तभी विमल के मन में जो बात वर्षों से थी और वह आज तक कभी भी उसे कह नहीं पाए थे, आज उनके मुंह से निकल ही गई। उन्होंने कहा, "हर्ष तुम बहुत सुंदर हो यह भगवान का तुम्हें वरदान मिला है पर तुमने उस वरदान पर हमेशा घमंड किया है। जबकि उसमें तुम्हारा अपना तो कुछ है ही नहीं। तुम्हारा अपना क्या है उसमें बताओ? तुमने ना जाने कितनी लड़कियों को रिजेक्ट किया है। अच्छी सुंदर लड़कियों तक को मना किया है। कितना दुख हुआ होगा उनको कभी सोचा है? तुम्हारा अपना जो है, वह है घमंड और घमंड करना हमने तो तुम्हें कभी नहीं सिखाया था बेटा। तुम इतने बड़े हो, तुम्हें क्या समझाएँ। यही सोचकर हम कभी कुछ नहीं बोले। तुम्हारी पसंद की लड़की के लिए इंतज़ार भी करते रहे कि जब तुम्हें संतोष होगा तभी तय करेंगे। वरना शादी के बाद कहीं तुम्हारा रुख अपनी पत्नी के लिए खराब ना हो जाए। इसलिए हमने कभी भी तुम पर दबाव नहीं डाला। लेकिन अब यह ...? ये क्या कर रहे हो तुम?"
हर्ष ने दंग होते हुए कहा, "पापा मुझे समझ नहीं आ रहा। आप ये क्या कह रहे हैं?"
विमल ने कहा, "हर्ष हम दोनों जानते हैं कि गरिमा के साथ तुम्हारा व्यवहार बदल गया है। अरे माँ बनी है वह, शरीर में अंतर तो आएगा ही ना? कितनी प्यारी-सी नन्ही परी दी है। अरे उसने तो तुझे पिता बनने का सौभाग्य दिया है और तू ...?"
यह सुनते ही हर्ष का सिर नीचे झुक गया क्योंकि विमल की बात का उसके पास कोई जवाब नहीं था।
चेतना ने कहा, "हर्ष तुझे पता भी है कि जैसा व्यवहार तू गरिमा के साथ कर रहा है वह कितनी मानसिक पीड़ा से गुजर रही है। वह भी ऐसे नाज़ुक समय में जबकि इस समय में उसे सबसे ज़्यादा तेरी ज़रूरत है।"
विमल ने कहा, "हर्ष तेरी माँ बिल्कुल ठीक कह रही है। जब तू तेरी माँ के पेट में था तब उससे पहले और तेरे जन्म के बाद तेरी माँ के शरीर में भी ज़मीन आसमान का अंतर आ गया था। पर तब तेरी माँ का वह शरीर मुझे पहले से भी ज़्यादा अच्छा लगता था क्योंकि उसी शरीर से जन्म लेकर, बढ़कर तू बाहर आया था। अरे हर्ष प्यार तो मन से किया जाता है बेटा तन से नहीं।"
"सॉरी पापा मुझे मेरी गलती का एहसास ...," इतना कहते-कहते हर्ष को उसकी पीठ में ज़ोर से दर्द होने लगा।
उस दर्द के कारण हर्ष बहुत परेशान हो रहा था। उसे तड़पता देखकर सभी लोग परेशान हो रहे थे। विमल तुरंत ही उसे डॉक्टर के पास ले गए।
डॉक्टर ने हर्ष को देखा तथा चेक करने के बाद उन्होंने कहा, "विमल जी समस्या बड़ी लग रही है। मुझे ब्लड टेस्ट वगैरह करवाना पड़ेगा।"
हर्ष और विमल दोनों के चेहरे चिंता में देखकर डॉक्टर ने कहा, "रिपोर्ट आने दीजिए, भगवान करे सब ठीक निकले।"
घर आने के बाद विमल ने चेतना और गरिमा को सारी बात बताई। घर में सभी ऊपर वाले से प्रार्थना कर रहे थे कि रिपोर्ट में सब ठीक आए पर ऐसा हुआ नहीं। हर्ष की रिपोर्ट में कैंसर निकला। पूरा परिवार ग़म के साये में डूब गया।
जिस घर में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी दस्तक देती है उस घर में दुःख और दर्द दोनों का ही आगमन हो जाता है। हर्ष का कैंसर अभी फर्स्ट स्टेज में था। पता चलते ही कैंसर के इलाज़ का सिलसिला शुरू हुआ। साथ ही शुरू हुआ भगवान को मनाने का दौर। पूरे परिवार ने हर्ष की सलामती के लिए ना जाने कितनी मानता रखीं।
इधर हर्ष को कीमोथेरेपी दी जाने लगी। इस इलाज़ के साथ ही हर्ष के बाल गिरना शुरू हो गए। उसका शरीर कमजोर होने लगा। वह अपने आपको आईने में देख नहीं पाता था। ख़ुद को एक नज़र देखते ही वह नज़र चुरा लेता था। उसकी सुंदरता उसका साथ छोड़ रही थी। उसके चेहरे पर ना ताज़गी थी ना ही ख़ुशी। यदि कुछ था तो केवल मायूसी। उसे बहुत डर लग रहा था कि अब क्या होगा।
अब जब भी हर्ष बिस्तर पर लेटता उसे अपना पुराना समय याद आता, अपनी सुंदरता याद आती। हर्ष को अब उन लड़कियों के लिए दुख होता, जिन्हें उसने केवल इसलिए रिजेक्ट कर दिया था क्योंकि वह उसकी तरह बहुत ज़्यादा सुंदर नहीं थीं। उसे अपने कॉलेज की वह लड़की सपना की भी याद आती, जो उसे पागलों की तरह प्यार करती थी। परंतु वह हमेशा उसके प्यार को नज़रअंदाज करता रहा। जब सपना ने उसके प्यार का इज़हार किया था तब हर्ष ने उसे यह कहकर मना कर दिया था कि सपना तुम मेरे ख़्वाबों की रानी नहीं हो। मेरे ख़्वाबों में तो अप्सरा है और मैं जानता हूँ वह अप्सरा मुझे ज़रूर मिलेगी। तब सपना का दिल टूट गया था और वह कॉलेज छोड़कर ही चली गई थी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः