Kya tum mujhe chhod doge - Part - 10 Last part in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | क्या तुम मुझे छोड़ दोगे - भाग - 10 (अंतिम भाग)

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क्या तुम मुझे छोड़ दोगे - भाग - 10 (अंतिम भाग)

हर्ष की बीमारी में गरिमा उसकी बहुत सेवा कर रही थी, बहुत ध्यान रख रही थी। वह उसके घाव पर मरहम इस तरह लगाती मानो प्यार से उसे सहला रही हो।

तब हर्ष को वह सब याद आता जब गरिमा का शरीर बदल जाने के बाद उसका व्यवहार गरिमा के प्रति बदल गया था। हर्ष को अपने व्यवहार पर अब बहुत दुख होता। लेकिन बीता समय और मुंह से निकले शब्द कभी लौट नहीं पाते। जो बीत गया वह समझो कि यादों के पटल पर लिख दिया जाता है। उसकी यादें भले ही थोड़ी फीकी पड़ जाएँ परंतु उसकी आकृति, उसकी छवि कभी नहीं जाती। वह तो इंसान के दिलों दिमाग़ में हमेशा-हमेशा के लिए अंकित हो जाती है।

हर्ष की तबीयत बिगड़ती जा रही थी। उसे गरिमा के वह शब्द कई बार याद आ जाते थे; जब वह उसे यह कह कर समझाती थी कि हर्ष शरीर केवल माया जाल है। वह हमें आकर्षित ज़रूर करता है परंतु वह स्थायी नहीं होता। एक न एक दिन वह अपनी सुंदरता खो देता है। यहाँ तक कि अपना वजूद भी खो देता है। लेकिन प्यार वह तो अमर है, वह हमेशा-हमेशा के लिए जीवित रहता है। किसी के जीने पर भी और उसके मरने के बाद भी।

हर्ष अपने कमजोर होते शरीर और गिरे हुए बालों को जब भी देखता, उसकी आंखों में आंसू भर आते। उसे तब यह एहसास और दुखी कर देता कि जिस सुंदरता के नशे में वह चूर था, वह तो उसे धोखा दे गई। उसका घमंड चकनाचूर हो गया। लेकिन उसके पापा मम्मी का प्यार आज भी बिल्कुल वैसा ही है, जैसा पहले हुआ करता था; बल्कि वे पहले से ज्यादा फ़िक्र करने लगे हैं। गरिमा भी कितना प्यार करती है, उसके शरीर से नहीं बल्कि वह उससे प्यार करती है। इतनी सी बात को वह खुद क्यों नहीं समझ पाया।

तभी गरिमा ने देखा हर्ष की आँखों से आंसू बह रहे थे। तब हर्ष के पास आकर उसके आंसुओं को पोछते हुए गरिमा ने कहा, “हर्ष क्या सोच रहे हो? ज्यादा सोचो मत बस खुश रहने की कोशिश करो। यह देखो तुम्हारी बिटिया, तुम्हें अपना मोरल बिल्कुल भी डाउन नहीं करना है। तुम्हें जीना है हमारे लिए और अपने लिए। तुम अपने अंदर सकारात्मकता लाओ। हर्ष सब ठीक हो जाएगा। हमें बहुत जल्दी पता चल गया है इसलिए डरने की जरूरत नहीं है। डॉक्टर भी कितने विश्वास के साथ कह रहे हैं कि आप ठीक हो जाओगे।"

हर्ष के माँ और पापा अपने बेटे के लिए पूजा पाठ में लगे ही रहते थे और गरिमा उसकी सेवा में। आखिरकार भगवान ने उन सब की प्रार्थना सुन ली और हर्ष ठीक होने लगा। खुशी ने एक बार फिर उनके घर में प्रवेश कर लिया। हर्ष के सिर पर फिर से बाल उगने लगे। मेहनत और इच्छा शक्ति ने उसके शरीर को भी एक बार फिर से सुडौल बना दिया।

अब सब कुछ पहले के जैसा होने लगा था। उसका शरीर फिर से पहले की ही तरह आकर्षक लगने लगा। लेकिन हर्ष का मन वह तो पूरी तरह से बदल गया था। अब उसे गरिमा के शरीर पर आ चुके चिन्हों से कोई आपत्ति नहीं थी। वह पहले की तरह उसे अपनी बाँहों में भरता, उसे प्यार करता। एक बार फिर से उसने अपने जीवन की दूसरी पारी की नई शुरुआत की जो उसकी पहली पारी से बहुत ज़्यादा अच्छी थी। इसमें गंभीरता के साथ-साथ उदारता भी थी। घमंड अब उससे कोसों दूर उस बीमारी के साथ वापस जा चुका था। अब गरिमा बहुत खुश थी। उसे जैसा जीवनसाथी चाहिए था, हर्ष बिल्कुल वैसा ही बन चुका था।

एक दिन हर्ष ने गरिमा से कहा, "गरिमा अब तो हमारी रीमा 3 वर्ष की हो गई है। मुझे एक और बच्चा चाहिए।"

हर्ष के मुंह से कहा गया यह वाक्य इस बात का सबूत था कि हर्ष सच में बदल गया है।

इस वाक्य को सुनकर गरिमा ने खुश होते हुए कहा, "हर्ष तुमने तो मेरे और पापा मम्मी के मन की बात कह दी। हम दो हमारे दो।"

कुछ ही दिनों के बाद गरिमा ने हर्ष, विमल और चेतना को यह खुश खबर सुनाई कि हर्ष पापा और आप दोनों फिर से दादा-दादी बनने वाले हैं। हर्ष ने गरिमा को अपनी बाँहों में भर लिया और इस बार उसने पूरे नौ महीने गर्भावस्था के दौरान की हर खुशी को महसूस किया। पेट में पल रहे अपने बच्चे की धड़कनों को और उसकी हरकतों को महसूस किया क्योंकि अब वह सुंदरता का गुलाम नहीं था। उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण यदि कुछ था तो वह था प्यार, प्यार और प्यार।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
समाप्त