Vakil ka Showroom - 10 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 10

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वकील का शोरूम - भाग 10

“सेवा ? आप मेरी सेवा करोगे मालको? आप दुच्चा सिंह की सेवा करोगे।"

"हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं।" विनोद बोला- "कि गरीबों, लाचारों, अपाहिजों और रोगियों की सेवा करने से बड़ा पुण्य मिलता है।”

टुच्चा सिंह ने जब यह सुना तो उसके चेहरे पर जैसे बारह बज गए। उसने यूं विनोद की ओर देखा, जैसे अगर उसका बस चले तो वह उसे कसकर थप्पड़ जमा दे।

"सोहणयो ।” फिर वह एक आह-सी भरकर बोला- "मैं माइयवां सच में बड़ा गरीब हूं। मेरे से वड्डा लाचार पूरी दुनिया में और कोई नहीं है। मैं अपाहिज भी हूं और रोगी भी हूं।

इसके अलावा और भी बहुत कुछ हूं।" "फिर तो मैं आपकी सेवा करने के लिए तैयार हूं।"

"ओए नहीं साहबो ।” टुच्चा सिंह जोर-जोर से इंकार में गर्दन हिलाकर बोला- "सेवा करो मत । सेवा करवाओ। मेरा माइयवें कुत्ते का जन्म है। मैं सेवा करणे के लिए पैदा हुआ हूं। करवाणे के लिए नहीं।"

"मैं कुछ समझा नहीं।”

"सोहणयो ।” दुच्चा सिंह हाथ जोड़कर बोला- "टुच्चा सिंह,टुच्चे काम कर करके थक गया। उसको इज्जत की जिंदगी दे दो । बड़ा वड्डा शोरूम खोला है आपने । बड़े वकील नौकरी पर रखे हैं। मेरे को वी रख लो।"

“वह तो मैंने रखना ही है।" विनोद सपाट स्वर में बोला । “क...क... क्या?" हैरानी से उछल पड़ा दुच्चा सिंह ।

"जंगल तब तक खूबसूरत नहीं लगता,जब तक कि उसमें हर प्रकार का जानवर न रहता हो। शहर तब तक पूरा शहर नहीं कहलाता, जब तक कि उसमें आदमी और औरतों के अलावा हिजडे न रहते हों। मंदिर तब तक भव्य मंदिर नहीं कहलाता, जब तक कि उसमें सभी देवी-देवताओं की मूर्तियां न हों और सर्कस तब तक अदुरा लगता है, जब तक कि उसमें किसी जोकर के करतब न हो मैं कछ समझा नहीं मालको। आप आखिर कहणा क्या

चाहते हैं।

“मैं कुछ कहना नहीं चाहता। कुछ करना चाहता हूं।" क्या करना चाहते हो?"

"अपने शोरूम में हर तरह के काले कोट वालों की वैरायटी रखना चाहता ा हूँ, जिसमें एक वैरायटी आप भी होंगे।"

मतलब, नौकरी मेरी पक्की?"

“फेवीकोल के जोड की तरह पक्की ।"

"जीयो मालको वाहे गुरु साहब आपको लंबियां उम्रां दें।"

दुच्चा सिंह बोला- "लेकिन तनखा-शनखा क्या होगी?"

"इसका फैसला आप खुद कर लेना।"

क्या मतलब?"

"मेरे शोरूम की एक खासियत यह भी होगी कि वहां काम करने वाला हर आदमी अपनी तनख्वाह अपने काम के हिसाब से खुद सैट करेगा।"

वाह सौहणयो । खुश कर दित्ता । अब ये बताओ कि नौकरी ज्वायन कब करूं?"

"आज । अभी। इसी वक्त ।”

"क...क... क्या?"

“मैं हर वर्ष के हर महीने के हर दिन के हर घंटे के हर मिनट के हर सेकंड को शुभ मानता हूं। मेरा मानना यह है कि किसी काम को शुरु करने का सबसे उत्तम समय आज, अभी और इसी वक्त है

बहुत खूब बड़ा ही बढ़िया। आपके कहने का मतलब ये है कि मैं अभी, इसी वक्त से अपनी नौकरी शुरू कर दूं।"

अगर आप करना चाहें?"

"मेरे को करना क्या होगा मालको।" टुच्चा सिंह हिचकिचाते हुए बोला- "मेरे को केस-वेस लड़ने का जरा कम तजुर्बा है

कम क्या, बिल्कुल नहीं है। आपको तो यह भी पता नहीं है कि वकालत किस चिड़िया का नाम है। आपने तो मुर्गे फंसाए हैं और उनको हलाल करवाकर उनका जरा-सा गोश्त खुद ले लिया है।"

"ये सब जानते हुए भी आप मेरे को नौकरी पर रखना चाहते हो मालको?"

