उसके बाद वहां ज्यादा बातें नहीं हुई। जयदीप ने पूछा कि उन्हें जहां भी जाना है वह पहुंचा देगा। जिम पर शेफाली ने जयदीप ने जैसे ही कार को मुख्य सड़क छोड़कर एक अन्य सड़क की ओर मुड़ते देखा वैसे ही उस इस बात का यकीन आ गया कि सुजान का खेल शुरू हो गया है।
अभी तक तो वह मुख्य सड़क का जो भी थोड़ा बहुत ट्रैफिक था उसकी आड़ में अपने को रखे हुए था। किन्तु ईस दूसरी सड़क पर अगर टैक्सी ड्राइवर को अपने पीछे मोटर साइकिल की रोशनी नजर आई तो उसे तुरन्त अपने पीछा किए जाने का शक हो जाएगा।
इस बात में भी जयदीप को कोई संदेह नहीं रहा था कि टैक्सी ड्राइवर भी सुजान से मिला हुआ है।
लिहाजा टैक्सी के पीछे उस सड़क पर मुड़ने से पहले उसने अपनी मोटर साइकिल की हैड लाइट्स बुझा लीं और टेल लाइट्स के सहारे टैक्सी का पीछा करता रहा।
फिर उसने एक जगह टैक्सी को रुकते देखा तो अपनी मोटर साइकिल भी रोक ली। उसी के साथ उसने एक साथ कई छायाओं को अंधेरे से निकलकर टैक्सी को घेरते देखा।
साथ ही लड़कियों की चीख सुनाई दी।
बस तभी उसने तूफान की-सी तेजी के साथ मोठर साइकिल दौड़ाई और वहां पहुंच गया।
इससे पहले कि उस अंधरे में वे गुंडे उसे अच्छी प्रकार देख पाते उसने अपनी मोटर साइकिल की टक्कर से दो को ढेरकर दिया। फिर गिरती हुई मोटर साइकिल से वह गेंद की तरह हवा में उछला और जूतों की एड़ियों से दो जनों की नाक तोड़ता हुआ जमीन पर जा टिका।
बताया उसे उम्मीद थी कि सुजान उन्हें एयरपोर्ट पर लेने के लिए आएगा। उसी ने उनके ठहरने का भी प्रबन्ध किया होगा। लेकिन सुजान वहां पहुंचा ही नहीं। फैसला हुआ कि फिलहाल वे किसी होटल में ठहर जाए।
जयदीप उन्हें एक होटल में ले गया।
शेफाली और शारदा टैक्सी में बैठी और शेफाली ने ही उसे ड्राइव किया। जयदीप मोटर साइकिल पर उनका पथ-प्रदर्शक बनकर आगे-आगे चलता रहा। किन्तु इस बात के प्रति सावधान रहा कि दोनों वाहनों के बीच ज्यादा फासला न होने पाए।
होटल के कमरे में पहुंचने के बाद उन लोगों ने सबसे पहले चाय मंगाई और फिर सोफे पर बैठकर बात करने लगे।
"हां तो एयरपोर्ट पर ही आपने वह सब कुछ क्यों नहीं बता दिया?" शेफाली ने जयदीप के निकट बैठते हुए कहा-"ताकि हम सावधान हो जाती। या आप हम लड़कियों पर अपनी मर्दानगी का रौब डालना चाहते थे?"
"नही ऐसी बात नहीं है।" जयदीप ने एक संकोचपूर्ण मुस्कान के साथ कहा- "दरअसल एयरपोर्ट पर मैं आपको सावधान करने के इरादे से ही पहुंचा था। किन्तु बाद में सोचा कि मैं और पिताजी आपके लिए एक किस्म से अजनबी ही हैं। आप यह भी तो सोच सकती हैं कि हम लोग अपने किसी निजी स्वार्थ के कारण सुजान के विरुद्ध आपके कान भरने की कोशिश करे रहे हैं। यही सोचकर....।"
"यह तो मैं अब भी सोच सकती हूं।"
"जी?"
"जी हां, यह भी तो हो सकता है कि आपने मेरा विश्वास जीतने के लिए यह सब नाटक किया हो कि अपने ही आदमियों से हम पर हमला करवा दिया और फिर विश्ववास जीतने के लिए मददगार बनकर पहुंच गए। फिल्मों में हीरोइन को फुसलाने के लिए हीरो को कई बार ऐसी चालें चलते हुए देखा है मैंने?"
"आप ऐसा सोच रही है मेरे बारे में?"
