शापित देवता
परिचय:-
क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ स्थानों पर अजीब सा सन्नाटा क्यों पसरा रहता है? क्यों कुछ गांवों के नाम तक लोग लेने से डरते हैं? क्या कोई ऐसा श्राप सच में हो सकता है जो सदियों से चला आ रहा हो?
राजस्थान के मरुस्थल में एक ऐसा ही गाँव बसा है—भटावली। यह कोई साधारण गाँव नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ रात होते ही डर की सिसकियाँ गूंजने लगती हैं। जहाँ अंधेरे में कुछ ऐसा छुपा है जिसे नज़रें नहीं देख पातीं, लेकिन उसकी उपस्थिति हर कोई महसूस कर सकता है। इस गाँव में हर अमावस्या को एक अनहोनी घटती है—कोई गायब हो जाता है, बिना कोई सुराग छोड़े। लोग इसे 'देवता की इच्छा' मानते हैं, लेकिन क्या यह सच में किसी देवता का आशीर्वाद है, या फिर किसी भूले-बिसरे पिशाच का क्रूर श्राप?
जब अर्जुन राठौड़, एक तर्कवादी इतिहासकार, इस गाँव में पहुंचता है, तो उसे यह सब अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं लगता। लेकिन जल्द ही उसे एहसास होता है कि यह सिर्फ़ कहानियाँ नहीं, बल्कि एक डरावना सच है—एक ऐसा सच जिससे बच पाना नामुमकिन है।
अब सवाल यह है कि अर्जुन इस रहस्य से पर्दा उठा पाएगा या फिर वह भी इस श्राप का अगला शिकार बन जाएगा?
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भाग 1: आगमन
राजस्थान के रेतीले धोरों के बीच बसा भटावली गांव समय के प्रभाव से अछूता था। दूर-दूर तक फैली वीरानी, पुराने कच्चे मकान, और एक अजीब सा सन्नाटा—जैसे यह गांव सदियों से किसी अज्ञात भय में जी रहा हो। इस गांव के बारे में बहुत कम लोग जानते थे, और जो जानते थे, वे यहां आने से बचते थे।
हर साल अमावस्या की रात, गांव से एक व्यक्ति गायब हो जाता। कोई शोर नहीं, कोई चीख नहीं—बस एक साया आता और किसी को ले जाता। लोग इसे देवता का प्रसाद मानते थे। विरोध करना मौत को बुलाने जैसा था। यह प्रथा सदियों से चली आ रही थी, और किसी ने इसे रोकने की कोशिश नहीं की।
जब अर्जुन राठौड़, जयपुर से आया एक तर्कवादी इतिहासकार, इस गांव में पहुंचा, तो वह इन कहानियों को मात्र अंधविश्वास मानता था। वह विज्ञान और इतिहास पर विश्वास करता था, भूत-प्रेतों पर नहीं। लेकिन जैसे ही उसने गांव की सरहद पार की, उसे एक अजीब सी अनुभूति हुई—जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे देख रही हो।
गांव के बुज़ुर्गों ने उसे चेतावनी दी, "अमावस्या तक यहां मत रुकना। देवता के नियम मत तोड़ना।"
पर अर्जुन मानने वालों में से नहीं था।
भूल और श्राप
अर्जुन गांव के सबसे पुराने पुजारी बाबा हरिदेव से मिलने गया। बाबा की आंखों में एक गहरी दहशत थी। उन्होंने अर्जुन को बताया कि गांव को एक भूल की सजा मिली है।
"यह सिर्फ़ एक कथा नहीं है, बेटा," बाबा ने कहा। "यह हमारे पुरखों की गलती का श्राप है। और इस श्राप का अंत तब तक नहीं होगा जब तक देवता को उसका हक़ नहीं मिल जाता।"
अर्जुन को यकीन नहीं हुआ। वह गांव के पुराने अभिलेखों की खोज में जुट गया। उसे एक भूला-बिसरा मंदिर मिला, जिसके दरवाजे पर किसी ने लाल रंग से कुछ लिखा था—"यहां मत आना। यह देवता का स्थान है।"
मंदिर के बाहर कई धूपबत्तियां जल रही थीं, पर वहां कोई नहीं था। अर्जुन को लगा जैसे कोई उसे मंदिर के भीतर बुला रहा हो। हवा अचानक ठंडी हो गई। झाड़ियों में सरसराहट हुई, पर कोई जानवर नहीं दिखा।
अर्जुन ने गांव के अभिलेखों को खंगाला और पाया कि चार सौ साल पहले राजा अनिरुद्ध सिंह ने एक अमरत्व अनुष्ठान किया था। लेकिन वह अधूरा रह गया और एक असंतुष्ट देवता का प्रकोप गांव पर आ पड़ा। श्राप के अनुसार हर साल बलि देनी होगी, नहीं तो पूरा गांव भस्म हो जाएगा।
अमावस्या की रात
अर्जुन यह सब पढ़कर हंस पड़ा। उसे लगा कि यह सब सिर्फ़ डर फैलाने के लिए बनाया गया था। लेकिन जैसे-जैसे अमावस्या की रात पास आई, गांव में अजीब घटनाएं होने लगीं।
* कुएं का पानी काला पड़ गया।
* घरों के बाहर अजीबो-गरीब चिह्न बनने लगे।
* गांव में अजीब सी सिसकियों की आवाज़ें आने लगीं।
अर्जुन ने तय किया कि वह आधी रात को मंदिर जाकर सच्चाई का पता लगाएगा। जब घड़ी ने बारह बजाए, तो वह अकेला मंदिर की ओर बढ़ा।
मंदिर के चारों ओर हवा बहुत भारी लग रही थी। झाड़ियों में कुछ छुपा हुआ था। अचानक उसे किसी के धीमे-धीमे बुदबुदाने की आवाज़ आई। "वह जाग गया है... वह जाग गया है..."
अर्जुन ने चारों ओर देखा। दूर, एक बुज़ुर्ग औरत मंदिर की ओर देख रही थी, उसके होंठ कांप रहे थे।
अर्जुन मंदिर का दरवाज़ा खोलते ही ठिठक गया। भीतर का दृश्य रोंगटे खड़े करने वाला था। हर ओर काले धागों से लटकी मुरझाई हुई बलि की माला थी। एक पुरानी वेदी थी, जिस पर सूख चुका रक्त पड़ा था।
अर्जुन ने जैसे ही पहला कदम अंदर रखा, एक ज़ोरदार गूंज उसके कानों में पड़ी—
"तूने शांति भंग की है, अब तू भी बलि चढ़ेगा!"
अर्जुन का शरीर जैसे बर्फ़ हो गया। मंदिर के कोनों से एक अजीब सी गूंजने वाली हंसी आई। उसके पैरों के नीचे ज़मीन अचानक कांपने लगी।
अर्जुन ने पीछे मुड़ने की कोशिश की, लेकिन उसकी टांगें ज़मीन में धंसने लगीं। अचानक, छत पर बनी देवता की प्रतिमा की आंखें चमक उठीं। अंधेरे में से एक आकृति उभरी—लंबा, विकृत चेहरा, आंखों में गहरी लाल चमक। उसके हाथ में एक पुरानी तलवार थी, जिस पर सूखा खून लगा था।
अर्जुन ने चीखने की कोशिश की, लेकिन आवाज़ गले में ही अटक गई।
भाग 1 समाप्त...