भाग 8: राजनीति का पहला दांव और पुराने सायों का ऐसा हमला!
टिमडेबिट की राजनीतिक पारी शुरू होते ही बरेली की स्थानीय राजनीति में ऐसा भूचाल आ गया, जैसे किसी ने बम फोड़ दिया हो। 'आम आदमी की आवाज़' पार्टी ने ऐसी ज़बरदस्त लहर पैदा कर दी थी, जैसे सुनामी आ गई हो। टिमडेबिट की रैलियों में उमड़ती भीड़ और उसकी ऐसी सीधी, सच्ची बातें लोगों के दिलों को ऐसे छू रही थीं, जैसे कोई मीठा गाना। उसने भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसी खुली जंग छेड़ दी थी, जैसे कोई अकेला योद्धा पूरी सेना से लड़ रहा हो, जिससे कई पुराने और दबंग नेता ऐसे घबरा गए थे, जैसे किसी ने उनकी कुर्सी हिला दी हो।
एक रैली में, जब टिमडेबिट मंच से ऐसा भाषण दे रहा था, जैसे कोई शेर दहाड़ रहा हो, अचानक किसी ने उस पर ऐसा जूता फेंक दिया, जैसे किसी ने पत्थर मारा हो। टिमडेबिट बाल-बाल ऐसे बचा, जैसे मछली जाल से, लेकिन इस घटना से माहौल में ऐसा तनाव फैल गया, जैसे पतंग की डोर उलझ गई हो। उसके समर्थकों का गुस्सा ऐसे फूट पड़ा, जैसे ज्वालामुखी फट गया हो, लेकिन टिमडेबिट ने शांत रहने का ऐसा इशारा किया, जैसे कोई शांत समुद्र हो। उसने माइक पर आकर ऐसा कहा, जैसे कोई फ़लसफ़ा सुना रहा हो, "यह जूता नफरत का प्रतीक है, लेकिन हम इस नफरत को प्यार और विश्वास से ऐसे जीतेंगे, जैसे अँधेरे को रोशनी जीत लेती है।" उसकी इस प्रतिक्रिया ने लोगों का और भी ऐसा दिल जीत लिया, जैसे किसी ने कोई अनमोल चीज़ पा ली हो।
स्थानीय चुनावों में टिमडेबिट ने अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी, बाहुबली नेता ठाकुर सूरज सिंह को ऐसे भारी मतों से हराया, जैसे हाथी चींटी को हराता है। यह जीत सिर्फ टिमडेबिट की नहीं, बल्कि उन आम लोगों की ऐसी जीत थी, जो बदलाव चाहते थे, जैसे किसी प्यासे को पानी मिले।
लेकिन ठाकुर सूरज सिंह ऐसा हार मानने वाला नहीं था, जैसे कोई जिद्दी बच्चा अपनी ज़िद नहीं छोड़ता। उसने टिमडेबिट के अतीत को ऐसे खोदना शुरू कर दिया, जैसे कोई खजाना ढूंढ रहा हो। उसके गुंडों ने टिमडेबिट के पुराने पड़ोसियों और जानकारों से ऐसी पूछताछ की, जैसे कोई जासूस सुराग ढूंढ रहा हो। जल्द ही, टिमडेबिट की छोटी-मोटी चोरियों की ऐसी चटपटी कहानियाँ शहर में फिर से फैलने लगीं, जैसे जंगल में आग फैलती है। विपक्षी पार्टियों ने इसे ऐसा मुद्दा बना लिया, जैसे भूखे को रोटी, और टिमडेबिट को 'चोर नेता' कहकर ऐसा बदनाम करने की कोशिश करने लगे, जैसे कोई किसी के चेहरे पर कालिख मल रहा हो।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जब एक पत्रकार ने टिमडेबिट से उसके अतीत के बारे में ऐसा सवाल पूछा, जैसे कोई तीर मार रहा हो, तो उसने बिना किसी झिझक के ऐसा जवाब दिया, जैसे कोई सच बोल रहा हो। "हाँ, यह सच है कि मैंने अपने जीवन में ऐसी गलतियाँ की हैं, जैसे हर इंसान करता है। मैंने छोटी-मोटी चोरियाँ की हैं, क्योंकि तब मेरी परिस्थितियाँ ऐसी ठीक नहीं थीं, जैसे किसी ग़रीब की होती हैं। लेकिन मैंने उन गलतियों से ऐसा सीखा है, जैसे ठोकर खाकर आदमी सीखता है, और अब मेरा एक ही ऐसा मकसद है - लोगों की सेवा करना और एक बेहतर समाज बनाना। मेरा अतीत मेरा पीछा कर सकता है, जैसे साया पीछा करता है, लेकिन यह मेरे वर्तमान और भविष्य को ऐसे परिभाषित नहीं करेगा, जैसे पिंजरा परिंदे को परिभाषित नहीं करता।"
टिमडेबिट की इस ईमानदारी भरी स्वीकारोक्ति ने लोगों पर ऐसा गहरा प्रभाव डाला, जैसे पत्थर पर लकीर। उन्हें लगा कि आखिरकार उन्हें एक ऐसा नेता मिला है जो अपनी गलतियों को ऐसे स्वीकार करने की हिम्मत रखता है, जैसे कोई बहादुर अपनी हार स्वीकार करता है। उसकी लोकप्रियता और भी ऐसे बढ़ गई, जैसे आग में घी डालने से आग बढ़ती है।
भाग के अंत में रहस्य: ठाकुर सूरज सिंह अब ऐसा कौन सा नया चाल चलेगा, जैसे कोई शातिर खिलाड़ी चाल चलता है? क्या वह टिमडेबिट के अतीत का कोई और ऐसा गहरा राज़ सामने ला पाएगा, जैसे कोई बंद तिजोरी खोल दे? और क्या टिमडेबिट की बढ़ती हुई लोकप्रियता उसके दुश्मनों के लिए और भी ऐसी खतरनाक साबित होगी, जैसे शेर के मुँह में हाथ डालना? जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए, अगर आपकी किस्मत में रोमांच का तड़का लगा है तो!
अगला भाग: टिमडेबिट की राजनीतिक लड़ाई और भी ऐसी मुश्किल होती जाएगी, जैसे काँटों भरी राह। उसे न सिर्फ अपने दुश्मनों से, बल्कि अपनी पुरानी आदतों से भी ऐसे लड़ना होगा, जैसे कोई अपनी बुरी लत से लड़ता है। जानने के लिए पढ़ते रहिए, अगर आपकी उत्सुकता आपको सोने दे तो!