"सोच नहीं रही हूं।" शेफाली ने उसके घुटने पर हाथ रखा लेकिन जयदीप ने तुरन्त अपना घुटना वहां से हटा लिया
-"लेकिन ऐसा सोचा तो जा सकता है।"
जयदीप के जवाब देने से पहले ही दरवाजे पर दस्तक हुई।
शारदा ने दरवाजा खोला।
चाय लाने वाले वेटर के साथ ही होटल के मैनेजर ने प्रवेश किया।
"सुना है आप लोग टैक्सी में आए हैं?" भीतर प्रविष्ट होते ही मैनेजर ने कहा।
"तो?" शेफाली ने उसकी ओर प्रश्नपूर्ण दृष्टि के साथ देखा।
"मेरा मतलब है कि टैक्सी को ड्राइवर नहीं चला रहा। मैनेजर ने कहा- "किसी ड्राइवर की जगह.....।"
"हां यह बात अजीब जरूर लगी होगी।" शेफाली धीरे से
बोली-"लेकिन उस ड्राइवर ने हम दोनों लड़कियों को अकेला समझकर लूटने की कोशिश की थी। वह तो मिस्टर जयदीप समय पर हमारी सहायता के लिए पहुंच गए...।"
"आपने इस घटना की रिपोर्ट पुलिस में की?"
"जी नही?"
"वह क्यों?"
"अमरीका से यहां तक के लम्बे सफर के कारण हम वैसे ही बुरी तरह थकी हुई थीं उस पर उस बदमाश टैक्सी ड्राइवर और उसके साथियों द्वारा हमें लूटने की कोशिश... इस सारी परेशानी के बाद हम चाय पीकर थोड़ा आराम कर लेना चाहती थीं न कि पुलिस के चक्कर में उलझकर और परेशान होना।"
"लेकिन पुलिस में तो आपको इस घटना की सूचना देनी ही चाहिए।"
"अगर आप जरूरी समझते हैं तो आप खुद पुलिस को खबर कर दीजिए।" शेफाली ने विरल से भाव के साथ कहा।
"लेकिन पुलिस को बयान तो आपको ही देने होंगे।"
"मगर उसके आने तक मैं आराम से चाय तो पी लूंगी।"
"ठीक है, मैं फोन किए देता हूं।"
मैनेजर के साथ वेटर चला गया।
शारदा चाय बनाने लगी।
"आप पुलिस में रिपोर्ट करने से क्यों हिचक रही है?" उन दोनों के जाने के बाद जयदीप ने पूछा।
"पुलिस में रिपोर्ट करने से कोई फायदा नजर नही आ रहा।" शेफाली बोली-"जिन लोगों ने हम पर हमला किया
उनमें से किसी को हम नहीं पहचान सकतीं। उस टैक्सी ड्राइवर तक को नहीं पहचान सकतीं। क्या आप पहचान सकते हैं उनमें से किसी को?"
"नहीं, पहचान तो नहीं सकता। लेकिन कम से कम इतना तो मालूम ही है कि यह हमला किसने करवाया है।"
"किसने करवाया है?"
"सुजान ने।"
"इस बात को साबित करने के लिए कोई सबूत है?"
"सबूत तो नही है.....।"
"बिना सबूत के किसी पर यूं ही दोषारोपण करना मूर्खता होगी।"
शारदा ने उन दोनों को चाय दी।
"फिर एक और वजह से भी मैं पुलिस में रिपोर्ट नहीं करना चाहती थी?" शेफाली ने चाय का घूंट भरते हुए कहा।
"किस वजह से?"
"अगर वाकई इस हमले के पीछे सुजान का हाथ है तो मैं
पुलिस में रिपोर्ट न करके उसे कुछ उलझन में डाल देना चाहती थी।"
"मैं कुछ समझा नहीं।"
"वे गुंडे अगर सुजान के ही आदमी थे तो उनकी नाकामयाबी का पता उसे लग ही गया होगा। मेरा विचार था कि पुलिस में रिपोर्ट न कराई जाती तो सुजान शायद यह सोचकर कुछ भ्रमित हो उठता कि हमने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं कराई। उस भ्रम में शायद वह कोई ऐसी बेवकूफी कर बैठता। जिससे उसकी बदनियती का सबूत मिल जाता। यही सब सोच कर मैं पुलिस में रिपोर्ट नहीं करना चाहती थी। किन्तु उस टैक्सी को मैं चलाकर लाई इसलिए होटल वालों को शक हो गया। काश इस बात की ओर मैंने ध्यान दिया होता और टैक्सी होटल से पहले ही कहीं छोड़ दी होती।"
"लेकिन अब तो पुलिस को सब बताना ही होगा?" जय दीप बोला।
"मेरा ख्याल है कि फिलहाल सुजान का नाम बीच में न लिया जाए तो बेहतर होगा। तेरा क्या ख्याल है शारू?"
शेफाली ने शारदा से पूछा।
"मैं इस बारे में क्या कह सकती हूं।" शारदा बोली- "वैसे बात आपकी ही ठीक लगती है कि जब तक किसी के खिलाफ कोई पक्का सबूत हाथ में न हो तब तक उसके खिलाफ कोई आरोप लगाना उचित नहीं।"