भाग 1: गायब हैंडल का रहस्य
सुबह के 10 बजे थे। बरेली के एक व्यस्त बैंक में लोगों की ऐसी भीड़ थी, मानो कुंभ का मेला लगा हो। सब अपने-अपने काम में ऐसे डूबे थे, जैसे चींटी शक्कर के दाने पर। किसी का ध्यान एक कोने में खड़े उस दुबले-पतले आदमी पर नहीं गया, जिसका नाम टिमडेबिट था। वह ऐसे साधारण कपड़ों में था, मानो किसी सरकारी दफ्तर का बाबू हो, आँखों पर ऐसा चश्मा था जैसे दूरबीन और चेहरे पर ऐसी शांति थी जैसे बुद्ध भगवान समाधि में हों। लेकिन उसके दिमाग में ऐसी खुराफात पक रही थी, मानो ज्वालामुखी फटने वाला हो।
टिमडेबिट की गिद्ध दृष्टि बैंक के लॉकर सेक्शन पर टिकी हुई थी। वह वहां एक हफ्ता पहले ऐसे चक्कर लगा चुका था, जैसे जासूस किसी मिशन पर हो, और सभी लॉकरों को ऐसे घूर चुका था, मानो एक्स-रे कर रहा हो। आज उसका निशाना था लॉकर संख्या 37 का हैंडल - उसे पता था कि यह थोड़ा ढीला है, जैसे बूढ़े आदमी का दांत, और इसे निकालना ज़्यादा मुश्किल नहीं होगा।
उसने अपनी जेब से एक ऐसा छोटा सा औज़ार निकाला, जो दिखने में चाबी जैसा था, लेकिन असल में एक ऐसा टेढ़ा हुक था, जैसे साँप का बच्चा। वह बड़े ही दबे पाँव लॉकर संख्या 37 के पास ऐसे गया, जैसे बिल्ली चूहे के पास जाती है। आस-पास कोई मक्खी भी नहीं थी। उसने अपने औज़ार को हैंडल के नीचे ऐसे फंसाया, जैसे मछली काँटे में फंसती है, और हल्का सा ज़ोर लगाया। "क्लिक!" की ऐसी हल्की सी आवाज़ आई, जैसे किसी ने फुसफुसाया हो, और हैंडल उसके हाथ में ऐसे आ गया, जैसे जादू की छड़ी घूम गई हो।
टिमडेबिट ने हैंडल को अपनी जेब में ऐसे छुपाया, जैसे चोर खजाने को छुपाता है, और बिना किसी जल्दबाजी के बैंक से ऐसे रफ़ूचक्कर हो गया, जैसे हवा में उड़ता पत्ता। किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई।
घर पहुंचकर टिमडेबिट ने चोरी किए हुए हैंडल को ऐसे निहारा, जैसे कोई कलाकार अपनी masterpiece को देखता है। वह अंदर से ऐसा खुश था, मानो उसे लॉटरी लग गई हो। अब यह हैंडल उसकी खटारा अलमारी के दरवाज़े पर ऐसे लगेगा, जैसे ताज किसी राजा के सिर पर, और उसके कीमती कपड़ों को ऐसे सुरक्षित रखेगा, जैसे किला खजाने को।
लेकिन, बैंक में, लॉकर संख्या 37 का मालिक, जब अपना लॉकर खोलने आया तो हैंडल गायब देखकर ऐसे भौंचक्का रह गया, जैसे किसी ने उसे भूत दिखा दिया हो। उसने तुरंत बैंक के कर्मचारियों को ऐसे बताया, जैसे किसी ने बम फोड़ दिया हो। बैंक में ऐसी अफरा-तफरी मच गई, मानो मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मार दिया हो। सुरक्षा कैमरा फुटेज ऐसे देखा गया, जैसे कोई क्राइम सीरियल देख रहा हो, लेकिन टिमडेबिट इतनी सफाई से काम कर गया था कि कैमरा में भी वह हैंडल चुराते हुए ऐसे नहीं दिखा, जैसे हवा में गायब हो गया हो।
भाग के अंत में रहस्य: बैंक के मैनेजर ने पुलिस को ऐसे सूचित कर दिया था, जैसे किसी ने इमरजेंसी कॉल कर दी हो। पुलिस ने बैंक में ऐसी जाँच शुरू कर दी, जैसे किसी मर्डर मिस्ट्री को सुलझा रहे हों। क्या पुलिस इस अजीब चोर तक पहुँच पाएगी, जो सिर्फ ऐसी फ़ालतू चीज़ें चुराता है, जैसे कोई कबाड़ी? और टिमडेबिट का अगला निशाना क्या होगा - क्या वह किसी और बैंक में सेंध लगाएगा, या किसी और कबाड़खाने पर नज़र डालेगा? जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए, अगर आपकी किस्मत में इंतज़ार करना लिखा है तो!