भाग 2: रेलवे प्लेटफार्म बेंच की लकड़ी का रहस्यमय मामला
बरेली के पुराने रेलवे स्टेशन पर लोगों की आवाजाही ऐसी कम हो गई थी, मानो किसी ने भूत भगा दिया हो। टूटी-फूटी बेंचें और उड़ती धूल इसकी ऐसी कहानी बयान कर रही थी, जैसे किसी खंडहर की दीवारें। टिमडेबिट एक कोने में ऐसे बैठा था, जैसे कोई जासूस अपने शिकार का इंतज़ार कर रहा हो, आँखों पर ऐसा चश्मा लगाए जैसे गूगल ग्लास और आस-पास का मुआयना ऐसे कर रहा था, जैसे कोई प्रॉपर्टी डीलर ज़मीन का जायज़ा ले रहा हो। आज उसकी गिद्ध नज़र एक बेंच पर ऐसे पड़ी, जैसे शिकारी की नज़र हिरण पर। वह बेंच कई जगह से ऐसी टूटी हुई थी, जैसे बूढ़े आदमी की कमर, और उसकी एक लकड़ी की पतली तख्ती (plank) ऐसे अधूरी लटक रही थी, जैसे किसी गंजे के सिर पर एक बाल।
टिमडेबिट को वह तख्ती ऐसे पसंद आई, जैसे किसी भूखे को पनीर का टुकड़ा। उसके दिमाग में ऐसा विचार आया, जैसे किसी खाली बर्तन में अचानक पानी भर जाए। उसके घर की एक खटारा कुर्सी का पाया थोड़ा ऐसा ढीला था, जैसे किसी शराबी के पैर, और यह तख्ती उसके लिए बिल्कुल ऐसी रहेगी, जैसे अंधे को लाठी।
शाम ढलने का इंतज़ार करते हुए टिमडेबिट ने स्टेशन के लोगों को ऐसे देखा, जैसे कोई पक्षी उड़ते कीड़ों को देखता है। कोई भी उस लटकती हुई तख्ती पर ऐसे ध्यान नहीं दे रहा था, जैसे किसी ने कचरे के ढेर पर ध्यान नहीं दिया। जब अँधेरा ऐसा गहरा हो गया, जैसे किसी ने काली चादर ओढ़ ली हो, और स्टेशन ऐसा सुनसान हो गया, जैसे किसी ने सब को छुट्टी दे दी हो, टिमडेबिट ऐसे उठा, जैसे कोई भूत कब्र से उठता है। उसने अपने जेब से एक ऐसा छोटा सा स्क्रू ड्राइवर निकाला, जैसे डॉक्टर ऑपरेशन के लिए औज़ार निकालता है। धीरे से उसने बेंच के स्क्रू ऐसे खोले, जैसे कोई चोर तिजोरी खोलता है, और उस तख्ती को ऐसे अलग कर लिया, जैसे माँ अपने बच्चे को अलग करती है।
तख्ती को अपने झोले में ऐसे छुपाकर, जैसे कोई तस्कर सोना छुपाता है, टिमडेबिट स्टेशन से ऐसे बाहर निकल गया, जैसे रात का उल्लू शिकार लेकर उड़ जाता है। रास्ते में उसे ऐसी हल्की सी हँसी आ रही थी, जैसे किसी बच्चे को शरारत करने के बाद आती है। बैंक का हैंडल और अब रेलवे बेंच की तख्ती! उसकी खटारा अलमारी और टूटी कुर्सी अब और भी ऐसी 'सुरक्षित' हो जाएंगी, जैसे किसी किले के अंदर खजाना।
लेकिन, अगले दिन, जब एक बुज़ुर्ग आदमी स्टेशन पर ऐसे आया, जैसे कोई सुबह की सैर पर निकला हो, और उस अधूरी बेंच पर ऐसे बैठने लगा, जैसे कोई सिंहासन पर बैठता है, तो वह अधूरी बेंच देखकर ऐसे चौंक गया, जैसे किसी ने उसे करंट मार दिया हो। उसने स्टेशन मास्टर को ऐसे बताया, जैसे किसी ने एलियन देखा हो। स्टेशन मास्टर भी ऐसा हैरान था, जैसे किसी ने उससे चाँद पर जाने को कह दिया हो। आखिर कौन बेंच की एक तख्ती ऐसे चुरा सकता है, जैसे कोई बच्चा लॉलीपॉप चुराता है?
भाग के अंत में रहस्य: स्टेशन मास्टर ने रेलवे पुलिस में ऐसी रिपोर्ट दर्ज करवाई, जैसे किसी ने संगीन जुर्म किया हो। पुलिस अब स्टेशन के सुरक्षा कैमरों की ऐसी जाँच कर रही है, जैसे कोई जासूस सुराग ढूंढ रहा हो। क्या इस बार टिमडेबिट कैमरा की गिद्ध नज़र से ऐसे बच पाएगा, जैसे कोई भूत दीवार से गुज़र जाता है? और उस रेलवे बेंच की तख्ती का टिमडेबिट अपनी खटारा कुर्सी में ऐसे कैसे इस्तेमाल करेगा, जैसे कोई जादूगर अपनी छड़ी का? जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए, अगर आपकी किस्मत में पहेलियाँ सुलझाना लिखा है तो!