एपिसोड 7: अधूरी बातें, अनकही बातें
रात का समय था। Silent Shore अब भी वैसा ही था, बस इस बार यहाँ कोई नहीं था। सड़क के किनारे लगी स्ट्रीट लाइट्स की हल्की रोशनी समुद्र की लहरों पर पड़ रही थी, और हवा पहले से ज़्यादा ठंडी लग रही थी।
मेहुल अब भी वहीं खड़ा था, जहाँ कुछ घंटे पहले वह रेनी से मिला था। लेकिन इस बार उसके दिमाग में सिर्फ़ रेनी नहीं थी—वह अनजान लड़की भी थी।
अनजान लड़की: कभी-कभी हम जिस चीज़ से भाग रहे होते हैं, वही हमें बार-बार मिल जाती है...
उसके कहे ये शब्द बार-बार मेहुल के कानों में गूंज रहे थे।
मेहुल: वो कौन थी? क्या वो किसी दर्द को छिपा रही थी? या फिर... वो मुझे किसी अनजाने सच से आगाह करने आई थी?
उसका मन सवालों से भरा हुआ था। उसे वो लम्हा याद आया जब लड़की का चेहरा आधा अंधेरे में छुपा हुआ था। उसकी गुलाबी ड्रेस हल्की हवा में हिल रही थी, और उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जिसे मेहुल समझ नहीं पाया था—शायद कोई दर्द, कोई कहानी, या फिर कोई छिपा हुआ सच।
कुछ दिन बाद...
मेहुल फिर से Silent Shore पर आया। इस बार उसके अंदर एक अजीब बेचैनी थी। रेनी से मिलने के बाद भी उसका ध्यान उस लड़की पर ही था। उसने अनायास ही समुद्र के किनारे नज़रें दौड़ाई।
और तभी...
वह फिर दिखी।
वही गुलाबी ड्रेस, वही खुली ज़ुल्फ़ें... लेकिन इस बार वह अलग लग रही थी। जैसे वो किसी उलझन में हो। उसके चेहरे पर अजीब सी उदासी थी, और उसकी आँखें... जैसे कुछ कहना चाहती हों।
मेहुल: (आश्चर्य से) तुम? तुम फिर यहाँ?
लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस शांत खड़ी रही, जैसे सोच रही हो कि उसे आगे क्या कहना चाहिए।
मेहुल: तुमने उस दिन कुछ कहा था... "हम जिससे भागते हैं, वही हमें बार-बार मिल जाता है..." इसका मतलब क्या था?
लड़की ने हल्की मुस्कान दी। लेकिन उस मुस्कान में कुछ ऐसा था, जिससे मेहुल का दिल बेचैन हो गया।
अनजान लड़की: तुम सच में जानना चाहते हो?
मेहुल कुछ बोलने ही वाला था कि लड़की ने पलट कर समुद्र की ओर देखना शुरू कर दिया। उसके बाल हल्की हवा में उड़ रहे थे, और उसकी आँखें गहराई में कहीं खोई हुई थीं।
मेहुल: (धीरे से) तुम कौन हो?
लड़की ने एक लंबी सांस ली, फिर उसकी आँखें सीधे मेहुल की आँखों में टिक गईं।
अनजान लड़की: मैं वही हूँ, जिससे तुम भाग रहे हो...
(सन्नाटा। समुद्र की लहरें ज़ोर से किनारों से टकराईं, जैसे किसी तूफान की आहट हो।)
मेहुल: तो फिर आप बता सकते हो, वो दो शब्द में आप क्या कहना चाह रहे हो?
लड़की ने एक पल को आँखें बंद कीं, जैसे किसी भूले हुए दर्द को दोबारा जी रही हो। फिर उसने धीरे से कहा—
अनजान लड़की: "सच... और... पछतावा।"
मेहुल के चेहरे पर उलझन थी।
मेहुल: (आश्चर्य से) सच और पछतावा? इसका मतलब...?
लड़की ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखें नम थीं।
अनजान लड़की: तुम जल्द ही समझ जाओगे... लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी।
(हवा की सरसराहट और लहरों की आवाज़ के बीच एक अजीब सा सन्नाटा छा गया।)
मेहुल के भीतर अजीब सी बेचैनी उठने लगी। उसकी आँखें उस लड़की के चेहरे पर टिक गईं, मानो वो हर छुपे हुए शब्द को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो।
मेहुल: अगर मुझे जानना ही है, तो अभी बता दो। मुझे इंतज़ार पसंद नहीं।
लड़की ने एक गहरी सांस ली, उसकी आँखों में एक अजीब चमक उभरी।
अनजान लड़की: कुछ बातें वक्त से पहले नहीं बताई जा सकतीं, और कुछ सच ऐसे होते हैं जो सही समय पर ही समझ में आते हैं।
मेहुल: और अगर वो समय कभी आए ही नहीं?
लड़की ने हल्के से सिर हिलाया, जैसे उसे इस सवाल का जवाब पता हो।
अनजान लड़की: तब पछतावा ही रह जाता है...
(एक ठंडी हवा का झोंका आया और लड़की की गुलाबी ड्रेस हवा में लहराने लगी। उसकी आँखों में गहराई थी, लेकिन वो धीरे-धीरे पीछे हटने लगी, जैसे इस बातचीत का अंत हो चुका हो।)
मेहुल ने एक कदम आगे बढ़ाया।
मेहुल: रुको... क्या तुम फिर आओगी?
लड़की रुकी, बिना पीछे देखे एक पल के लिए खड़ी रही, फिर हल्की आवाज़ में बोली—
अनजान लड़की: शायद... अगर तुम्हें सच में मेरी ज़रूरत हुई तो।
और फिर वो धीरे-धीरे धुंध में गायब हो गई, जैसे कभी थी ही नहीं।
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