भाग 2 का सारांश
अर्जुन, जो भटावली गाँव की रहस्यमयी घटनाओं को अंधविश्वास मानकर आया था, अब खुद एक डरावनी सच्चाई का सामना कर रहा था। मंदिर के भीतर उसे किसी अदृश्य शक्ति ने जकड़ लिया, और भयानक छायाएं उसे घेरने लगीं। एक विकृत देवता की आकृति प्रकट हुई, जिसकी तीसरी आँख से रक्त टपक रहा था। अर्जुन ने अपनी पूरी हिम्मत बटोरकर साधु से प्राप्त लोहे की मूर्ति को हवा में लहराया, जिससे मंदिर में भयावह ऊर्जा फैल गई। अचानक, एक ज़ोरदार विस्फोट हुआ और अर्जुन बेहोश होकर गाँव के बाहर फेंक दिया गया। जब उसने होश संभाला, तो गाँव के बुज़ुर्गों ने उसे बताया कि अब वह श्रापित हो चुका है—चाहे वह कहीं भी जाए, देवता की छाया उसका पीछा करेगी।
अब जानते हैं, अर्जुन इस भयानक साए से कैसे निपटता है…
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भाग 3: श्राप का आतंक
गाँव से बाहर निकलने के बाद अर्जुन को लगा कि वह अब सुरक्षित है। लेकिन जल्द ही उसे एहसास हुआ कि कुछ उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था।
हर रात जब वह सोने जाता, तो उसे महसूस होता कि कोई अदृश्य ताकत उसके सिरहाने खड़ी है। दीवारों पर अजीब छायाएँ मंडराने लगीं। रात के अंधेरे में उसे मंदिर में सुनी गई आवाज़ें फिर से सुनाई देने लगीं।
"अभी खेल खत्म नहीं हुआ... तुझे वापस आना होगा!"
अर्जुन ने कई रातें बिना सोए बिताईं, लेकिन धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि उसकी परछाई अब वैसी नहीं रही। वह हिलती थी... अलग तरीके से।
एक रात, जब अर्जुन आईने के सामने खड़ा था, तो उसकी परछाई मुस्कुराने लगी। लेकिन अर्जुन की आँखों में भय और आतंक था।
उसकी परछाई ने धीरे-धीरे एक अलग रूप लेना शुरू कर दिया। वह लंबी होती जा रही थी, जैसे कोई दूसरा शरीर उसमें समा रहा हो। अर्जुन घबराकर पीछे हटा, लेकिन आईने में दिखने वाली आकृति अब भी मुस्कुरा रही थी। अचानक उसने देखा कि उसकी परछाई के आँखों के स्थान पर लाल रोशनी चमक उठी।
अर्जुन का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने आईने से नज़र हटाने की कोशिश की, लेकिन उसकी आँखें जैसे किसी अनदेखी शक्ति ने जकड़ ली थीं। तभी एक ठंडी हवा का झोंका कमरे में आया और खिड़कियाँ ज़ोर से पटकने लगीं।
अचानक, अर्जुन के कंधे पर किसी ने हाथ रखा। वह बिजली की गति से मुड़ा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। पसीने से तरबतर अर्जुन ने अपनी साँसें काबू में करने की कोशिश की। तभी उसके कानों में एक फुसफुसाहट गूंजी—
"तू बचकर नहीं जा सकता... श्राप अब तुझसे जुड़ चुका है।"
अर्जुन लड़खड़ाता हुआ कमरे से बाहर निकला और भागता हुआ मुख्य दरवाजे तक पहुँचा। उसने दरवाजा खोला, लेकिन बाहर का दृश्य देखकर उसकी रूह कांप गई। गाँव की गलियाँ पहले जैसी नहीं थीं। हर ओर अंधेरा था, और हवा में अजीब-सी सड़ांध फैली थी। ऐसा लग रहा था जैसे पूरा गाँव एक सड़े-गले नरक में बदल गया हो।
तभी, दूर मंदिर की दिशा से एक काली छाया उठी और अर्जुन की ओर बढ़ने लगी। उसकी गति इतनी भयानक थी कि अर्जुन की टाँगें जवाब देने लगीं। वह जड़वत खड़ा रह गया, उसकी आँखें उस छाया पर टिकी थीं।
छाया अब स्पष्ट होने लगी। यह वही विकृत चेहरा था, जिसे अर्जुन ने मंदिर में देखा था। उसकी तीसरी आँख से रक्त की धार बह रही थी।
अर्जुन ने पूरी ताकत से चिल्लाकर कहा, "मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? मुझे छोड़ दो!"
लेकिन जवाब में सिर्फ़ एक गहरी, गूंजती हुई हंसी सुनाई दी। अर्जुन ने पलटकर भागने की कोशिश की, लेकिन उसके पैरों में जंजीरों जैसी जकड़न महसूस होने लगी। अचानक, ज़मीन के अंदर से काले हाथ निकले और उसकी टाँगों को जकड़ लिया।
अर्जुन ने पूरी ताकत से संघर्ष किया, लेकिन धीरे-धीरे वह नीचे धंसता जा रहा था। उसकी चीखें हवा में घुलने लगीं।
अचानक, एक ज़ोरदार बिजली कड़की, और अर्जुन की पकड़ ढीली पड़ गई। जब उसने आँखें खोलीं, तो वह फिर से अपने कमरे में था।
पर क्या वह सच में अपने कमरे में था? आईने में अब भी वह परछाई मुस्कुरा रही थी...
(भाग 4 जारी रहेगा...)