Jurm ki Dasta - 7 in Hindi Crime Stories by Salim books and stories PDF | जुर्म की दास्ता - भाग 7

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जुर्म की दास्ता - भाग 7

जयदीप ने फिलहाल सुजान के विरुद्ध और कुछ कहना उचित नहीं समझा। उसे उन दोनों की ही बात ठीक लगी थी
कि जब तक सुजान के विरुद्ध कोई ठोस सबूत हाथ न लग जाए जब तक उसके विरुद्ध खुलेआम कोई आरोप लगाना ठीक नहीं।

लिहाजा जब पुलिस ने आकर बयान लिए तो उन्होंने हमले की घटना के बारे में तो विस्तार से बता दिया लेकिन सुजान का नाम कहीं नहीं लिया।

जब पुलिस ने जयदीप से पूछा कि वह सही मौके पर सहायता के लिए कैसे पहुंच गया तो उसने बयान दिया कि वह एयरपोर्ट कुछ देर से पहुंचा तब तक यह दोनों टैक्सी में सवार होकर चल पड़ी थीं। उसने उन्हें टैक्सी में बैठते देख लिया और फिर मोटर साइकिल को टैक्सी के पीछे लगा दिया....।

बाकी बयान तीनों का एक ही जैसा था।

शेफाली ने अपने पिस्तौल का लाइसेंस भी दिखाया।

बयान लेकर पुलिस चली गई। जाते समय होटल से टैक्सी भी अपने साथ ले गई।
"क्या ख्याल है, सुजान को फोन किया जाए?" पुलिस के जाने के बाद शेफाली ने पूछा- "देखें क्या कहता है?"

"फोन नम्बर है आपके पास?" शारदा ने पूछा।

"जयदीप के पास होगा। "

"घर पर है। वैसे तो मुझे याद नहीं। लेकिन डायरेक्टरी में मिल जाएगा।"

डायरेक्टरी में सुजान का फोन नम्बर देखकर उसे फोन किया गया।

शेफाली का परिचय पाकर वह बोला।

"ओह शेफाली जी, मैं आपको लेने के लिए एयरपोर्ट पहुंचने वाला था किन्तु रास्ते में मेरी कार खराब हो गई। जब वहां पहुंचा तो आप वहां से चल चुकी थीं। मैं अभी-अभी वापिस लौटा हूं। वैसे आप बोल कहां से रही हैं?"

"होटल से।"

"होटल से क्यों?" दूसरी ओर से सुजान की आवाज आई-"मैंने तो आपके लिए आपकी खानदानी कोठी को पूरी तरह से तैयार करके रेखा है।"

"लेकिन मुझे क्या मालूम?"

"आप अपने होटल का पता दीजिए। मैं अभी वहां पहुंच रहा हूं।"

शेफाली ने पता देकर रिसीवर रखते हुए कहा।

"सुजान आ रहा है?"

"उसे अभी क्यों बुचा लिया आपने?" शारदा बोली - "सफर से थकी हुई आई हैं। कुछ देर आराम कर लेती तो....।

"उसने खुद आने के लिए कहा तो मैंने टोकना मुनासिब न समझा। वैसे भी मैं एक नजर उस आदमी को खुद देख लेना चाहती हूं। तुम चाहो तो दूसरे कमरे में जाकर आराम कर लो।"

"आप जागती रहें और मैं.....।"

"क्या बेवकूफी की बातें कर रही हो शारू। तुम्हें कितनी बार कहना पड़ेगा कि तुम अपने आपको मेरी सहेली समझो-नौकरानी नहीं। जाओ जाकर आराम करो। सुजान के आने तक मैं जयदीप से बात करती हूं।"

शेफाली ने जबरदस्ती शारदा कोदू सरे कमरे में भेज दिया, आराम करने के लिए।

फिर वह सुजान के आने तक जयदीप से बात करती रही। उससे उसके बारे में सवाल किए।

जयदीप ने उसे बताया कि इसी साल बी०ए० फाइनल किया है। क्रिकेट और जू डो-कराटे का शौक है। नौकरी की तलाश के बाद जो वक्त मिलता है बह इन्ही दोनों क्लबों में प्रैक्टिस करके गुजारता है।

"तो नौकरी की तलाश है तुम्हें?" शेफाली ने गम्भीरता से

कुछ सोचते हुए कहा।

"जी है तो सही, लेकिन आज के जमाने में नौकरी कोई आसानी से तो मिलती नहीं।"

"अगर कोई नौकरी मिले तो करोगे?"

"करने लायक होगी तो जरूर करूंगा।"

"जब तक तुम्हें कोई ढंग की नौकरी नहीं मिलती तब तक तुम मेरे बाडीगार्ड बने रहो तो क्या बुराई है?"

"जी?"

"हां।" शेफाली ने दीर्घ निःश्वास के साथ कहा-" आज जो हमला मुझ पर हुआ है उसके पीछे अगर सुजान का ही हाथ है तो किसी भी अन्य सम्भावित खतरे से बचने के लिए मुझे एक बाडीगार्ड की जरूरत तो पड़ेगी ही। क्यों न तुम्हीं इस काम को कर लो?"

