भाग 4 का सारांश:
अर्जुन भले ही गाँव से भाग गया था, लेकिन वह श्राप से मुक्त नहीं हुआ था। उसकी छाया अजीब हरकतें करने लगी थी, और कभी-कभी उसे अपने आसपास अदृश्य ताकतों की मौजूदगी का अहसास होता। जब उसने आईने में खुद को मुस्कुराते देखा—जबकि वह डर के मारे कांप रहा था—तब उसे यकीन हो गया कि यह कोई भ्रम नहीं, बल्कि एक भयानक सच्चाई है।
आखिरकार, अर्जुन ने गाँव लौटने का फैसला किया। बाबा हरिदेव पहले से ही उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बाबा ने उसे बताया कि देवता अब उससे क्रोधित हो चुके हैं, और इस श्राप से मुक्ति पाना आसान नहीं होगा। अर्जुन को या तो अपने प्राणों की आहुति देनी होगी या फिर उस भयानक रहस्य का सामना करना होगा जिसे गाँव के लोग सदियों से छुपाते आ रहे हैं।
बाबा ने उसे चेतावनी दी कि सत्य की राह कठिन होगी, और यदि वह असफल हुआ, तो उसे मृत्यु भी नसीब नहीं होगी। अर्जुन ने दृढ़ निश्चय किया—वह इस अंधेरे रहस्य का सामना करेगा, चाहे जो भी हो!
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भाग 5: मृत्यु का द्वार
रात के घने अंधकार में बाबा हरिदेव अर्जुन को लेकर मंदिर के नीचे स्थित एक गुप्त गुफा में गए। गुफा के भीतर की हवा भारी थी, और वहाँ दीवारों पर अजीब प्रतीक खुदे थे।
बाबा ने अर्जुन से कहा, "श्राप को मिटाने के लिए तुझे मृत्यु के द्वार तक जाना होगा। केवल वही इस रहस्य से पर्दा उठा सकता है जो स्वयं मृत्यु का सामना करने को तैयार हो।"
अर्जुन की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। "मृत्यु का द्वार?"
बाबा ने आगे कहा, "गाँव के दक्षिण में एक कुआँ है, जिसे 'अशुभ कुंड' कहा जाता है। यह कोई साधारण कुआँ नहीं, बल्कि एक दैत्य की समाधि है। यह वही स्थान है जहाँ देवता पहली बार प्रकट हुए थे। तुझे वहाँ जाना होगा और देवता की असली पहचान को उजागर करना होगा। लेकिन याद रहे, यदि तू असफल हुआ, तो तेरा अस्तित्व मिट जाएगा।"
अर्जुन अब पीछे नहीं हट सकता था।
अशुभ कुंड की गहराई में...
अर्जुन और बाबा हरिदेव रात के साये में अशुभ कुंड की ओर बढ़े। जैसे ही वे वहाँ पहुंचे, हवा अचानक भारी हो गई। चारों ओर भयानक सन्नाटा छा गया। अर्जुन ने कुएँ में झाँका, तो उसे लगा कि कोई काली परछाईं उसमें हिल रही है।
जैसे ही उसने आगे कदम बढ़ाया, अचानक ज़मीन हिलने लगी। कुएँ से एक भयानक चीख निकली, और काले धुएँ के साथ एक विकराल आकृति प्रकट हुई। यह वही देवता था, जिसे गाँव सदियों से पूज रहा था—लेकिन यह कोई देवता नहीं, बल्कि एक शापित असुर था!
देवता की आँखें रक्त जैसी लाल थीं, और उसकी आवाज़ गगनभेदी थी, "कौन है जो मेरे शाप को तोड़ने आया है?"
अर्जुन ने हिम्मत जुटाकर कहा, "तू कोई देवता नहीं, बल्कि गाँव पर थोपा गया एक श्राप है!"
देवता क्रोधित हो गया। "मुझे रोकने की हिम्मत मत कर, वरना तुझे भी उसी अंधकार में खींच लूंगा जहाँ कोई प्रकाश नहीं पहुँचता!"
अर्जुन ने बाबा की ओर देखा। बाबा ने इशारा किया कि अब वही क्षण था जब सच का सामना करना होगा। अर्जुन ने अपनी जेब से वह प्राचीन ताबीज निकाला, जो बाबा ने उसे दिया था। यह ताबीज गाँव के सबसे पुराने मंदिर से लिया गया था—वही मंदिर, जहाँ देवता पहली बार पूजे गए थे।
अर्जुन ने ताबीज को ऊपर उठाया, और जैसे ही उसने मंत्र पढ़ा, देवता दर्द से चीखने लगा। उसका आकार विकृत होने लगा, और उसकी काली छाया अस्तित्वहीन होने लगी।
लेकिन तभी, एक भयानक झटका लगा। पूरी ज़मीन फटने लगी, और अर्जुन कुएँ की ओर खिंचने लगा। बाबा ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन अंधकार ने अर्जुन को अपनी ओर खींच लिया।
अंधकार में कैद...
अर्जुन को महसूस हुआ कि वह किसी अनंत गहराई में गिर रहा है। चारों ओर केवल अंधेरा था। अचानक, उसके सामने वही देवता प्रकट हुआ, लेकिन अब उसका रूप और भी विकराल हो चुका था।
"अब तू मुझसे नहीं बच सकता!" देवता की गरजती आवाज़ गूंजी।
अर्जुन को एहसास हुआ कि वह अब देवता के चक्रव्यूह में फँस चुका था। यहाँ से बचने का कोई आसान रास्ता नहीं था।
बाबा की आवाज़ कहीं दूर से आई, "सिर्फ एक ही उपाय है—देवता के असली नाम को पुकार! वही नाम जिसे गाँव वालों ने सदियों से भुला दिया है!"
अर्जुन ने अपनी पूरी ताकत से सोचा। गाँव के पुराने शिलालेखों में उसने एक नाम पढ़ा था—एक नाम जिसे कोई नहीं लेता था। वह नाम था...
(भाग 6 में जारी रहेगा... )