हर्ष एक संपन्न परिवार में पैदा हुआ बहुत ही सुंदर बच्चा था। बचपन से ही जो भी उसे देखता वह ये कहना नहीं भूलता कि कितना सुंदर बच्चा है। घर में, परिवार में, स्कूल में, हर जगह अपनी इस तरह की तारीफ सुनकर हर्ष बड़ा हो रहा था। इस तारीफ ने उसके अंदर घमंड का बीजारोपण कर दिया था। उसकी मम्मी चेतना और पापा विमल दोनों ही देखने में बहुत अच्छे थे। वे दोनों हमेशा अपनी सेहत का भी ध्यान रखते थे और वे स्वभाव से बहुत विनम्र थे। विमल को हमेशा इस बात का डर लगा रहता था कि इतनी ज़्यादा तारीफ कहीं हर्ष को अभिमानी ना बना दे।
यह सोचकर एक दिन उन्होंने चेतना से अपने दिल की बात कही, "चेतना क्या तुम्हें नहीं लगता कि हर्ष के रूप रंग को लेकर उसकी की जाने वाली तारीफ उसके लिए घातक सिद्ध हो सकती है?"
चेतना ने अचंभित होते हुए कहा, "घातक ...? यह तुम क्या कह रहे हो विमल?"
"चेतना, घातक से मेरा मतलब है कि यह तारीफ कहीं उसमें घमंड ना भर दे और घमंड तो किसी के भी अच्छे व्यक्तित्व की गरिमा को ख़त्म कर देता है।"
तब चेतना ने कहा, "अरे नहीं विमल, आप ऐसा क्यों सोच रहे हो? वह बच्चा है अपनी तारीफ सुनकर खुश हो जाता है बस इससे ज़्यादा और कुछ नहीं। तुम नाहक ही कुछ भी सोचते रहते हो।"
लेकिन बात तो धीरे-धीरे विमल की ही सही होने लगी। हर्ष सच में अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता था। उसका मानना था कि एक अच्छा व्यक्तित्व ही प्रभावशाली हो सकता है। इसी विचार धारा के साथ हर्ष बड़ा हो गया। अपने माता-पिता की तरह वह भी अपनी सेहत का न केवल ध्यान रखता अपितु अपने व्यक्तित्व को जितना हो सकता था उतना निखार कर भी रखता था। 6 फीट ऊंचा, चौड़ी छाती, उजली त्वचा और घने काले बालों से उसकी सुंदरता में चार चांद लग जाते।
उसके कॉलेज में न जाने कितनी लड़कियाँ उसकी दीवानी थीं। लेकिन हर्ष कभी किसी को अपने सामने कुछ समझता ही नहीं था। हालांकि स्वभाव से वह बहुत अच्छा था। काफ़ी लड़कियों से उसकी दोस्ती भी थी। उन्हीं लड़कियों में से एक लड़की सपना उससे बहुत प्यार करती थी। वह भी दिखने में बहुत सुंदर थी लेकिन हर्ष ने उसके प्यार को नज़रअंदाज कर रखा था। उसके मन में बसी राजकुमारी तो बिल्कुल परी की तरह थी, जिसे वह सपनों में देखा करता था। अपनी शादी के लिए उसे उसी परी का इंतज़ार था।
पढ़ाई पूरी होने के बाद हर्ष की काफ़ी अच्छी नौकरी भी लग गई। उसकी नौकरी लगने के बाद चेतना और विमल को उसके विवाह की चिंता होने लगी। विमल चाहते थे कि हर्ष सेटल हो गया है तो अब उसका विवाह कर देना चाहिए।
इसीलिए उन्होंने एक दिन चेतना से कहा, "चेतना हमें अब हर्ष के लिए लड़की देखना शुरू कर देना चाहिए?"
"हाँ तुम ठीक कह रहे हो।"
"परंतु चेतना उसके लिए लड़की ढूँढना इतना आसान नहीं होगा। हमें हर्ष की टक्कर की लड़की ढूँढना होगा।"
"हाँ तो उसमें क्या समस्या है? एक से एक सुंदर लड़कियाँ हैं, कोई समस्या नहीं होगी।"
"ऐसा तुम्हें लगता है चेतना, आगे-आगे देखो होता है क्या?"
चेतना ने कहा, "कुछ नहीं होगा तुम देख लेना।"
विमल ने कहा, "ठीक है तो फिर तुम अपने बेटे से बात करो, उसने कहीं कोई पसंद तो नहीं कर रखी है।"
चेतना ने कहा "हाँ विमल ठीक है, मैं आज ही उससे बात करती हूँ।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः