Kya tum mujhe chhod doge - Part - 6 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | क्या तुम मुझे छोड़ दोगे - भाग - 6

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क्या तुम मुझे छोड़ दोगे - भाग - 6

गरिमा की बात सुनकर हर्ष ने तुरंत ही पूछा, "तो क्या गरिमा? क्या तुम शादी से इंकार कर देतीं?"

गरिमा ने कहा, "हाँ हर्ष तब तो शायद मैं यह विवाह ही नहीं करती क्योंकि मैं जानती हूँ कि जिस सुंदरता पर मोहित होकर तुम मुझे ब्याह कर ले आए हो वह ज़्यादा समय तक साथ नहीं निभाती। एक न एक दिन वह हमसे दूर चली ही जाती है। मुझे डर लग रहा है हर्ष। मेरा विश्वास जो मैंने फेरे लेते समय, मांग में सिंदूर भरते समय, तुम पर किया था वह टूट रहा है।"

"अरे गरिमा तुम कुछ ज़्यादा ही बुरा सोच रही हो। मैं तुमसे प्यार भी तो करता हूँ।"

"सच बताओ हर्ष मुझसे या केवल मेरी सुंदरता से?"

"दोनों से, गरिमा दोनों से। तुम मेरी हो और हमेशा मेरी ही रहोगी।"

गरिमा ने पूछा, "यदि मोटी हो गई तब भी?"

"हाँ-हाँ तब भी," कहते हुए हर्ष ने गरिमा को अपनी बाँहों में भर लिया।

गरिमा ने भी इस बात को आगे न बढ़ाना ही बेहतर समझा। इसी तरह प्यार के साथ उनके दिन और रात बीतने लगे।

हर सुबह हर्ष जब सो कर उठता सबसे पहले अपनी खूबसूरत पत्नी का चेहरा देखकर खुश होता। उसे बाँहों में भर कर प्यार करने के बाद ही बिस्तर से उठता। रात यदि रोमांस से भरी होती तो दिन प्यार से भरा हुआ होता। प्यार के साथ समय कैसे बीत जाता यह पता ही नहीं चलता। इसी तरह उनके जीवन में भी दिन रात आते जाते रहे और समय आगे बढ़ता रहा।

इस विवाह से विमल और चेतना भी बहुत खुश थे क्योंकि गरिमा जितनी तन की सुंदर थी उतनी ही मन की भी साफ़ और सुंदर थी।

देखते-देखते 4 साल बीत गए। अब गरिमा में माँ बनने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी। वह पिछले एक साल से हर्ष के पीछे पड़ी थी कि अब उसे माँ बनना है पर हर्ष हर बार बात को टाल देता था।

आज रात जब वे दोनों अपने कमरे में सोने के लिए गए तब एक बार फिर गरिमा ने कहा, "हर्ष प्लीज मेरी बात मान लो, अब हमें बच्चा कर लेना चाहिए। हमारी शादी को 4 वर्ष बीत चुके हैं।"

हर्ष ने कहा, "गरिमा मैं तुम्हें कितनी बार समझा चुका हूँ, क्यों अपना शरीर बिगाड़ना चाहती हो? बच्चे कहाँ आजकल माँ -बाप के साथ रहते हैं। हमें आगे भी रहना तो अकेले ही पड़ेगा ना? फिर बिना कारण क्यों इतनी बड़ी जवाबदारी लेकर हम जीवन की खुशियों को बांटे। अपना पूरा समय बच्चों की देखरेख में ही बीत जाएगा।"

"हर्ष तुम ग़लत बात मत करो। हम भी तो पापा जी और माँ के साथ रहते हैं ना?"

"हाँ तो हम जैसे बहुत कम लोग बचे हैं।"

"मैं कुछ नहीं जानती हर्ष, मुझे बच्चा चाहिए। मुझे भी माँ बनने का सुख चाहिए। यही मेरा अंतिम निर्णय है।"

"ठीक है, मैं तुम्हारा अंतिम निर्णय मान लेता हूँ; पर देख लेना तुम्हारी पूरी सुंदरता तुम्हारा यौवन, यह सब कुछ बर्बाद हो जाएगा।"

"नहीं हर्ष ऐसा नहीं है। यदि मैं ख़ुद को संभालूँगी, अपना ख़्याल रखूँगी तो ऐसा नहीं होगा। देखना, मैं तुम्हारे लिए ये ज़रूर करके दिखाऊँगी। तुम्हें दुखी होने का मौका भी नहीं दूंगी।"

इतने वर्षों में तो हर्ष भी गरिमा को बहुत प्यार करने लगा था। उसने गरिमा की बात मान ली।

उसने कहा, "ठीक है गरिमा तुम जीतीं, मैं हारा। मैं तुम्हारी इच्छा ज़रूर पूरी करूंगा।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः