Taam Zinda Hai - 4 in Hindi Detective stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | टाम ज़िंदा हैं - 4

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टाम ज़िंदा हैं - 4

टाम ज़िंदा है ----- (4)
तकलीफ के बाद किसी को पेट भर रोटी खिला देना, नंगे पैर काटे चुभते है, कौन कहता है फूलो की बसती मे ऐसे घूमो। आज ख़त्म होंगे  किसी के लिए, बनो तो सही पहले। तुम कया जानते हो, कुछ भी नहीं, करता तो कोई ओर है। जिंदगी को शातिर बनो । सुस्त नहीं।
लिखा लिया था ----- खाली पेज पे सिग्नेचर, उसने उर्दू मे किये थे। मुंशी सीता राम जो उर्दू आठवीं तक पढ़े थे।
उन्होने पढ़ा था.... हसन तुगलक।
कागज भी वेरिफिकेशन हो चूका था... एक नहीं दो।
एक मे लिखा था... शर्त जो पुछूगा, उसका जबाब सही ढंग से दिया जायेगा। माफिक लगे तो सही।
उसे बिना जमानत के छोड़ दिया गया था.... इमारत अखबारों मे कई रिसालो का हिसा बनी थी। 
------------------------------- फोटोग्राफर अक्सर न्यूज़ वाले ये जानना चाहते थे कौन था इसके पीछे। पुलिस ने लोहे की गर्म धातु का दोष निकाल दिया था... कभी कभार हो जाता है। 
सब हैरान थे। हसन को अंडरग्राउंड कर दिया था।
सब शतरज की चाल खेल सकते है। तो पुलिस वाले कयो नहीं। डर इतना पैदा करो कि अंधेरे मे भी साप की लकीर को पीटना न छोड़े। यही पुलिस का चक्रविओ है।
तभी एक ओवर कोट पहने 26 का युवक एक तरफ ढेर सारा सरसो का तेल लगाए चीर लगाए वाल बनाये, लम्मे बुटो मे सड़क पर आता दिखाई दिया.. और भी लोग थे।
पर स्वेदनशील युवक था वो। तभी सब का धयान आकर्षित करते हुए वो एक शॉप जो कार्नर पर थी उसकी सीढिया चढ़ गया था। ओर भी लोग थे उस बज़ार मे, पर सब की नजर उस पर ही थी। जानते हो तो बताओ,
इस लिए जनाब कि लोग तब तुमाहरी ओर देखेंगे.. ज़ब तुम लोगों से कुछ अजीब निराले लगते हो।
-----" हेलो मैडम " 
-------" मैं आप को जानती हूँ... " उसने जैसे बेनती सी की हो।
------" नहीं... आप से डील करने को आया था... " मैडम ज्योति हैरत मे थी। उसकी आकर्षक आखें जैसे प्रश्न कर रही हो।
वो टाप मे थी... लेकिन टॉप लेस का मतलब कंधो तक उसने कुछ भी नहीं पहना था... शायद ब्रा भी नहीं... नहीं तो उसकी तनिया दिखाई नहीं दी थी... इस लिए ये लिखना सुभाविक था।
जवानी उसकी बरकरार थी.. पर उम्र के हिसाब से डलती लग रही थी... सीना अब सडोल नहीं रहा था। डिलका भी नहीं था। पेट एक अभनेत्री की तरा था। टागे ठीक थी, जीन की हाफ पेंट कवर कर रही थी... वालो की बनावट बीच चीर निकाला और पुराने जमाने के पफ बनाये हुए थे।
"मिस्टर कौन सी डील " हैरत मे बोली।
" जैसे आप 50 को 100 कर देती है... मैंने काफ़ी सुना है... " 
उसने पैसे जो करीब एक लाख के ऊपर था मेज पर खिलार दिया था... जानबूझ कर।  ज्योति जैसे एक दम से घबरा गयी। " मिस्टर प्ल्ज़!! आप पैसा इकठा करे। "  
"और --- मेरी बात को समझे , बताना चाहती  हूँ..ऐसा कुछ भी आपने गलत सुना है... हाँ मै शेयर मार्किट का काम करती हूँ।"  चुप सी हैरत भरी निगहा से ज्योति ने बताया। 
किस किस शेयर पर तेजी है आज कल..... एक प्यार भरे लहजे मे बोला।
" ----- मै आपका नाम जान सकती हूँ... " 
"-----कयो नहीं.... " रुक कर बोला ----" मै अमर हूँ... उसने झूठ ही तो बोला था, कितना सफाई से.... बात बोलू... प्रेम सर से कब मिलू...
मिट्टी निकल गयी, ज्योति के पैरो के नीचे से, वो बोली ---" झूठ मत बोलो, तुम कोई ऐरे गैरे नहीं हो... " अमर हसा... " प्रेम के नाम से हिल कयो गयी... ज्योति " वो इतना नीचे झुकी, कि उसका गदेला सा सीना दिख सके और वो थोड़ा तो आकर्षित हो। पर ऐसा सब असभव था.... फिर वो आपना विस्टिंग कार्ड देकर सीढिया उतर गया।
दस मिनट के लिए वो स्तम्भत रही। ये कैसा आदमी जो माथे लगा। धुप का डूबते सूरज का लिशकारा सामने दीवार पर पड़ता हुआ कब नीचे को जा रहा था... धीरे धीरे। 
(चलदा ) ------------------------------नीरज शर्मा 
                                        पिनकोड : 144702  
                            शाहकोट, जलधर।