"जी.... लेकिन.....।"

"तनख्वाह दो हजार रुपए महीना?"

"मुझे मंजूर है।"

शेफाली धीरे से मुस्कराई।

वे लोग बातें कर ही रहे थे कि तभी सुगन वहां पहुंच गया। तब तक बाहर सुबह का उजाला भी फैल गया था।

परस्पर परिचय के बाद शेफाली बोली-
"लगता है कि कुछ गुंडों को यह बात मालूम हो गई थी कि आपकी कार रास्ते में खराब हो गई है।"

"क्या मतलब?" सुजान चौंका।

"जब मैं और शारदा एयरपोर्ट से टैक्सी में आ रहे थे तो हमें अकेली लड़कियां समझ कर कुछ गुंडों ने हम पर हमला कर दिया था।"

"अरे!"

"अगर आप साथ होते तो आयद उन बदमाशों की हिम्मत न पड़ती। वह टैक्सी ड्राइवर भी उनके साथ मिला हुआ था।

"आपको कहीं चोट तो नहीं आई?"

"नहीं।" शेफाली बोली-मिस्टर जयदीप सही वक्त पर हमारी मदद के लिए पहुंच गए थे।"

"तुम वहां अचानक कैसे पहुंच गए?" सुजान ने जयदीप की ओर उन्मुख होकर पूछा।

"मैं उस वक्त क्लब जा रहा था कि अचानक इनकी चीख सुनकर रुक गया।"

"सुबह के चार-पांच बजे के वक्त कौन-सा क्लब खुलता हे?" सुजान ने जयदीप को घूरते हुए पूछा।

"मैं उस क्लब की बात नहीं कर रहा जो तुम सोच रहे हो। मैं अपने जूडो-कराटे के क्लब की बात कर रहा हूं।"

"ओह।" सुजान बोला फिर शेफाली की ओर उन्मुख होकर बोला-"शरीफ औरतों का तो घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है। भगवान का शुक है कि वे गुंडे आपको कोई नुक्सान नहीं पहुंचाने पाए। लेकिन आपको इस होटल में ठहरने की क्या जरूरत है? मैंने आपकी कोठी को बिल्कुल नए ढंग से फर्निश कर दिया है। "

"अब जब होटल में ठहर ही गए हैं तो कुछ देर यहीं आराम कर लेते हैं। "शेफाली बोली-"शाम को कोठी चले जाएंगे।"

"तब क्यों न आज शाम कोठी में एक भव्य समारोह का आयोजन किया जाए।" सुजान बोला- "इतने साल बाद आप के यहां वापिस लौटने के उपलक्ष में एक शानदार स्वागत समारोह भी हो जाएगा और इस बहाने शहर के प्रमुख लोगों से आपका परिचय भी हो जाएगा।"

"आइडिया तो बुरा नहीं है।" शेफाली ने कहा-"लेकिन इतनी जल्दी यह सब इन्तजाम.....?"

"उसकी आप चिन्ता मत कीजिए। मैं सब कर लूंगा।"

"तब ठीक है। आप पार्टी का प्रबन्ध कीजिए और हा.... जब मैं यहां से गई थी तब जिस स्कूल में पढती थी.....।

"मुझे मालूम है। दयावती पब्लिक स्कूल.....।"

"उसमें एक टीचर थीं मिसेज भसीन। बहुत ही भली औरत थीं। मुझे इतना प्यार करती थीं कि अमरीका में इतने साल रहने के बावजूद भी उन्हें भुला न पाई।"

"उनसे मिलना चाहती हैं आप?"
"मैं सोच रही हूं कि अगर मिसेज भसीन को शाम की पार्टी में बुला लिया जाए.....।"

"नो प्राब्लम। मैं उन्हें शाम की पार्टी में बुला लूंगा। और किसी खास आदमी को बुलाना चाहती हैं आप?"

"इतने सालों के अन्तराल के बाद और तो सब यादों के धुंधलकों में खो गए हैं। बस मिसेज भसीन हीं याद रहीं। उन्हें ही आप बुला लीजिएगा।"

"बहुत बेहतर है।"

"आपसे एक और बात भी कहनी है।"

"आज्ञा कीजिए?"

"वसीयत के मुताबिक कुछ ही महीने बाद मैं समस्त सम्पत्ति की अधिकारिणी बन जाऊंगी। सो अब जब मैं आ ही गई हूं तो एक नजर सारा हिसाब-किताब भी देख लेना चाहती हूं।"

"सारा हिसाब शीशे की तरह साफ है। सुजान धीरे से हंस कर बोला- "फिर भी मैं जल्दी ही सारे कागजात तैयार करके अरपके सामने पेश कर दूंगा।"

"कागजात जरा जल्दी तैयार करवा लीजिएगा।"

"आप चिन्ता न कीजिए। "सुजान उठता हुआ बोला- "अब मुझे आज्ञा दीजिए। समय बहुत कम है। दिनभर में पार्टी की तैयारियां करनी हैं और सब लोगों को निमंत्रित भी।"

सुजान चला गया।
उसके जाने के कुछ देर बाद जयदीप भी वहां से चल दिया किन्तु उसके चलने से पहले शेफाली ने उसे शाम को होटल आने के लिए कह दिया था।