दिल की धड़कनें क्यों बढ़ जाती हैं?
हर बार जब हर्षवर्धन उसके करीब आता, संजना का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता। उसकी सांसें जैसे अचानक तेज़ हो जातीं, और अंदर अजीब-सा कंपन दौड़ जाता, जैसे कोई अदृश्य ताकत उसे खींच रही हो। क्या यह डर था? या फिर… कुछ और?
संजना खुद से यह सवाल पूछने लगी।
हर्षवर्धन की मौजूदगी में एक अजीब सा आकर्षण था। वह जितना करीब आता, उतना ही उसकी बेचैनी बढ़ जाती। उसकी गहरी, काली आँखें जैसे कोई रहस्य समेटे हुए हों। उसकी सधी हुई आवाज़, जो हर बार संजना को जकड़ लेती थी। और उसका स्पर्श… जो न चाहते हुए भी उसकी धड़कनों को बेहिसाब कर देता था।
क्या वह सच में खतरनाक था?
अगर हर्षवर्धन खतरनाक होता, तो उसने अब तक उसे नुकसान क्यों नहीं पहुँचाया? हाँ, उसने उसे किडनैप किया था, लेकिन न तो कोई चोट पहुंचाई और न ही कोई डराने वाली बात की। बस एक ही चीज़ थी जो वह बार-बार दोहराता था—
"तुम मेरी कैदी हो!"
लेकिन क्यों? क्या कोई पुराना हिसाब बाकी था? या फिर कोई ऐसी बात, जो संजना नहीं जानती थी?
संजना को वह रात याद आई, जब सबकुछ बदला था। उसे ठीक-ठीक तो याद नहीं था, पर इतना ज़रूर याद था कि वह अपने दोस्त की पार्टी से लौट रही थी, तभी अचानक किसी ने उसे रोका था। उसके आगे सब धुंधला था, लेकिन जब उसने होश संभाला तो वह यहाँ, इस वीरान वैयरहाउस में थी। और उसके सामने था हर्षवर्धन—चुपचाप, उसकी ओर देखता हुआ।
रहस्यमयी परछाइयाँ
वह अपने विचारों में खोई थी, जब उसे महसूस हुआ कि दरवाजे के बाहर कोई मौजूद है। उसने धीरे से सिर उठाया। हल्की परछाई दरवाजे के नीचे दिख रही थी। दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
"हर्षवर्धन!"
क्या वह फिर आ रहा था? क्या अब उसे अपने सवालों के जवाब मिलेंगे? या फिर यह पहेली और उलझ जाएगी?
संजना ने धीरे से उठकर दरवाजे की तरफ देखा। परछाई वहीं थी। उसने अपने अंदर की घबराहट को संभाला और धीरे से दरवाजे के पास गई। लेकिन जब उसने दरवाजा खोला… वहाँ कोई नहीं था।
उसने चारों ओर देखा—खामोशी। हल्की हवा का झोंका उसके बालों को छूकर निकल गया। उसे एक पल के लिए लगा कि शायद यह उसका भ्रम था। लेकिन दिल की धड़कनों की गूंज अब भी उसे महसूस हो रही थी।
खामोशी और बेचैनी
वह धीरे-धीरे वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। हालाँकि, अब उसे वहाँ बैठे-बैठे बोरियत महसूस होने लगी थी। माहौल में अजीब-सी चुप्पी थी, और उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
कुछ सोचकर वह अपनी जगह से उठी और वैयरहाउस में घूमने निकल पड़ी।
यह जगह काफी बड़ी थी, चारों ओर लंबी-लंबी दीवारें और ऊँची छतें। पुरानी लकड़ी की सीढ़ियाँ एक तरफ कोने में पड़ी थीं, और हल्की-हल्की धूल की परत पूरे माहौल को और रहस्यमय बना रही थी।
संजना चलते-चलते अलग-अलग कमरों को देखने लगी। कुछ कमरे बंद थे, तो कुछ अधखुले। हर कमरे का अपना अलग अहसास था—कुछ में पुरानी चीजें भरी थीं, तो कुछ लगभग खाली पड़े थे।
एक कमरे में उसने देखा कि पुराने लकड़ी के बक्से रखे हुए थे। उसने उत्सुकता से एक बक्सा खोला। अंदर कुछ पुराने कागज़ात और तस्वीरें थीं। उसने गौर से देखा—उनमें से एक तस्वीर हर्षवर्धन की थी!
संजना चौंक गई।
इस जगह का हर्षवर्धन से क्या रिश्ता था?
अतीत के सुराग
संजना ने तस्वीर को पलटकर देखा। पीछे कुछ लिखा था—
2000 ? यह तो बहुत पुरानी तस्वीर थी। पर इसमें हर्षवर्धन लगभग वैसा ही दिख रहा था, जैसा वह आज है।
कैसे संभव है?
तभी उसे पीछे किसी के चलने की आहट सुनाई दी।
वह झटके से मुड़ी।
"देखने में क्या दिलचस्पी है, संजना?"