Kya tum mujhe chhod doge - Part - 7 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | क्या तुम मुझे छोड़ दोगे - भाग - 7

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क्या तुम मुझे छोड़ दोगे - भाग - 7

उसके बाद तीन महीने के भीतर ही गरिमा प्रेगनेंट हो गई। उसके प्रेगनेंट होने से उसके सास-ससुर, माता-पिता सभी बहुत खुश थे। घर में नन्हे मेहमान के आने की ख़ुशी अलग ही होती है। गरिमा भी बहुत खुश थी लेकिन हर्ष वह तनाव में था। गरिमा डिलीवरी के बाद कैसी दिखेगी? यह प्रश्न उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। उसके बाद भी वह गरिमा को खुश रखने की पूरी कोशिश कर रहा था।

धीरे-धीरे गरिमा का पेट दिखाई देने लगा। इस समय उसके खाने-पीने का उसकी सासू माँ बहुत ज़्यादा ख़्याल रख रही थी। वह हमेशा गरिमा को फल, हरी भाजी, ड्राय फ्रूट और तरह-तरह की पौष्टिक चीजें खाने के लिए देती रहती थी।

गर्भावस्था के दौरान अपनी प्रेगनेंट पत्नी के साथ उसका पति भी उतना ही खुश रहता है जितनी पत्नी रहती है। लेकिन यहाँ तो मामला अलग ही दिखाई दे रहा था, हर्ष के चेहरे का तनाव छिपाए नहीं छिप रहा था। पाँचवां-छठा महीना आते-आते गरिमा काफ़ी मोटी होने लगी और उसका मोटा शरीर हर्ष को पसंद नहीं आ रहा था।

हर्ष को तनाव में देखकर गरिमा ने उसे समझाते हुए कहा, "हर्ष जब प्यारा-सा छोटा-सा राजकुमार या राजकुमारी तुम्हारी गोदी में होगी ना, तब तुम उसके प्यार में यह सब कुछ भूल जाओगे। मैंने तुम्हें कहा था ना कि मैं अपने आप को फिट रखूँगी, बस तुम्हें मुझे थोड़ा वक़्त देना होगा।

यह सुन कर हर्ष ने कहा, "गरिमा यह जो तुम कह रही हो, वह सब इतना आसान नहीं है।"

गरिमा ने कहा, "मैं तुम्हें यह सब करके दिखाऊँगी, तुम बस खुश रहो। मेरे पेट पर हाथ रख कर देखो, कैसा महसूस होता है। तुम्हें भी बच्चे की हलचल और धड़कन महसूस होगी।"

हर्ष ने पेट पर हाथ ज़रूर रखा लेकिन जो उसके दिमाग में था उसे वही नज़र आया, गरिमा का बड़ा पेट। वह गर्भावस्था के उन दिनों का सुख अपनी सोच के कारण उठा ही नहीं पाया।"

आखिरकार धीरे-धीरे नौ माह बीत ही गए। अब तक हर्ष काफ़ी चिड़चिड़ा हो गया था। वह किसी से भी ज़्यादा बात नहीं करता था। परंतु गरिमा बिल्कुल तनाव मुक्त थी क्योंकि वह जानती थी कि सब ठीक हो जाएगा।

खैर फिर वह दिन भी आ गया, जब गरिमा को दर्द शुरू हुए और उसे डिलीवरी के लिए अस्पताल ले जाया गया। कुछ ही घंटों के बाद गरिमा ने एक बहुत ही प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया। जब वह बच्ची हर्ष की गोदी में दी गई तो हर्ष के मन में पिता का रूप जागृत हो ही गया। नन्हीं सी गुड़िया एकदम उजला रंग लेकर आई थी। सिर पर काले घुँघराले बाल भी थे। उसे देख कर ऐसा लग रहा था मानो ऊपर वाले ने उसे माता पिता दोनों की सुंदरता दी है। हर्ष अपनी बच्ची को देखकर बहुत खुश था। परिवार में भी सभी लक्ष्मी के आगमन को पर्व की तरह मना रहे थे। नाना-नानी, दादी-दादी बनने की ख़ुशी तो अलग ही होती है।

डिलीवरी के बाद जब हर्ष ने गरिमा का पेट देखा तो उस पर बहुत से स्ट्रेच मार्क्स आ गए थे। वह सुंदरता जो पहले थी, वह कहीं नदारद हो चुकी थी। गरिमा के पेट को देख कर, उसके मोटे शरीर को देखकर, हर्ष का दिल रो रहा था। वह सोच रहा था एक का जन्म हुआ तो एक की मृत्यु भी हुई है और यह मृत्यु हुई है सुंदरता की। वह बच्ची से तो बहुत प्यार करता था लेकिन गरिमा के लिए उसका व्यवहार बिल्कुल बदल चुका था। उसने गरिमा के साथ रात्रि का मिलन भी बंद कर दिया था क्योंकि उसका मन ही नहीं होता था। मिलन के समय भी वह गरिमा का शरीर देख निराश हो कर दूसरी तरफ मुंह करके सो जाता था।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः