THIEF BECOME A PRESEDENT - PART 3 in Hindi Crime Stories by saif Ansari books and stories PDF | THIEF BECOME A PRESEDENT - PART 3

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THIEF BECOME A PRESEDENT - PART 3

भाग 3: नगर पालिका का अनोखा घंटा
बरेली की नगर पालिका के पुराने भवन के बाहर एक ऐसा बड़ा सा घंटा लटका हुआ था, जैसे किसी हाथी के गले में घंटी। यह घंटा अब ऐसे बजता नहीं था, जैसे किसी बूढ़े की आवाज़, लेकिन कभी यह शहर को ऐसे समय की सूचना देता था, जैसे गाँव का चौकीदार। टिमडेबिट कई दिनों से इस घंटे को ऐसे ध्यानपूर्वक देख रहा था, जैसे कोई वैज्ञानिक किसी दुर्लभ नमूने को देखता है। उसे इस घंटे में कुछ ऐसा विशेष आकर्षण दिख रहा था - उसकी मोटी पीतल की चमकती हुई सतह, ऐसी जैसे सोने का टुकड़ा।
टिमडेबिट को पीतल ऐसा भाता था, जैसे किसी लोभी को सोना। उसे लगता था कि पीतल से बनी हुई वस्तुओं में एक ऐसी अलग ही चमक और वज़न होता है, जैसे किसी पुराने खजाने में। उसने ऐसा विचार किया, जैसे कोई आविष्कारक नया फार्मूला सोचता है, कि अगर वह इस घंटे का थोड़ा सा भी पीतल उतार ले जाए तो वह उससे अपने घर के द्वार के लिए एक ऐसा बहुत अच्छा खटका बना सकता है, जैसे किसी राजा के महल का दरवाज़ा खटखटाने वाला।
एक ऐसी रात्रि, जब नगर पालिका भवन के आसपास सब ऐसा नीरव हो गया, जैसे कब्रिस्तान, टिमडेबिट एक रस्सी और कुछ ऐसे औजारों के साथ वहां पहुंचा, जैसे कोई पर्वतारोही चढ़ाई के लिए जाता है। वह दीवार पर ऐसे चढ़ गया, जैसे कोई छिपकली चढ़ती है, और बड़े धीरे से घंटे के ऐसे समीप पहुंचा, जैसे चोर तिजोरी के पास पहुँचता है। घंटा ऐसा बहुत विशाल और भारी था, जैसे कोई हाथी का बच्चा। टिमडेबिट ने देखा कि घंटे को दीवार से जोड़ने वाली कुछ ऐसी बड़ी-बड़ी कीलें लगी हुई हैं, जैसे किसी दैत्य के दांत।
उसने अपने औजारों से उन कीलों को ऐसे खोलना आरंभ किया, जैसे कोई सर्जन ऑपरेशन करता है। पर्याप्त परिश्रम के पश्चात एक कील ऐसी निकल गई, जैसे किसी बूढ़े का दांत। घंटा थोड़ा ऐसा हिला, जैसे कोई गहरी नींद से जागा हो। टिमडेबिट ऐसा डर गया कि कहीं आवाज़ न हो जाए, जैसे किसी ने पीछे से डरा दिया हो। उसने रुककर आसपास ऐसी दृष्टि डाली, जैसे कोई जासूस सुराग ढूंढ रहा हो। सब ऐसा शांत था, जैसे किसी ने सब को सुला दिया हो। उसने दूसरी कील खोलनी शुरू की, ऐसे जैसे कोई दूसरा रहस्य खोल रहा हो।
अंततः, तीन कीलों के निकलने पर घंटा दीवार से ऐसे पृथक हो गया, जैसे किसी पेड़ से पका फल गिर जाता है। किन्तु वह इतना भारी था कि टिमडेबिट उसे ऐसे संभाल न सका, जैसे कोई बच्चा हाथी को नहीं संभाल सकता। "धड़ाम!" की ऐसी तीव्र ध्वनि के साथ घंटा नीचे ऐसे गिर पड़ा, जैसे कोई पहाड़ टूट गया हो।
ध्वनि सुनकर नगर पालिका भवन का प्रहरी, बूढ़ा रामू, अपनी ऐसी छोटी सी कुटिया से बाहर निकल आया, जैसे कछुआ अपने खोल से निकलता है। उसके हाथ में ऐसी एक लाठी थी, जैसे किसी बूढ़े योद्धा की तलवार। टिमडेबिट घंटे के नीचे ऐसे छिप गया, जैसे चूहा बिल में छिप जाता है। प्रहरी ध्वनि की ओर ऐसे बढ़ा, जैसे शिकारी अपने शिकार की ओर बढ़ता है।
भाग के अंत में रहस्य: क्या प्रहरी टिमडेबिट को घंटे के नीचे ऐसे छिपा हुआ देख लेगा, जैसे कोई शिकारी झाड़ियों में छिपे जानवर को देख लेता है? क्या टिमडेबिट इस बार ऐसे पकड़ा जाएगा, जैसे कोई जाल में फंसा पक्षी? और यदि वह ऐसे बच गया, जैसे कोई भूत हवा में गायब हो जाता है, तो इस भारी घंटे का वह ऐसे क्या करेगा, जैसे कोई बच्चा चाँद को पकड़ना चाहे? जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए, अगर आपकी किस्मत में रोमांच का इंतज़ार करना लिखा है तो!