गरिमा को देखते ही हर्ष का चेहरा खिल गया। उसकी नज़र वहाँ से हटने को तैयार ही नहीं हो रही थी। वह एक टक उसे देखे ही जा रहा था। वे सब बैठकर बातें कर रहे थे। आज ऐसा लग रहा था मानो हर्ष के परिवार का इंतज़ार ख़त्म होने वाला है।
इसी बीच गरिमा और हर्ष के बीच भी बातचीत का सिलसिला शुरू हो चुका था। किंतु सबके सामने गरिमा असहज महसूस कर रही थी। इस बात को हर्ष समझ रहा था। वे दोनों एक दूसरे से अकेले में और अच्छे से बात करना चाहते थे।
तब हर्ष ने अपने पापा से पूछा, "पापा क्या हम दोनों अकेले में कुछ समय बात कर सकते हैं?"
विमल ने गरिमा के पिता अतुल से कहा, "अतुल जी यदि आपको ऐतराज़ ना हो तो दोनों बच्चों को हमें एकांत में बातें करने देना चाहिए।"
"हाँ-हाँ विमल जी, यह तो बहुत ज़रूरी है।"
इसके बाद उन्होंने हर्ष और गरिमा की तरफ़ देखते हुए कहा, "जाओ बेटा तुम लोग आपस में विचार विमर्श कर लो।"
उसके बाद गरिमा और हर्ष बगीचे में घूमते हुए बातें करके एक दूसरे को जानने की कोशिश कर रहे थे।
बातों के दरमियान हर्ष ने गरिमा से कहा, "गरिमा जी मैं एक बार आपको बिना मेकअप के देखना चाहता हूँ। क्योंकि कोई भी इंसान पूरे दिन तो मेकअप में नहीं रह सकता ना? गरिमा प्लीज़ तुम बुरा मत मानना परंतु मुझे एकदम वास्तविक सुंदरता पसंद है जो ऊपर वाले ने तुम्हें दी है।"
गरिमा यह सुनकर थोड़ी हैरान हो गई परंतु इस बात पर ज़्यादा ध्यान न देते हुए उसने कहा, "ठीक है, जब हम अगली बार मिलेंगे तो मैं बिल्कुल वैसी आऊंगी जैसी ऊपर वाले ने मुझे बनाया है, एकदम ओरिजिनल।"
दरअसल हर्ष पहली नज़र में गरिमा के दिल में हलचल मचा गया था।
हर्ष ने फिर से कहा, "नहीं गरिमा जी, अगली बार क्यों? इसी मुलाकात में क्यों नहीं?"
गरिमा ने कहा, "ठीक है जब हम खाना खाने बैठेंगे तब आपकी यह इच्छा पूरी हो जाएगी।"
दरअसल गरिमा नहीं जानती थी कि हर्ष के जीवन में सुंदरता का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। सुंदरता के बिना इंसान का व्यक्तित्व प्रभावशाली हो ही नहीं सकता। इंसान को हर समय एकदम टिप टॉप रहना चाहिए। अपने आप को कहीं भी प्रस्तुत करने के लिए यह सब बहुत ज़रूरी है।
कुछ देर साथ में समय बिताने के बाद गरिमा और हर्ष वापस सबके बीच पहुँच गए। दोनों खुश लग रहे थे। उन्हें इस तरह देखकर बाक़ी सब लोग भी खुश हो गए क्योंकि उन दोनों की ख़ुशी इस बात का आभास करा रही थी कि मामला जम जाएगा। विमल और चेतना तो यूं भी लड़कियों को मना करते-करते थक चुके थे। वैसे भी किसी को मना करना उन्हें अच्छा नहीं लगता था लेकिन हर्ष के लिए सुंदरता अनिवार्य है वे अच्छी तरह जानते थे। उनके वैवाहिक जीवन में आगे चल कर कोई समस्या ना आए इस बात का वे आरंभ से ही ख़्याल रख रहे थे। वे सोच रहे थे चलो देर आए पर दुरुस्त आए।
हर्ष के साथ वापस लौटने के तुरंत बाद गरिमा अपने कमरे में जाने लगी।
तब उसकी मम्मी वसुधा ने उससे पूछा, "गरिमा कहाँ जा रही हो? भोजन का समय हो गया है, अब खाना खाकर ही ..."
गरिमा ने हर्ष की तरफ़ देखते हुए कहा, "मम्मा मैं बस यूं गई और यूं आई।"
हर्ष समझ गया कि गरिमा उसका मेकअप उतारने जा रही है। गरिमा उसके कमरे में चली गई। उसके बाद सभी खाना खाने टेबल पर आ गए।
वसुधा ने आवाज़ लगाई, "अरे गरिमा जल्दी आ जाओ खाना लग गया है।"
कुछ देर के इंतज़ार के पश्चात् वसुधा ने एक बार फिर आवाज़ लगाते हुए कहा, "गरिमा बेटा सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। तुम क्या कर रही हो, जल्दी से आ जाओ?"
बस उसी समय गरिमा उनके सामने आकर खड़ी हो गई।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः