भाग 1: पहाड़ी गाँव का रहस्यउत्तराखंड की ऊँची पहाड़ियों के बीच बसा एक छोटा-सा गाँव "कालीधार" अपने सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि रहस्यमयी घटनाओं के लिए प्रसिद्ध था। हर पूर्णिमा की रात गाँव के पास स्थित पुराने मंदिर से अजीब सी ध्वनि सुनाई देती — जैसे कोई कराह रहा हो, जैसे कोई पुकार रहाहो।
"क्या तुम्हें भी वो आवाज़ सुनाई देती है, मोहन?" — रघुवीर ने फुसफुसाकर पूछा।"हाँ... लेकिन ये कोई आम आवाज़ नहीं... इसमें कोई रहस्य है, कोई अनकही बात!"गाँव के लोग इन आवाज़ों से डरते थे। बच्चों को रात में बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। कहा जाता था कि उस मंदिर में एक प्राचीन शाप छिपा है, जिसे कोई भी नहीं तोड़ सका।
---भाग 2: रहस्यमयी आगंतुकएक दिन गाँव में एक अजनबी आया — लंबा कद, गहरी आँखें, और चेहरे पर गंभीरता की लकीरें। उसका नाम था विवेक राव — एक पत्रकार, जो इस गाँव के रहस्य को उजागर करने आया था।"मैं किसी कहानी के पीछे नहीं, एक सच्चाई के पीछे आया हूँ... और इस सच्चाई की जड़ें बहुत गहरी हैं," उसने पंचायत भवन में घोषणा की।गाँववालों ने उसे संदेह की नजर से देखा, लेकिन रघुवीर जैसे कुछ जिज्ञासु लोगों ने उसका साथ देने का निश्चय किया।---
भाग 3: मंदिर की छायाविवेक ने रात को मंदिर की ओर रुख किया। पूर्णिमा की रात थी। हवा में सिहरन थी। मंदिर के अंदर काली मूर्ति के पीछे एक गुप्त द्वार मिला। द्वार खुला, और उसके पीछे एक पतली सुरंग निकली।"ये सिर्फ मंदिर नहीं... ये किसी गहरे राज़ की परत है," विवेक बुदबुदाया।सुरंग अंधेरी थी, लेकिन विवेक की आँखों में जिज्ञासा की रोशनी थी। जैसे-जैसे वो आगे बढ़ा, दीवारों पर प्राचीन लिपियों की छाया दिखने लगी।---
भाग 4: रहस्य खुलते हैंसुरंग के अंत में एक गुप्त कक्ष था जहाँ प्राचीन ग्रंथ, हथियार और एक पुरानी डायरी मिली। डायरी में लिखा था:"कालीधार सिर्फ एक गाँव नहीं, एक शापित प्रयोगशाला है, जहाँ वर्षों पहले राजा देवमणि ने काले जादू से अमरता का प्रयोग किया था...""राजा ने अपनी आत्मा को अमर बनाने के लिए साधुओं की बलि दी। लेकिन जादू उल्टा पड़ गया और उन साधुओं की आत्माएं इस भूमि से जुड़ गईं — कैद हो गईं।"---
भाग 5: शापित आत्माएंग्रंथों से पता चला कि प्रयोग असफल रहा और कई साधु आत्माएं बंध गईं। हर पूर्णिमा को वो मुक्त होने की कोशिश करतीं।"ये आवाज़ें किसी रहस्य की नहीं, पीड़ा की पुकार हैं... इन्हें मुक्ति चाहिए," विवेक ने कहा।रघुवीर ने पूछा, "पर हम क्या कर सकते हैं?""हमें उनका अंतिम संस्कार करना होगा — आत्माओं को शांति देने वाला यंत्र बनाना होगा।"---
भाग 6: गाँव पर हमलाएक रात अचानक गाँव पर हमला हुआ — हवा में काले धुएं के भूत उठ खड़े हुए। लोग डर के मारे घरों में छिप गए। खेतों में आग लग गई, मवेशी भागने लगे।"अगर हमने आज इन्हें रोका नहीं, तो ये पूरा क्षेत्र तबाह कर देंगे!" — रघुवीर चिल्लाया।विवेक ने यंत्र को सक्रिय करने की तैयारी शुरू की। मंत्रों का उच्चारण करते हुए उसने तांबे की पट्टियों से एक चक्र तैयार किया।---
भाग 7: अंतिम बलिदानयंत्र को सक्रिय करने के लिए किसी को अपनी आत्मा दान करनी थी। विवेक ने सबकी ओर देखा।"सच्चा पत्रकार वही होता है जो सच के लिए मर मिटे... मैं तैयार हूँ!"विवेक ने मंत्रोच्चारण के साथ चक्र में प्रवेश किया। चारों ओर तेज़ रोशनी फैल गई। आत्माएं धीरे-धीरे प्रकाश में विलीन होने लगीं।गाँव एक अजीब सी शांति में डूब गया।---
भाग 8: अंतिम पृष्ठसुबह जब गाँववाले मंदिर पहुँचे, विवेक वहाँ नहीं था — सिर्फ उसकी डायरी मिली:"अगर मेरी मृत्यु से किसी की आत्मा को मुक्ति मिलती है, तो मैं सदा के लिए जीवित रहूँगा — सच्चाई में, विश्वास में, और तुम सबके दिलों में..."गाँववाले आज भी मंदिर में दीप जलाते हैं और कहते हैं — "विवेक राव सिर्फ पत्रकार नहीं था, वो एक योद्धा था... अंधेरे के विरुद्ध सच्चाई का योद्धा।"समाप्त