एक प्रेमिका//
जो प्रेम करते है वो जानते होंगे प्यार पाने से ज्यादा प्यार करने में सुकून मिलता है । दुनिया जमाने का प्यार मिल जाए और एक तरफ अपने प्रेमी को प्यार करने हक मिल जाए बस भले ही उससे कुछ न मिले तो भी वही प्रेमी की अभिलाषा होगी, दुनिया भर के प्यार की नहीं । प्रेम हैं ही इसी भावना बिना बुलाए कब मन में जागृत हो जाती है पता नहीं और फिर बुझती नहीं । मैं सखी प्रेम के विरह में जलती ओर प्रेमी के सुख की आशा करती प्रेमिका ...... मैं सखी..... सत्या की प्रेमिका.....हा उनकी ही रहूंगी अब मैं चाहे उनके जीवन में मुझे स्थान मिले न मिले । 2025 में भी 1990 वाला प्रेम जग गया है मुझमें । मैं उन्हें बहुत प्रेम करती हु । प्रेम का स्वरूप शायद कभी बदलता नहीं । तभी भी वैसा ही था और अब भी वही हैं । जो इसे करता है वहीं जनता हैं कि इसकी पीड़ा और सुख कैसा चरम पर होता है ।
मुझे याद है वो पल जब मैं उनसे मिली थीं। नेवी ब्लू शर्ट ब्लैक पेंट में थे वो जब मैने उन्हें पहली बार देखा था । मेरे पहले ऑफिस के केबिन में वो थे । हम साथ कम करने वाले थे । उन्हें मेरी जिम्मेदारी दी गई थीं। कई बाते हमे नहीं पता होती पर हमारा मन कई बाते जल्दी भाप लेता है वो अपना पराया बिना किसी लॉजिक के समझ ही जाता है । कुछ ऐसा ही मिलना रहा मेरा उनसे । हमारे बीच कुछ ऐसा खास बात नि हुई । ना दिल जोर से धड़का बस एक सुकून सा लगा मन को । वो शुरू से ही मेरे इतने करीब हो गए जो मैं खुद जान नहीं पाई।
सत्या जब तक खाना नहीं खाते मुझे खाना भाता नहीं । उन्हें भी मेरा किसी से काम के अलावा बात करना अच्छा नहीं लगता ये बात उनकी आंखों से झलक जाती उनकी खामोशी सब कह जाती और मैं पता नहीं कैसे उनकी वो खामोशी से डर जाती और सबसे दूरी बना लेती । ये संबंध जो था वो मुझे आज भी समझ नहीं आता बिना कुछ बात के ..बिना कोई बंधन के ये क्या हो रहा था हम तो सही तरीके से दोस्त भी नहीं थे ।
सत्या काफी हाइटेड और तंदुरुस्त तन वाले हैं हालांकि सांवला रंग है। पर बहुत अच्छे दिखते है । मुझे तो अच्छे ही लगते है में उनके सामने बहुत फीकी सी हु छोटे कद की मासूम चेहरे की । तब यही सोचती थी कि उनके जैसा मेरी जैसी की तरफ देखेगा भी नहीं । उन्हें तो नॉर्मल या ज्यादा हाइट की लड़कियों की खोज होगी । शायद घर वाले पसंद करके रखे हो या उनकी कोई पहले से gf होगी । या कोई होगी जो उनके करीब होगी जो चाहती होगी के वो बस कह दे ओर हा बोल दूं । मेरे जैसी उनके जीवन में शायद टाइम पास के लिए ही आ सकती है वो भी अगर उनके पास कोई ऑप्शन ना रहा तो या मुझमें कोई खास बात समझ आई तो ।
कितना नेगेटिव सोचती थी न । मैं ऐसी ही थी खुद को मैने कभी किसी की नजर में स्पेशल देखा ही नहीं । घर , समाज , दोस्त या कोई अजनबी ऐसा कोई भी नहीं था जिससे मुझे स्वयं को सही देखने का नजरिया मिले । एक लंबी बीमारी मैने झेली थी तो एक बीमार , लाचार , अबला वाली सोच तो थी ही बाकी कसर जिंदगी में आने जाने वाले लोगों ने पूरी कर दी।