भाग 1 का संक्षिप्त सारांश:
अर्जुन राठौड़, एक तर्कवादी इतिहासकार, भटावली गाँव में आता है, जहाँ सदियों से हर अमावस्या को एक व्यक्ति गायब हो जाता है। वह इसे अंधविश्वास मानता है, लेकिन जैसे-जैसे वह गाँव के इतिहास की परतें खोलता है, उसे एहसास होता है कि यह केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक भयानक सच है।
गाँव के लोगों का मानना है कि यह श्राप राजा अनिरुद्ध सिंह के अधूरे अनुष्ठान का परिणाम है, जिसने देवता को नाराज़ कर दिया था। अर्जुन ने चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करते हुए आधी रात को मंदिर में प्रवेश किया, जहाँ उसे एक अजीब शक्ति ने घेर लिया। मंदिर की मूर्ति की आँखें चमक उठीं, ज़मीन काँपने लगी, और एक भयानक आकृति प्रकट हुई। अर्जुन की चीख उसके गले में ही अटक गई...
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भाग 2: देवता का प्रकोप
अर्जुन की आंखें फटी रह गईं। मंदिर के अंदर जो भी था, वह अब धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रहा था। हवा में एक अजीब सा घुटन भरा कंपन था। अर्जुन ने अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने हिलने की कोशिश की, एक ठंडी सांस उसके गले के पास महसूस हुई।
"तू यहाँ क्यों आया?" एक गहरी, भयानक आवाज़ गूंजी।
अर्जुन कांप उठा। उसके चारों ओर छायाएं नाचने लगीं। मंदिर की दीवारों पर अजीब आकृतियाँ बनने लगीं। अर्जुन ने पूरी ताकत लगाकर पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन तभी...
मंदिर के कोनों से अचानक कई जोड़ी लाल आँखें चमकने लगीं। वह आँखें किसी इंसान की नहीं थीं। वे गहरी, शून्य में झांकती और आत्मा को छलनी कर देने वाली थीं। अर्जुन ने अपने पूरे शरीर में सिहरन महसूस की।
तभी मंदिर के मुख्य वेदी से एक आकृति प्रकट हुई—एक विशाल छायायुक्त काया, जिसका चेहरा किसी देवता की मूर्ति जैसा था, लेकिन विकृत और भयानक। उसके ललाट पर एक तीसरी आंख खुली, जिससे रक्त की धारा बह रही थी।
"तूने हमारी शांति भंग की है। अब बलि चढ़ने के लिए तैयार हो जा!"
अर्जुन का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। उसने खुद को मुक्त करने की कोशिश की, लेकिन उसके पैरों के नीचे ज़मीन खिंचने लगी, जैसे वह किसी अंतहीन गहरे गड्ढे में गिरने वाला हो।
बाहर हवा ज़ोर से चलने लगी। पूरे गाँव में अजीब हलचल मच गई। गाँव के लोग घरों में छुप गए, दरवाजों पर ताले लगा दिए। मंदिर से उठने वाली भयावह ध्वनि पूरे गाँव में गूंजने लगी।
अर्जुन ने अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर जेब से एक लोहे की मूर्ति निकाली, जो उसने एक साधु से ली थी। उसने उसे हवा में लहराया और ज़ोर से चिल्लाया,
"अगर तुम सच्चे देवता हो, तो अपने भक्तों को डराना बंद करो!"
क्षणभर के लिए मंदिर के अंदर सन्नाटा छा गया।
फिर अचानक वह आकृति गुस्से से कांपने लगी, उसकी तीसरी आंख से और भी तेज़ लाल रोशनी निकली। मंदिर के चारों ओर बंधे घंटियाँ खुद-ब-खुद बजने लगीं। अर्जुन ने महसूस किया कि उसकी आत्मा जैसे शरीर छोड़ने को तैयार हो रही थी।
अचानक एक ज़ोरदार विस्फोट हुआ। अर्जुन हवा में उछल गया और बाहर फेंक दिया गया। वह ज़मीन पर गिरा और बेहोश हो गया।
जब उसने आँखें खोलीं, तो वह गाँव के बाहर पड़ा था। मंदिर का द्वार बंद हो चुका था। गाँव के बुज़ुर्ग उसके चारों ओर खड़े थे, उनके चेहरे भय से पीले पड़ चुके थे।
बाबा हरिदेव ने कांपती आवाज़ में कहा,
"तू बच गया... लेकिन अब तेरे पीछे वह साया सदा के लिए लगा रहेगा... अब तू कहीं भी रहे, देवता तुझे ढूंढ लेंगे!"
अर्जुन का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
क्या उसने सच में कुछ भयानक जगा दिया था? क्या अब वह इस श्राप से बच पाएगा?
(भाग 3 जारी रहेगा...)