Jurm ki Dasta - 4 in Hindi Crime Stories by Salim books and stories PDF | जुर्म की दास्ता - भाग 4

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जुर्म की दास्ता - भाग 4

"तुम सुजान को पूरी तरह से जानते नहीं।" उमाशंकर ने एक दी निःश्वास के साथ कहा-"एक नम्बर का हरामी है। फिर अपनी बात को पुलिस के सामने साबित करने के लिए कोई सबूत भी तो नहीं है। रहमत मियां का हवाला भी नहीं दे

सकता मैं। "

"लेकिन इस अपहरण को रोकने के लिए पुलिस को खबर करने के अलावा और कोई चारा भी तो नहीं है। सुजान और उसके दोस्त की पुलिस में बहुत ज्यादा जानकारी हो सकती है। लेकिन कोई सारा पुलिस डिपार्टमेंट तो उनका खरीदा हुआ नहीं हो सकता। मेरी मानिए और पुलिस में खबरकर दीजिए

"मेरा ख्याल कुछ और है।"

“वह क्या?"

"मैं सोचता हूं कि रात को एयरपोर्ट चला जाऊं और सुबह जब शेफाली विमान से उतरे तो उसे सुजान की चाल से अवगत कराकर उजाला होने तक एयरपोर्ट पर ही रुकने के लिए कहूं। दिन के उजाले में तो सुजान उसका अपहरण करने की हिम्मत नहीं कर पाएगा।"

"आप जाएंगे एयरपोर्ट?" जेयदीप ने पिता को प्रश्नपूर्ण दृष्टि से देखते हुए कहा-"इस दिसम्बर की सर्दी में? वैसे ही हफ्ते भर से जुकाम-खांसी में परेशान हो रहे हैं आप । कहीं और ठंड लग गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे।"

"अरे कुछ नहीं होगा मुझे ।"

"नहीं मैं आपको नहीं जाने दूंगा।"

"तुम नए जमाने है लड़के हो। इसलिए हम जैसे नमक हलालों की भावनाओं को नहीं समझ सकते। जिस मालिक का नमक खाया है उसके परिवार के लिए हम लोग अपनी जान तक दे सकते है।"

"आप यही तो चाहते हैं ना कि सुजान के षड्यन्त्र की खबर अमरीका से आ रही शेफाली को मिल जाए।" जयदीप बोला- तो आपके जाने की कोई जरूरत नहीं है। मैं एयरपोर्ट जाकर उसे सावधान कर दूंगा।"

"तुम कर दोगे यह काम?"

"इसे करने में भी करने में भी कोई मुश्किल है क्या? "जयदीप ने

कहा। फिर कुछ सोचकर बोला- 'हां एक दिक्कत है कि मैं उसे पहचानूंगा कैसे?

"उसने पत्र के साथ अपनी फोटो भेजी है।" उमाशंकर ने लिफाफे मेंसे एक रंगीन फोटो निकालते हुए कहा- " यह फोटो अपने साथ ले जाना। बिना फोटो के तो मैं भी नहीं पहचान पाता उसे। जब पिछली बार देखा था तो आठ-नौ साल की छोटी-सी गुड़िया थी। अब इतनी बड़ी हो गई है कि पहचान में भी नहीं आ रही।"

जयदीप ने एक बार फोटो को जोर से देखा और फिर उसे जेब में रखता हुआ बोला- " अगर आपकी इजाजत हो तो शेफाली का भेजा हुआ पत्र भी पढ़ लूं मैं।"

"हां हां क्यों नहीं।"

उमाशंकर ने लिफाफे में से पत्र निकालकर उसे दे दिया।
जयदीप ने पत्र पढ़ा।

डीयर अंकल,

आपने जो पिछले दिनों सूचनाएं भेजी उसके आधार पर मैंने हिन्दुस्तान पहुंचने का निश्चय कर लिया है और पहली दिसम्बर को सुबह चार बजे की फ्लाईट से पहुंच रही हूं। इसकी सूचना मैंने पत्र द्वारा सुजान को भी दे दी है।

आपने तो मुझे बइत बचपन में देखा था। बड़ी होकर मैं कैसी दिखाई देती हूं इसका अनुमान आप इस पत्र के साथ भेजी जा रही फोटो को देखकर लगा लेंगे। पहचान के लिए अपनी एक फोटो मैंने सुजान के पास भी भेजी है।

पहले मौसा मौसी का भी मरे साथ आने का प्रोग्राम था। किन्तु मौसी की तबीयत अचानक खराब हो जाने की वजह से अब मैं अकेली ही आ रही हूं। बस हमारी नौकरानी शारदा मेरे साथ आ रही है। जो मेरे लिए नौकरानी कम और सहेली ज्यादा है।

आपकी शेफाली
जयदीप ने पत्र भी अपनी जेब में रख लिया था।

और अब वह एयरपोर्ट पर खड़ा उन दोनों को बाहर की ओर जाते देख रहा था पहले जयदीप का यही इरादा था कि वह प्लेन ने उतरते ही शेफाली को सुजान के षड्यन्त्र के विषय में सावधान करके उजाला होने तक एयरपोर्ट पर ही रुकने के लिए कहेगा।

लेकिन बाद में उसने अपना इरादा बदल दिया। क्योंकि उसे खतरा था कि शेफाली शायद उसकी बात पर यकीन न करे और यही समझे कि सुजान के खिलाफ उसके कान भरने की कोशिश की जा रही है।

बेहतर तो यही होगा कि इन्हें अपने ढंग से चलने दें और निश्चित दूरी से सावधानी के साथ पीछा करता रहें ताकि जब सुजान के आदमी कुछ गड़बड़ करने की कोशिश करें तो  वह सहायता के लिए पहुंच जाएं।
इस प्रकार उसका प्रभाव भो अच्छा पड़ेगा और शेफाली को सुजान की मक्कारी के बारे में भी अच्छी तरह से यकीन आ जाएगा।

लिहाजा वह निश्चित दूरी से उनके पीछे लगा रहा।

कुछ देर बाद ही दिसम्बर की उस कड़कड़ाती रात में बह मोटर साइकिल द्वारा उस टैक्सी का पीछा कर रहा था जिसमें वे दोनों बैठी हुई एअरपोर्ट से शहर की ओर जा रही थीं।

अचानक ही टैक्सी मुख्य सड़क को छोड़कर एक उप स की ओर मुड़ गई और फिर एक निर्जन स्थान पर रुकी उसके निर्जन स्थान पर रुकते ही अंधेरे में से छः सात आदमी तेजी के साथ निकलकर आए और उन्होंने टैक्सी को घेर लिया।

साथ ही दोनों ओर के दरवाजे खोलकर बडी निर्ममता के साथ दोनों लड़कियों को बाहर खींच लिया।