दरवाज़ा खोलते ही जिस समय उन तीनों के क़दम ड्राइंग रूम में पड़ रहे थे ठीक उसी समय श्लोका के क़दम भी ड्राइंग रूम में आ रहे थे। उसके पीछे चोटी खींचता हुआ मिलन और उसकी माँ अनुराधा भी थे। यह दृश्य जितना भयानक था, उतना ही दर्दनाक भी था।
इस दृश्य को ड्राइंग रूम में आए सुरेश के अतिरिक्त श्लोका के माता-पिता ने भी देख लिया। यह देखते ही अतुल के हाथ से बैग नीचे गिर गया। वंदना का पर्स भी उसके हाथ से छूट गया।
इस तरह उन्हें देखकर मिलन के हाथों से श्लोका की चोटी अपने आप ही छूट गई। उनकी हालत खिसियानी बिल्ली की तरह हो गई।
अतुल ने जोर से चिल्ला कर कहा, "यह क्या हो रहा है मेरी बेटी के साथ?"
अतुल अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाए और उन्होंने मिलन के गाल पर एक तमाचा लगा दिया। वंदना ने अपनी लाड़ली को सीने से लगा लिया।
श्लोका ने अपनी माँ से लिपट कर रोते हुए कहा, "मम्मी यह लोग मुझे दहेज के लिए मार रहे थे। इन्हें 25 लाख कैश और एक कार चाहिए जिसके लिए मैंने मना कर दिया।"
वंदना ने कहा, "अच्छा तो यहाँ यह सब चल रहा है। हमने तो संस्कारी परिवार समझकर अपनी बेटी दी थी, यह जानते हुए कि आप लोग मध्यम वर्ग से हैं।"
सुरेश गुस्से में तिलमिला रहे थे। वह तो इन सब बातों से अनजान थे। उन्होंने भी गुस्से में आकर सबके बीच जाकर मिलन के गाल पर तमाचा रसीद कर दिया और अनुराधा की तरफ़ देखकर उसे धक्का देते हुए बोले, "तो तुम भी इसमें शामिल थीं।"
अतुल ने अपनी बेटी से कहा, "श्लोका बेटा अब हम यहाँ एक पल भी नहीं रुकेंगे। जाओ अपना सूटकेस ले आओ।"
वंदना ने कहा, "हाँ बेटा, हम उन माँ-बाप में से नहीं हैं, जो अपनी बेटी की अर्थी उठने तक की रास्ता देखते रहते हैं।"
अनुराधा और मिलन के पास मुंह से निकालने के लिए ना तो कोई शब्द थे ना ही आंखें ऊपर उठा कर देखने की हिम्मत ही थी।
सुरेश अपने दोनों हाथों को जोड़ कर वंदना, श्लोका और अतुल के सामने खड़े थे।
उन्होंने कहा, "अतुल जी मुझे इन दोनों के इस घटिया इरादे की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी वरना मैं पहले ही उनके कान के कीड़े झाड़ देता। लेकिन इस समय मेरे पास माफ़ी के अलावा और कुछ भी कहने के लिए नहीं है। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।"
अतुल ने कहा, "सुरेश जी हम अपनी बेटी को वापस ले जा रहे हैं तलाक के काग़ज़ आपको मिल जाएंगे ।आपकी इंसानियत देख कर हम पुलिस में शिकायत नहीं करेंगे वरना उनके साथ-साथ आपका जीवन भी नर्क हो जाएगा," इतना कह कर वे तीनों जाने लगे।
तभी वंदना की नज़र उनके ड्राइंग रूम पर लगी बड़ी-सी तस्वीर पर चली गई। उस तस्वीर में वंदना को कुछ ऐसा दिखाई दे गया जिसे देखकर वह आश्चर्यचकित रह गई और उसे नज़दीक से देखने तस्वीर के पास पहुँच गई। वंदना को उस तस्वीर में सबसे आगे खड़ी उनकी नन्ही श्लोका दिखाई दे गई। उस तस्वीर में उनकी बेटी के अलावा और भी बहुत सारी कन्या दिखाई दे रही थीं। उनके साथ पीछे खड़े सुरेश और अनुराधा भी दिख रहे थे।
उस तस्वीर को देखने के कुछ ही क्षणों में वंदना भूतकाल के उस गलियारे में चली गई, जब अनुराधा ने कन्या भोज के लिए श्लोका को बड़ा ही आग्रह करके उनके घर बुलाया था।
तब तक अतुल ने कहा, "चलो वंदना यहाँ खड़े-खड़े क्या सोच रही हो?"
उस तस्वीर को देखने के बाद वंदना ने ताली बजाते हुए कहा, "अतुल इधर आओ, मैं कुछ सोच ही नहीं रही देख भी रही हूँ। तुम भी देखो यह तस्वीर बहुत कुछ कह रही है। इसमें सबसे आगे बीच में हमारी श्लोका खड़ी है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः