"मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि शेफाली इस तरह अचानक ही अमरीका से लौट आएगी। सोचा था कि उसके आने में दो एक साल तो लगेंगे ही तब तक मैं सब इन्तजाम कर लूंगा।"
"शादी कर ली है उसने ?"
"अभी नहीं।"
"फिर तो अभी एकदम इन्तजाम तुम्हारे हाथ से निकलने वाला नही।"
"लेकिन तुम यह क्यों भूलते हो कि जायदाद की देखभाल
करने का असली अधिकार मेरे पिताजी को था मुझे नहीं।"
“खैर इस मामले को कानूनी बहम में उलझाने का कोई फायदा नहीं है। मोटी बात यह है कि पचास लाख का घपला किया है तुमने । अगर लौटने पर शेफाली को उसका पता चल गया तो वह तुम्हें सीधें अन्दर करवा सकती है।"
"वकील हूं, इतनी बात मुझे भी मालूम है। इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है।"
"तुमने इस मुसीबत से निकलने का क्या उपाय सोचा है।
"जब से उसके आने की चिट्ठी आई है तब से मेरी खोपड़ी तो काम ही नहीं कर रही। तुम बताओ कि इस मुसीबत से कैसे निकला जा मकता है?"
"जरा सोचने दो।" कुलवन्त फिर उस रंगीन तस्वीर को उठाकर देखने लगा।
कुछ देर देखते रहने के बाद उसने एक ही सांस में अपना गिलास खाली किया और सुजान के सामने रखता हुआ बोला, "लाओ व्हिस्की डालो।"
सुजान ने व्हिस्की डाली।
"तम कह रहे थे कि यह लड़की आठ नौ साल उम्र में अमरीकी चली गई थी अपने मौसा मौसी के पास ।"
"हां ।"
"उसके बाद अब तक हिन्दुस्तान लौटकर नहीं आई?"
"नहीं। तब की गई हुई बस अब आ रही है लौटकर ।"
"इसका मतलब है कि यहां कोई नहीं जानता कि वह अब देखने में कैसी है? कोई उसे नहीं पहचान सकता।"
"आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?"
"क्यों न एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही उस लड़की को गायब कर दिया जाए और तुम किसी और लड़की को शेफाली बना कर पेश कर दो। वह लड़की दिखावे के लिए मालिक होगी परदे के पीछे सारी दौलत के असली मालिक तुम बने रहोगे जिन्दगी भर के लिए।"
"लेकिन ऐसी लड़की मिलेगी कहां ?"
"वह इन्तजाम मैं कर दूंगा।"
"मगर इसमें एक गड़बड़ है।"
"वह क्या?"
" अगर कभी शेफाली के मौसा मौसी अमरीका से उससे मिलने के लिए आ गए तब तो वे फौरन ही पहचान जाएंगे यह असली शेफाली नहीं है और भांडा फूट जाएगा।"
"यह बात तो है।" कुलवन्त होंठ भींचकर विचारपूर्ण मुद्रा में
बोला- " अगर यह साले मौसा मौसी भी मर गए होते तो सारा काम आसान हो गया था। खैर कुछ और सोचते हैं।"
थोड़ी देर बाद कुलवन्त ने एक दूसरी तरकीब बनाई।
"एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही लड़की का अपहरण कर लेते हैं नौकरानी समेत । उसके बाद उसे छोड़ने के लिए बदले में फिरौती की मांग कर लेते हैं। जायदाद तो खैर तुम्हारे हाथ से वैसे भी निकलनी है। लेकिन इस तरकीब से तुम्हें कुछ करोड़ रुपए मिल जाएंगे।"
"कहीं पुलिस को मुझ पर ही शक हो गया तो?"
"तुम पर शक क्यों होगा?न तुम पिक्चर में आओगे न मैं काम करने वाले आदमी काम करेंगे। हां उनका मेहनताना देना पड़ेगा कुछ लाख......."
"अगर काम सही ढंग से निबट गया तो जो मांगोगे सो दे दूंगा।"
वे दोनों आपस में बैठे हुए षडयन्त्र रचने रहे।
"अच्छा तो अब मैं चलता हूं।" अचानक ही कुलवन्त ने एक झटके के साथ उठते हुए कहा।
"अभी से ही? अभी तो आधी बोतल भी खत्म नहीं हुई।"
"सुबह चार बजे के प्लेन से वह छोकरी आने वाली है। उससे पहले पहले सारा इन्तजाम करना है मुझे। कुलवन्त ने उससे विदा लेते हुए कहा।
दरवाजे के बाहर खड़ा रहमत मियां उन लोगो की सारी बातें सुन रहा था। कदमों की आह दरवाजे की अए आती सुनी तो वह फुर्ती के साथ वहां से हट गया।
सुजानसिंह कुलवन्त को कोठी के बाहर उसकी कार तक छोड़ने के लिए गया तो वह कमरे में घुस कर सामान उठाने लगा। केवल एक गिलास और बोतल वहां छोड़ दी।
सामान किचन में रखने के बाद उसने बाहर से लौटते हुए
सुजान में कहा-" अब अगर कोई काम न हो तो हम बाजार से जाकर जरासा तम्बाकू ले आएं।"
"तुम्हें दिन में अपना तम्बाकू याद नही आया वो अब रात में जाओगे लेने के लिए।"
"ऐसी कोई ज्यादा रात तो नहीं हुई अभी। कुल सात बजे हैं। बस अभी गए और आए।"
"जल्दी आना।" सुजान ने उपेक्षा के साथ कहा और भीतर की ओर चल दिया।
रहमत मियां ने अपनी कोठरी में जाकर कुछ पैसे जेब में डाले और फिर फटे कोट पर पुरानी-सी चादर ओढ़कर दिसम्बर के दूसरे हफ्ते के सर्द मौसम में बाहर निकल आया।
बाहर की सर्दी में उसकी बूढ़ी हड्डयां कांप-सी गई थीं। फिर भी वह तेज कदमों के साथ एक ओर को चल दिया।
कोठी से कुछ दूर ही एक टेलीफोन बूथ था। उसमें घुसकर उसने रिसीवर उठाया ओर अपनी झुर्रीदार उंगली से डायल घुमाया।
दूसरी ओर से उत्तर मिलने पर उसने रिसीव को दोनों हाथों से पकड़कर माऊथपीस में रहस्य भरे स्वर के साथ कहा, "कौन... मैनेजर उमा बाबू .... हम बोल रहे हैं रहमत मियां....