टाम ज़िंदा है -----(3)
पुलिस के आने की भगदाड़ ने बहुत लोगों को वही का वही रोक लिया था.. बिना वरंट के ही चेकिंगे शुरू कर दी गयी थी.. कोई आपनी जगह से हिलना तो दूर सास भी जैसे बहुत तो भय से डरे आपने आप से लड़ रहे थे.. "कयो आये इस पुलिस हेड लाइन मे "-----। घर और दुकाने खुला खुला के सब परफेक्ट जांच की गयी थी... सुराग मिल चूका था... हसन इतना बम्ब और पिस्टल बनाने मे माहिर था उससे भी चूक हो गयी थी। ज़ब पुलिस को पता चला तो बस, उसे ले चले मामा जी की सुसराल। बहुत मिनते की.. पर कोई फायदा नहीं हुआ.. गैर कानूनी काम, वो भी पुलिस को पता ही नहीं चला, वो भी दूसरी बार.. मिला था बम्बे के दादरी पुलिस छेत्र से... और ले के जा रहे थे, बरखुरदार को सीबीआई हेड ऑफिस । " दखल दिया तो सिर्फ " त्रिपाठी जी ने ---" सर अगर इसे मेरे पास दो दिन तो रखो... फिर भेज देंगे।
पता तो लगे कौन कौन है इस काम के पीछे। " तभी सीबीआई के मुंशी विघ्न दास ने कहा ---" कौन से झंडे गाड लोगे... तुमने बहुत बड़ी एक गलती की है, जो दबे हुए केस को दुबारा खगालने लगे हो... " त्रिपाठी मुश पर हाथ फेरता बोला " दो अफसरों की जानकारी आपको मिली है, पुलिस की वर्दी से कोई गुडा भी खेल जाये तो हम हाथ धरे रहेंगे। " बहस पर उतरने को एक दम से तैयार... पर विघ्न दास ने चुपीमे भली समझी।
" चलो एक रात इस थाने मे रखते है, फिर त्रिपाठी हमें आगे केस को देगा "
हसन आपनी बेवकूफी पर परेशान था। उसे जेल कोठड़ी मे रखा। उसका मुँह लम्मा सा, ठोड़ी पे उगी हुई दाड़ी बिलकुल बारीक़ बारीक़ सी थी। मुशे न मात्र थी..सिर पर गोल टोपी मुस्लिम थी... हाथ काले जैसे भठी मे सड़े हुए थे। चिटा कुरता पजामा शरीर को ढक रहा था।
बारा वजे के करीब ----- कोठरी का किंवाड़ ची- ची - करता खुला था। लाइट जल उठी थी। सामने त्रिपाठी को देख, हसन का रंग पीला पड़ गया था। सोचने पर मजबूर हो चूका था... " हसन बम्ब कब से बना रहे हो... " हसन खमोश ही था... तभी
एक दम से बोला... " सर आपके हर काम आ सकता हूँ... "
त्रिपाठी एक दम से चुप था... " कैसे "
" जो केस आप खंगाल रहे है... इसके पीछे कौन कौन है... सच मे। "
" ओह.. तुम ऐसा कयो करोगे। " त्रिपाठी ने पूछा।
सर जेल जाने से बच जाऊगा... और घर मे एक मै ही हूँ कमाने वाला सर। "
"बड़ा दिमाग़ रखते हो..." त्रिपाठी ने पूछा। फिर बोला ---" जानते हो सीबीआई इन्क्वायरी होंगी तुम्हारी... तो एक एक वाल उखाड़ देंगे। " हसन डर के बोला --- " सर आप यकीन करे, मै आपके हर काम आ सकता हूँ। " त्रिपाठी हस पड़ा।
" कैसे --- बताओ कुछ। "
बम्ब की खेप वो प्रेम के आदमी मेरे से लेते है... प्रेम वही ज्योति की पार्टी का गेंगवार है सर। "
ठहरो अभी... मुँह बंद रखो... पहले तुम फ इ र मे झूठ साबित करो। "
"सर जी कैसे ? " हसन घबरा रहा था।
"धमाका जो हुआ तुम्हे कुछ पता ही नहीं..." त्रिपाठी का तजुर्बा बोल रहा था।
पर सर मेरे से हुआ... गलती से पुटाष भरते फट गया... मै कमबख्त बच गया.. लोग बच गए... शुक्र है मालिक का। "
"सोचते है तुम कैसे बचते हो... " त्रिपाठी ने बारीकी से कहा।
"अगर इस केस के बाद, तुमने कोई चलाकी की, तो गोली सिर के आर पार। " त्रिपाठी ने सुझाव दिया।
नहीं सर... आप मुझे बचा रहे है.. तो मै आपको ही परेशान करुँगा... नहीं सर। "
दीवार पर लगे क्लॉक पे दोनों सुईया चार वजे पर टिकी थी... भोर हो गयी थी.. चिडियो का चेहकना शुरू था...
(चलदा )--------- नीरज शर्मा