गरिमा की ससुराल में गृह प्रवेश की तैयारी से पूरा वातावरण मधुर संगीत से गुंजायमान हो रहा था। फूलों की फैली महक वातावरण को ख़ुशबू दार बना रही थी। इस विवाह से हर्ष के साथ ही साथ उसके माता-पिता भी बहुत खुश थे। लम्बे समय से चले आ रहे लड़की ढूँढने के इस कार्य की अब समाप्ति हो चुकी थी। हर्ष और गरिमा दोनों के तन-मन में आज मिलन की सुहावनी बेला के इंतज़ार ने हल चल मचा रखी थी। पूरा दिन तो मेहमानों के साथ मस्ती और शोर शराबे में बीत रहा था।
धीरे-धीरे उनका वह इंतज़ार भी पूरा हुआ। उसके बाद सुहाग रात की बेला ने गरिमा और हर्ष को हमेशा-हमेशा के लिए एक दूसरे का बना दिया था। इतनी सुंदर पत्नी पाकर हर्ष फूला नहीं समा रहा था। उसने जिस परी की कल्पना की थी वह आज उसकी बाँहों में थी। सुहाग रात के यादगार पलों के साथ-साथ उनके अंदर प्यार की बारिश हो रही थी। वे एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे।
अपने भावी जीवन के सपने बुनते हुए गरिमा ने कहा, "हर्ष आज हम दो हैं लेकिन कुछ ही वर्षों में हमारा अंश भी हमारे बीच होगा, है ना? कितना सुंदर एहसास होगा ना?"
हर्ष ने कहा, "अरे अभी से उतनी दूर की बात मत सोचो। अभी तो केवल हम दो, बस यही सच है।"
गरिमा ने पूछा, "हर्ष ऐसा क्यों कह रहे हो तुम? क्या तुम्हें बच्चे पसंद नहीं?"
"अरे गरिमा किसने कहा कि मुझे बच्चे पसंद नहीं है पर अभी से इतनी दूर की बात मत सोचो; मैं केवल यही कह रहा हूँ।"
"हर्ष मुझे तो बच्चे बहुत ही ज़्यादा पसंद हैं। मैं बहुत लंबा इंतज़ार नहीं करूंगी।"
गरिमा के मुंह से यह सुनते ही हर्ष बौखला गया। उसने तुरंत ही कहा, “तुम ये क्या कह रही हो गरिमा? अभी तो हमारा साथ में रहने का समय है, मौज मस्ती से जीने का समय है। बच्चों की जवाबदारी छोटी नहीं होती। मुझे तो बच्चा चाहिए ही नहीं और फिर शरीर भी कितना बेका ..."
"क्या? क्या कहा तुमने? शरीर भी कितना बेकार हो जाता है यही कह रहे थे ना तुम? अपना वाक्य पूरा करो हर्ष।"
"हाँ-हाँ गरिमा गर्भावस्था और उसके बाद शरीर पहले की तरह खूबसूरत नहीं रहता है, मैं जानता हूँ।"
"हर्ष तुम यह क्या कह रहे हो? हर स्त्री संतान को जन्म देती है, तभी तो यह दुनिया चलती है। यदि हर पति तुम्हारी तरह सोचने लग जाएगा तो दुनिया आगे कैसे बढ़ेगी? शरीर की सुंदरता एक माँ के लिए उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं होती हर्ष, जितनी ख़ुशी उसे माँ बनने में होती है। उसके महत्त्व को केवल एक स्त्री ही समझ सकती है।"
"देखो गरिमा, मैंने तुमसे पहले भी कई लड़कियों को रिश्ते के लिए मना कर दिया था क्योंकि वह तुम्हारे जितनी सुंदर नहीं थीं। तुम्हें केवल तुम्हारी सुंदरता के कारण ही तो मैंने पसंद किया है और इसीलिए तुमसे विवाह भी किया है। मैं इसी सुंदरता के साथ रहना चाहता हूँ गरिमा।"
"और यदि मैं मोटी हो गई तो? तब क्या तुम मुझे छोड़ दोगे? माँ बनने के बाद यदि मेरा शरीर पहले जितना सुंदर नहीं रहा तब भी क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?"
हर्ष चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था।
तभी गरिमा ने पूछा, "बोलो हर्ष बोलो?"
हर्ष ने कहा, "छोड़ो ना गरिमा, तुम यह सब कहाँ बेकार की बातें लेकर बैठ गई हो। आओ इन प्यार भरे पलों के सुंदर एहसास में डूब जाते हैं।"
"नहीं हर्ष तुमने तो मुझे चिंता में डाल दिया है।"
"चिंता ...?"
"हाँ हर्ष सुंदरता हमेशा हमारे साथ नहीं रहती लेकिन प्यार वह तो हमेशा रहता है। तुम्हारी बातों से मुझे यह महसूस हो रहा है कि तुम्हारे लिए सुंदरता से ज़्यादा बड़ा और महत्त्वपूर्ण कुछ है ही नहीं। क्या इसीलिए तुमने उस दिन मेरा मेकअप उतरवाया था ताकि मैं बिना मेकअप में कैसी दिखती हूँ? यदि अच्छी नहीं लगती तो तुम यह शादी ही नहीं करते, हैं ना? काश तुमने विवाह से पहले मुझे यह सब बता दिया होता तो ...?"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः