वंदना के शब्द कानों में पड़ते ही अनुराधा, सुरेश और मिलन तस्वीर के नज़दीक आ गए और तस्वीर को ध्यान से देखने लगे। यह उस कन्या भोज की तस्वीर थी, जब अनुराधा ने 51 कन्याओं को अपने घर देवी स्वरूप मानते हुए आमंत्रित किया था और उन सभी के पांव पूजकर उन्हें भोजन कराया था।
अतुल ने कहा, "हाँ वंदना बीच में हमारी श्लोका ही है।"
यह सुनकर श्लोका भी दंग थी। उसने तो आज तक कभी उस तस्वीर को ध्यान से देखा ही नहीं था।
वंदना ने अनुराधा की तरफ़ देखकर कहा, "याद है अनुराधा, तुमने श्लोका को अपने घर में उस दिन देवी की तरह पूजा था क्योंकि वह छोटी थी, कन्या थी और आज जब वही कन्या आपके घर बहू बन कर आई है, आपके घर की गृह लक्ष्मी है, तब आप आज उसे प्रताड़ित कर रहे हैं। यह कैसा व्यवहार है? यह कैसा दोगला पन है आप लोगों का।
आज तो ऊपर बैठी माताजी भी आपकी इस घिनौनी हरकत पर आंसू बहा रही होंगी। आप उन्हें इतना मानती हैं, उनकी उपासना करती हैं लेकिन आपकी ज़िन्दगी भर की उपासना पूजा पाठ सब कुछ आज उन्हें भी केवल ढोंग मात्र ही लग रहा होगा। स्त्री के बाल रूप को यदि आप देवी की तरह मानती हैं तो उसके बड़े होने पर उसका निरादर क्यों? उसको प्रताड़ित क्यों करती हैं।"
अनुराधा निःशब्द थी, उसमें तो अपने पति सुरेश से भी नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं थी। लालच के बाण ने पलट कर आज उन्हें ही घायल कर दिया था क्योंकि कमान से निकला तीर भले ही वापस ना आए लेकिन मुंह से निकले कठोर कटु वचनों का जवाब कभी ना कभी ज़रूर पलट कर आता है।
वंदना ने आगे कहा, "अनुराधा, हमारे घर में जो भी है, सब कुछ उसका ही तो है। काश आप लोगों ने थोड़ी सब्र रख ली होती। हमने तो हमारी बेटी दामाद के लिए कार बुक कर रखी थी, जिसकी डिलीवरी अब दो दिनों के बाद होने वाली है। हमने आप लोगों को और श्लोका को भी उसके विषय में नहीं बताया था क्योंकि हम उसे और मिलन को सरप्राइज देना चाहते थे। आज हम यहाँ उन दोनों को लेने आए थे ताकि दो दिनों के बाद वह कार लेकर हम उन्हें उस कार में विदा करें। लेकिन आप लोगों ने सब ख़त्म कर दिया।"
इसके बाद श्लोका का हाथ पकड़ते हुए उन्होंने कहा, "चलो श्लोका बेटा, तुम दुखी मत होना जीवन के सफ़र में कभी-कभी ऐसे लोगों से भी मुलाकात हो जाती है जो ऊपर वाले को भी धोखा देते हैं।"
अनुराधा और मिलन हाथ जोड़कर माफ़ी मांगना चाह रहे थे लेकिन उनके हाथ कुछ भी ना लग सका, ना कार, ना माफ़ी और ना ही मिलन की जीवनसाथी।
श्लोका अपने पापा मम्मी के साथ अपने घर लौट गई। अनुराधा और मिलन हाथ मलते रह गए। जाते समय श्लोका मिलन की तरफ़ देख रही थी। वह उससे बहुत प्यार करती थी लेकिन मिलन की लालच ने उसके प्यार को अनदेखा कर दिया था। आज वह पछता रहा था परंतु अपनी जाती हुई पत्नी को रोकने के लिए ना तो उसके पास हिम्मत थी और ना ही कोई शब्द थे। मानो वह बोलना ही भूल गया था। वह मौन होकर उसे जाता हुआ देखता रहा और श्लोका कुछ ही पलों में उसकी नजरों से ओझल हो गई।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त