“रख लिया है।"

"लेकिन मैं आपके किस काम आऊंगा।"

"असली कारीगर वही होता है, जो छोटे-से-छोटे, तुच्छ से तुच्छ औजार की भी अहमियत समझता हो । कई बार, जो काम बड़े-से-बड़े हथियार से नहीं हो सकते, लेकिन एक मामूली-सी सुई से हो जाते हैं।"

आपकी लंबी-चौड़ी बातें, अपणी तो समझ से बाहर हैं मालको। अपणे लिए तो बस हुक्म करो। ये बताओ कि करना क्या है?"

बैरिस्टर विनोद टुच्चा सिंह को देखकर मुस्कराया, फिर बोला- "तुम शोरूम चले जाओ और वहां जाकर वो काम करो, जो कोई भी करने को तैयार न हो ।”

"क्या मतलब?"

"सिख कौम को मैं सबसे मेहनती और जुझारू मानता हूं।" विनोद बोला- "सिखों का इतिहास पढ़ा है मैंने और पढ़ने के बाद इस कौम के प्रति मेरे दिल में भारी श्रद्धा पैदा हुई है टुच्चा सिंह आश्चर्य से विनोद की ओर देखने लगा।

मेहनती, जुझारू, लगनशील और सेवाभाव को समर्पित होने के साथ-साथ इस कौम की एक और विशेषता ने मुझे प्रभावित किया है। जानते हो, वह विशेषता क्या है?" “क्या है साहब जी?”

"वह विशेषता यह है कि इस कौम ने कभी किसी काम को छोटा नहीं समझा। आज भी इस कौम में बड़े-बड़े उद्योगपति, अधिकारीगण और मंत्रियों तक ने गुरुद्वारों में श्रद्धालुओं के जूते साफ करने, झाडू-पोचा करने और झूठे बर्तन उठाने तक मै खुद को गौरवान्वित महसूस किया है।"

ये बात तो है साब जी। हम लोगों को दूसरों की सेवा करने में जो संतुष्टि और आनंद मिलता है, वह संसार के किसी और काम में नहीं मिलता। "मुझे इस वक्त गुरु अंगद देव याद आ रहे हैं। अगर लहणा के रूप में गुरु नानकदेव के कहने पर सबकुछ करने की तैयार न हो गए होते तो क्या आज वे हमारे प्रेरणा स्रोत

होते? क्या वे इतने पूजनीय होते? मुझे गुरु अमरदास याद आ

रहे हैं। । बुजुर्ग होते हुए भी जिन्होंने सेवा को अपना जीवन समर्पित कर दिया। गुरु चरणों की कृपा से जिन्हें गुरुत्व मिला।" टुच्चा सिंह का चेहरा गंभीर हो गया। उसके हाथ श्रद्धापूर्वक जुड़ गए।

"तुम्हें इस कोर्ट में दुच्चे काम करते देख मुझे बड़ा दुख हुआ था।” तभी विनोद बोला- “मैंने उसी क्षण निश्चय कर लिया था कि तुम्हें शोरूम ले जाऊंगा।”

“आप धन्य हो मालको ।” कहकर टुच्चा सिंह ने विनोद के पैर पकड़ लिए - "आज से आप मेरे गुरु हुए और मैं आपका चेला हुआ। आप मेरे राम हुए और मैं आपका हनुमान हुआ। आप मेरे रामकृष्ण परमहंस हुए मैं आपका विवेकानंद हुआ। आप मेरे द्रोणाचार्य, मैं आपका एकलव्य हुआ। आप मेरे ... ।"

"बस बस इतना ही बहुत है ।” विनोद हंसकर बोला- “भूल जाओ सबकुछ और अपना जीवन नए सिरे से शुरू करो। जो कुछ भी कमाओ छाती चौड़ी करके कमाओ। हेरा फेरी की जरूरत ही नहीं है।”

अपने कार्यालय के दरवाजे पर जस्टिस राजेंद्र दीवान को मौजूद पाकर उछल-सा पड़ा डॉक्टर प्रकाश सोनेकर फिर अपनी कुर्सी से यूं उठ खड़ा हुआ, जैसे अचानक उस पर कांटे उग आए हों।

“स... आऽऽऽप?" फिर वह हैरानी व प्रसन्नता का प्रदर्शन करते हुए बोला- "आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुला लिया होता।"

सुनकर मुस्करा दिए राजेंद्र दीवान । धीरे-धीरे चलते हुए वे भीतर आए तथा एक कुर्सी पर बैठ गए