Shapit Devta - 4 in Hindi Horror Stories by Narayan Menariya books and stories PDF | शापित देवता - 4

Featured Books
  • Schoolmates to Soulmates - Part 11

    भाग 11 – school dayनीतू जी तीनो को अच्छे से पढाई करने की और...

  • बजरंग बत्तीसी – समीक्षा व छंद - 1

    बजरंग बत्तीसी के रचनाकार हैं महंत जानकी दास जी । “वह काव्य श...

  • Last Wish

    यह कहानी क्रिकेट मैच से जुड़ी हुई है यह कहानी एक क्रिकेट प्र...

  • मेरा रक्षक - भाग 7

    7. फ़िक्र "तो आप ही हैं रणविजय की नई मेहमान। क्या नाम है आपक...

  • Family No 1

    एपिसोड 1: "घर की सुबह, एक नई शुरुआत"(सुबह का समय है। छोटा सा...

Categories
Share

शापित देवता - 4

भाग 3 का सारांश
अर्जुन गाँव से भागकर सोच रहा था कि वह श्राप से बच गया, लेकिन जल्द ही उसे एहसास हुआ कि कोई अदृश्य ताकत लगातार उसका पीछा कर रही है। हर रात उसे अजीब छायाएँ दिखने लगीं, दीवारों पर अज्ञात आकृतियाँ उभरने लगीं और मंदिर में सुनी गई आवाज़ें फिर से उसके कानों में गूंजने लगीं—"अभी खेल खत्म नहीं हुआ... तुझे वापस आना होगा!"

उसका डर तब और बढ़ गया जब उसने अपने आईने में देखा कि उसकी परछाई अपनी मर्जी से हिल रही थी और... मुस्कुरा रही थी। अर्जुन को समझ नहीं आ रहा था कि यह भ्रम था या हकीकत।

डर और बेचैनी के बीच, अर्जुन ने कई रातें बिना सोए बिताईं। लेकिन एक रात, जब उसने कमरे में हलचल महसूस की और अपने पीछे किसी की सांसों की आहट सुनी, तो वह घबरा गया। उसने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। पर जैसे ही उसने फिर से आईने में झांका, उसकी परछाई धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी!

अब अर्जुन को यकीन हो गया कि वह इस श्राप से भाग नहीं सकता। इसे खत्म करने का सिर्फ एक ही तरीका था—वह वापस गाँव लौटे और बाबा हरिदेव से मदद मांगे।

भाग 4: श्राप से मुक्ति का कठिन मार्ग


अर्जुन गाँव से भाग तो गया था, लेकिन वह श्राप से मुक्त नहीं हुआ था। रात होते ही उसकी छाया अजीब हरकतें करने लगती। कभी-कभी उसे महसूस होता कि कोई अदृश्य ताकत उसके पीछे चल रही है।

पहले-पहले उसने इसे भ्रम समझा, लेकिन जब उसने अपने कमरे के आईने में खुद को मुस्कुराते देखा—जबकि वह खुद डरा हुआ था—तो उसे यकीन हो गया कि कुछ भयावह उसके साथ चल रहा है।

आखिरकार, अर्जुन को समझ आ गया कि इस श्राप से बचने का केवल एक ही तरीका था—वह वापस गाँव लौटे और बाबा हरिदेव से मदद मांगे।

रात के अंधेरे में जब अर्जुन गाँव पहुंचा, तो हवा में वही जानी-पहचानी सनसनाहट थी। गाँव के लोग दरवाजों के पीछे छिप गए, कोई भी उसकी मदद के लिए बाहर नहीं आया।

बाबा हरिदेव पहले से ही उसका इंतजार कर रहे थे।

"तू लौट आया... लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। देवता तुझसे क्रोधित हो चुके हैं। अब इस श्राप से मुक्ति पाना आसान नहीं होगा।"

अर्जुन ने बाबा के चरणों में गिरकर कहा,

"मुझे बचा लीजिए! मैं यह श्राप सहन नहीं कर सकता।"

बाबा ने गहरी सांस ली और अर्जुन को मंदिर के पिछवाड़े एक गुप्त गुफा में ले गए। वहाँ पर दीवारों पर प्राचीन मंत्र लिखे थे। बाबा ने अर्जुन को बताया कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए उसे देवता के क्रोध का सामना करना होगा।

"श्राप को तोड़ने के लिए तुझे अपने प्राणों की आहुति देनी होगी।"

अर्जुन सिहर उठा।

"या फिर तुझे देवता के असली रहस्य को उजागर करना होगा, वह रहस्य जो इस गाँव के लोग सदियों से छुपाते आ रहे हैं!"

अर्जुन ने दृढ़ निश्चय कर लिया—वह सत्य का सामना करेगा, चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो!

बाबा ने उसे चेतावनी दी,

"सत्य की राह पर तुझे बहुत सी कठिनाइयाँ झेलनी होंगी। अगर तू सफल हुआ, तो देवता का श्राप मिट जाएगा। लेकिन अगर असफल हुआ... तो तुझे मृत्यु भी नसीब नहीं होगी!"

अर्जुन ने गहरी सांस ली। अब उसके पास सिर्फ एक ही रास्ता था—अंधेरे में छुपे सच का सामना करना।

(भाग 5 जारी रहेगा...)