धीरे-धीरे अनुराधा के मन में मिलन के विवाह को लेकर लालच बढ़ता ही जा रहा था।
एक दिन उन्होंने मिलन से कहा, "मिलन, तुम्हारी शादी में एक कार और कुछ कैश तो मिलना ही चाहिए।"
"हाँ मम्मी आप ठीक कह रही हो लेकिन पापा ...?"
"अरे उन्हें कहाँ दुनियादारी की समझ है, उनसे तो मैं निपट लूंगी। तू बता तू तैयार है ना?"
"हाँ मम्मी उसमें क्या है, दहेज की प्रथा तो सदियों से चली आ रही है। हमने यदि नहीं भी लिया तो कौन सी दुनिया बदल जाने वाली है। "
इस तरह से माँ बेटे के बीच पहले से ही सलाह मशवरा हो गया।
इसी बीच एक समाचार पत्र के विज्ञापन में उन्होंने एक लड़की का बायो डेटा देखा जो उन्हें पसंद आ गया। अनुराधा ने अपने पति सुरेश और मिलन से उस रिश्ते के विषय में बात की तो उन्हें भी वह रिश्ता अच्छा लगा।
उसके बाद अनुराधा ने उस परिवार से संपर्क किया। यह परिवार अतुल और वंदना का था और वह लड़की थी श्लोका। अब तक इन 20 वर्षों में वे एक दूसरे को भूल चुके थे क्योंकि ना तो ज़्यादा दोस्ती थी और ना आना जाना ही था। बचपन में श्लोका जैसी कितनी ही कन्या उनके घर कन्या भोज के लिए आया करती थीं। इसलिए श्लोका भी उनके मानसिक पटल से गायब हो चुकी थी, क्योंकि वह कभी भी उनकी यादों में थी ही नहीं। अनुराधा के परिवार द्वारा संपर्क करने पर वंदना को भी यह रिश्ता अच्छा लगा।
वंदना का परिवार मध्यम वर्ग का था और वह चाहती थी कि उनकी बेटी भी उन्हीं की तरह पढ़े-लिखे संस्कारी परिवार में जाए भले ही वह परिवार मध्यम वर्ग का हो। जहाँ तक आर्थिक स्थिति का सवाल था, श्लोका ख़ुद भी आई टी में नौकरी करती है, इसलिए उन्हें इस बात की बिल्कुल भी फ़िक्र नहीं थी। कुछ ही दिनों में दोनों परिवारों ने आपस में मिलकर रिश्ते को पक्का करने का इरादा कर लिया।
श्लोका और मिलन जब एक दूसरे से मिले तो उन्होंने भी एक दूसरे को पसंद कर लिया।
अनुराधा और उसके परिवार के जाने के बाद वंदना ने श्लोका से पूछा, "श्लोका कैसा लगा तुम्हें मिलन?"
"अच्छा है मम्मा, स्मार्ट है बातें भी बहुत सलीके से अच्छी करता है बाक़ी तो किसी के बारे में अच्छी तरह से जानने के लिए समय और लंबे साथ की ज़रूरत होती है तभी सच्चाई पता चलती है। आपको कैसे लगे उसके पापा मम्मी?"
"यूं तो सब ठीक लग रहा है श्लोका, बस बहुत ज़्यादा पैसे वाले नहीं हैं।"
पैसे वाली बात सुनते ही अतुल ने कहा, "तो ठीक है ना वंदना, लड़का और परिवार संस्कारी होना चाहिए। पैसा तो दोनों मिलकर भी कमा लेंगे। बहुत बड़े घर में रिश्ता कर दो तो बाद में उनका लालच बढ़ता ही जाता है। क्योंकि वैसे लोगों की पैसे की भूख कभी मिटती ही नहीं है फिर वही दहेज का चक्कर सामने राक्षस की तरह खड़ा हो जाता है। ये तो काफ़ी सादगी वाले सीधे-साधे लोग लग रहे हैं।"
अनुराधा ने कहा, "हाँ तुम ठीक कह रहे हो। उन्होंने दहेज का तो ज़िक्र तक नहीं किया। "
अतुल ने कहा, "तो ठीक है, हम हाँ कह देते हैं। तुम क्या बोलती हो अनु?"
अनुराधा ने कहा, "मुझे भी सब कुछ ठीक लग रहा है। श्लोका बेटा तुम बोलो आख़िर उस परिवार के साथ रहना तो तुम्हें ही है?"
श्लोका ने कहा, "मम्मा मुझे भी सब ठीक ही लग रहा है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः