा था, कयोकि घर मे चार ज़ी भूखे खाने को थे। अब कया करता... जूती पालिश छोड़ कर।और कया करे।
1985 साल का महीना फ़रवरी का अंत ही था। हाँ, बलदेव सिंह ने सुबह के 10 वजे के करीब बूट पालिश कराई थी... सामने चौक मे cctv कैमरा लगा था, कनेक्ट कनेक्शन पुलिस हेडकवाटर मे था... " नजदीक से देखो "
बलदेव सिंह पुलिस चौकसी हो चुकी थी.. पर वो वहा से किधर चला गया। पूछताश मोची से शुरू, " अभी अभी आदमी किधर गया " बेहूदा प्रश्न था। "साहब कौन "
" पता होता तो तुम्हे कयो पूछते " फिर बेहूदा प्रश्न।
तीन दिन के बाद दिखा था ------
करीब करीब की सब दुकाने झांक मारी थी। कही भी नहीं मिला। पुलिस हताश थी।
त्रिपाठी ने तरवेणी मंदिर की घंटी वजायी ही थी... तभी सब लोगों मे एक जबरदस्त दहशत का माहौल बन चूका था... सब तरफ चीख पुकार थी....
त्रिपाठी जल्दी से सीढ़ी उतरा... वो वर्दी के बिना शर्ट और पेंट मे एक तरफा वाल को बनाये था। उसकी आखें हैरत से खुली की खुली रह गयी।
वही बलदेव सिंह का कत्ल गले पे तीखी किसी चीज से हो चूका था। त्रिपाठी जान चूका था.... ये कौन है। उसने एम्बुलेंस को फोन किया...
एम्बुलेंस मोके पर पहुंच चुकी थी।
उसको हॉस्पिटल मे त्रिपाठी के साथ ले जाया गया।
डॉ गयान मूर्ति को उसने गंभीरता से कहा ----" जनाब ये खबर फैला दो, कि मरीज की हालत बहुत अच्छी है "
" त्रिपाठी जी हम कैसे कह सकते है। मरे होये को ज़िंदा घोषित करे। "
उसने आपना इडंटी कार्ड डॉ को दिखा कर कहा...." प्ल्ज़ डॉ साहब ----मुजरिम जरूर आएगा रात को... इसे मारने को... टीवी मे खबर दें दो... प्ल्ज़। "
"सर हम मानवता के आधार पे ऐसा नहीं कर सकते। " डॉ ने सीधा जवाब दिया।
तभी ----------------
Dsp रणवीर का मोबाइल वजा.... " त्रिपाठी जल्दी केसरी रोड पर जाओ, तुम केस की जानकारी रखते हो, एक ज्योति नाम की लड़की सड़क पर गिरी हुई पायी गयी... शायद उसकी दायी जाघ पे गोली लगी है। "
"यस सर "
--"हाँ सर वो केस के बारे काफ़ी कुछ जानती है। "
त्रिपाठी वही पहुच गया था। वहा से पता चला कोई झगड़ा था, सब पुलिस का सायरीन सुनके निकल गए।
ये खबर एक रिक्शे वाले ने दी थी।
सब चौपट हो गया। Dsp को दुबारा पूछ भी नहीं सका, विचारा त्रिपाठी जी।
टाइम देखा तो 11रात के हो रहे थे। बम्बे जाग रहा था, वही चहल पहल थी। वो भी तो आदमी था, सही मे, थक चुका था... घर जाने से पहले उसने एक बोतल शराब की खरीद लीं थी वो भी जॉनी वोकर। घर के लिए तैयारी कर लीं थी। घर पुहच कर उसने डोर बैल वजायी... उसकी बीवी ने डोर खोला... " पूछा कुछ भी नहीं, कयो ठीक हो। " वो चुप थी। गहरी सोच मे, फिर रोने लगी... आपने कितना कहा, मै समझी ही नहीं... चले जाओ... चले जाओ..... फिर एक दम सनाटा।
(चलदा)---------------- नीरज शर्मा