भाग 6
जौहरी की दुकान में सायरन की ऐसी चीख सुनकर, जैसे किसी ने भूत देख लिया हो, टिमडेबिट का दिल ऐसे धड़कने लगा, जैसे ढोल बज रहा हो। बाहर खड़ा वह झट से समझ गया कि दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली हो गई है! उसने तुरंत नैना को ऐसा मैसेज किया, जैसे कोई खतरे का अलार्म बजा रहा हो, "ओए नैना, फुर्ती दिखा! सायरन बज रहा है!"
अंदर दुकान में, नैना कीमती हारों को अपने बैग में ऐसे ठूँस रही थी, जैसे कोई बच्चा अपनी पसंदीदा कैंडी छुपाता है, जब अचानक वह कानफाड़ू आवाज़ उसके कानों में ऐसे पड़ी, जैसे किसी ने कान के पास सीटी बजा दी हो। वह फौरन समझ गई कि उनकी प्लानिंग की हवा निकल गई है! घबराहट में उसके हाथ ऐसे काँपने लगे, जैसे बूढ़े आदमी के घुटने, और एक महंगा कंगन उसके हाथ से ऐसे फिसलकर नीचे गिर गया, जैसे मक्खन टोस्ट से।
उसी पल, दुकान का दरवाज़ा ऐसे टूटा, जैसे कोई कमज़ोर किला हो, और पुलिस अंदर ऐसे घुसी, जैसे बिन बुलाए मेहमान। नैना चारों तरफ से ऐसे घिर गई, जैसे मक्खियाँ शहद पर। टिमडेबिट बाहर से सब कुछ ऐसे देख रहा था, जैसे कोई फिल्म देख रहा हो। वह जानता था कि अगर वह अंदर गया तो वह भी ऐसे पकड़ा जाएगा, जैसे चोर पुलिस के जाल में। प्यार और डर के बीच वह ऐसे फंसा हुआ था, जैसे सैंडविच के बीच आलू।
लेकिन फिर, टिमडेबिट ने कुछ ऐसा देखा जिसने उसके होश उड़ा दिए! पुलिस के साथ दुकान में एक और शख्स ऐसे दाखिल हुआ था, जैसे हीरो के साथ विलेन - वह जौहरी का सबसे बड़ा दुश्मन, रमेश था, जिसके साथ नैना कुछ दिन पहले चोरी की योजना के बारे में ऐसी चिकनी-चुपड़ी बातें कर रही थी, जैसे कोई किसी को मक्खन लगा रहा हो।
टिमडेबिट को पलक झपकते ही सारा माजरा समझ में आ गया! नैना ने रमेश के साथ मिलकर यह सारा खेल खेला था! वह उसे ऐसे धोखा दे रही थी, जैसे कोई दोस्त पीठ में छुरा घोंप दे! गुस्से और विश्वासघात की ऐसी आग से टिमडेबिट का खून ऐसे खौल उठा, जैसे चाय की केतली।
उधर, पुलिस ने नैना को ऐसे गिरफ्तार कर लिया था, जैसे कोई कीमती सामान पकड़ लिया हो। नैना ने टिमडेबिट को बाहर देखा और उसकी आँखों में एक ऐसी अजीब सी मुस्कान थी, जैसे बिल्ली दूध पीकर मुस्कुराती है - एक ऐसी मुस्कान जिसमें जीत की चमक और धोखे की कड़वाहट घुली हुई थी।
टिमडेबिट वहां एक पल भी नहीं रुका। वह ऐसे तेज़ी से भागा, जैसे हवा से बातें कर रहा हो, उसका दिल ऐसे टूटा हुआ था, जैसे कोई कांच का बर्तन गिर गया हो, और दिमाग में सवालों का ऐसा बवंडर उठ रहा था, जैसे आंधी में पत्ते उड़ रहे हों। नैना ने उसके साथ ऐसा क्यों किया? क्या उनकी पूरी दोस्ती एक ऐसा नाटक थी, जैसे कोई नौटंकी?
अगले दिन, टिमडेबिट ने अखबार में ऐसी खबर पढ़ी, जैसे किसी ने बम फोड़ दिया हो, कि जौहरी की दुकान में चोरी हुई थी और पुलिस ने एक लड़की को गिरफ्तार किया है। लेकिन खबर में कहीं भी रमेश का नामोनिशान नहीं था!
टिमडेबिट समझ गया कि नैना ने उसे ऐसे फंसाया था, जैसे चूहे को पिंजरे में, और रमेश के साथ मिलकर सारा माल ऐसे उड़ा लिया था, जैसे जादूगर कुछ गायब कर देता है। अब वह अकेला और ऐसा बेवकूफ बन चुका था, जैसे किसी ने उसे उल्लू बना दिया हो!
भाग के अंत में रहस्य: टिमडेबिट अब क्या करेगा? क्या वह नैना से ऐसा बदला लेगा, जैसे कोई दुश्मन बदला लेता है? क्या वह पुलिस को सब कुछ ऐसे बता देगा, भले ही उसमें वह भी ऐसे फंस जाए, जैसे मक्खी शहद में? और नैना और रमेश अब ऐसे कहाँ ग़ायब हो गए हैं, जैसे गधे के सिर से सींग? जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए, अगर आपकी किस्मत में चटपटी खबरें पढ़ना लिखा है तो!
अगला भाग: टिमडेबिट की ज़िंदगी में एक ऐसा नया मोड़ आने वाला है, जैसे कहानी में कोई बड़ा ट्विस्ट आ जाए। एक ऐसी घटना घटेगी जो उसे पूरी तरह से ऐसे बदल देगी, जैसे दिन रात में बदल जाता है। जानने के लिए पढ़ते रहिए, अगर आपकी उत्सुकता आपको सोने दे तो!