Vakil ka Showroom - 11 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 11

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वकील का शोरूम - भाग 11

उन्होंने सोनेकर को भी बैठने का इशारा किया।


"हम यहां अपने स्वार्थ से आए हैं डॉक्टर सोनेकर।" फिर वे बोले- "किसी सरकारी काम से नहीं आए हैं।"


"फिर भी सर...।""


"फिर भी ये कि एक जज बन जाने से हम बड़े नहीं हो गए। हमारी माताजी अक्सर कहा करती हैं कि इंसान धन-दौलत, पद या उम्र मात्र से बड़ा नहीं हो जाता। बड़ा वह तब बनता है, जब वह अपनी धन-दौलत का सदुपयोग करे, अपने पद की गरिमा को बनाए रखे और जिसमें बड़प्पन हो। डॉक्टर साहब, हम आज जज हैं, कल हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बन सकते हैं। हो सकता है राष्ट्रपति भी बन जाएं, लेकिन देखने वाली बात यह है कि क्या हमने इन पदों की गरिमा को बनाए रखा? क्या हम अपने पद की मर्यादाओं को बरकरार रख पाए। कहीं हम मार्ग तो नहीं भटक गए? कहीं हम गरूर में आकर यह तो नहीं भूल गए कि हम आखिरकार एक इंसान हैं, जिसकी रग-रग में इंसानियत का होना बेहद जरूरी है।"


सोनेकर पर दीवान की बातों का गहरा असर पड़ा।


"सर। आपकी हर बात से मैं सहमत और प्रभावित हूं। आज आपको जानने वाला हर व्यक्ति आपको आदर और 'श्रद्धा की नजरों से देखता है। आप कानून के देवता के तौर पर जाने जाते हैं। कहा जाता है कि आपने आज तक कभी कोई गलत फैसला नहीं किया और...।"


"ऐसा लोग कहते हैं।" दीवान सोनेकर की बात काटकर बोले- "हम नहीं। हमारा दिल नहीं। हमारी आत्मा नहीं।" "स...य... ये आप क्या कह रहे हैं सर?"


"हम सिर्फ इतना ही कह रहे हैं डॉक्टर कि जिन उद्देश्यों को लेकर हमने जज बनना चाहा था, उन्हें पूरा करने में हम पूरी तरह कामयाब नहीं हो सके। हालांकि हम चाहते हैं कि अपने दायित्व को पूरा करने के लिए और प्रयास करें। मगर कभी-कभी लगता है कि उनसे भी कुछ हाथ नहीं आएगा।"

"जस्टिस दीवान के बारे में सुना था कि वे कभी उदास नहीं होते । मुस्कराहट उनसे जुदा नहीं होती। जो भी उनसे मिलता है, उन्हीं का होकर रह जाता है, लेकिन ...."


हम उदास नहीं हैं।" दीवान सपाट स्वर में बोले- उदास कभी होंगे भी नहीं, क्योंकि हमने अपनी माताजी को वचन दिया है कि हालात चाहे जो भी रहें, मुस्कराहट हमारा दामन नहीं छोड़ेगी और दिल कभी नाउम्मीद नही होगा ।”


"लगता है, आप अपनी माताजी को बहुत मानते हैं।" “न भी मानें तो क्या फर्क पड़ता है। यह सच्चाई फिर भी अपनी जगह बरकरार रहेगी कि हम उन्हीं की बदौलत संसार में हैं। उन्हें अगर सुरज का दर्जा दिया जाए तो हम उनका बहुत ही मामूली-सा अंश पृथ्वी के माफिक हैं। हम पूरा जन्म भी प्रयास करें तो अपनी माताजी के दूध का कर्ज नहीं उतार सकते ।" “और आपके पिताजी।"


"हमें अफसोस है कि हमारे जन्म से कुछ ही समय पूर्व वे चल बसे और हमें उनकी कृपा नहीं मिली।"


“आपको बुरा तो नहीं लग रहा सर, जो मैं आपसे पर्सनल बातें पूछ रहा हूं।”


"बुरा नहीं, बहुत अच्छा लग रहा है। परदेस में कोई इस तरह के सवाल पूछे तो बहुत ही अच्छा लगता है।"


“आपके लिए क्या मंगवाऊं? ठंडा या गर्म ।"


“फार्मेल्टीज में हमारा विश्वास नहीं। अगर किसी चीज का मन होगा तो आपसे यूं मांग लेंगे, जैसे कोई छोटा भाई बड़े भाई से निःसंकोच मांग लेता है।"


"सर! आप तो मुझे लज्जित कर रहे हैं। भला मैं ..." "आप हमारे बड़े भाई बनने को तैयार नहीं हैं क्या?"


“मैं आपका कुछ भी बनने को तैयार हूं।" सोनेकर इस बार जब बोला तो उसकी आवाज तनिक भर्रा गई - "आपका बड़ा भाई बनना तो मेरा परम सौभाग्य होगा


तो फिर गंभीर होकर बैठ जाइए और सुनिए छोटे भाई की फरियाद। न सिर्फ सुनिए, बल्कि उस पर गौर भी कीजिए।"

"जरूर ।" कहकर सोनेकर तनकर बैठ गया


"हो सकता है। आपको यह सुनकर हैरानी हो।" दीवान बोले- "लेकिन सच्चाई यह है कि इस पागलखाने में किसी खतरनाक षड्यंत्र का ताना बाना बुना जा रहा है।"


"क...क... क्या मतलब?" सुनकर हैरत से उछल पड़ा सोनेकर ।


इस वक्त हम आपको बहुत ज्यादा तो नहीं बता पाएंगे, लेकिन इतना फिर भी बता सकते हैं कि उस षड्यंत्र का सीधा संबंध कानून के शोरूम से है। आप जानते हैं कि कानून के शोरूम के बारे में?"


"मैं उसके मालिक बैरिस्टर विनोद को भी बहुत अच्छी तरह जानता हूं।"


“आप पागलखाने के इंचार्ज हैं। हम यहां सिर्फ आपको सावधान और सतर्क करने आए हैं। अब यह आपने देखना है कि यहां क्या हो रहा है और कैसे हो रहा है?"


"लेकिन सर, आप कम-से-कम यह तो बता दीजिए कि आपको कहां से और क्या सूचना मिली?"


"सॉरी डॉक्टर ! हम यह नहीं बता पाएंगे, लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि हमारी पूरी सूचना बिल्कुल सही है। आप इस पर यकीन कर सकते हैं। एक बात और हम इस बात का भी दावा करते हैं कि इस पागलखाने में इस बात को सिर्फ आप ही जानते हैं। स्टाफ का कोई और आदमी इस बारे में अभी


कुछ नहीं जानता ।" "लेकिन षडयंत्र किस किस्म का है और उसका क्या परिणाम हो सकता है, ये तो बताइए ।”


"अगर यही आपको पता चल गया।” दीवान हंसकर बोले- तो फिर छानबीन करने के लिए रह ही क्या जाएगा। वैसे हम जितना जानते थे, आपको बता दिया।"


इसके बाद जाने के लिए उठ खड़े हुए दीवान। सोनेकर ने उन्हें जलपान के लिए रोकना चाहा, मगर वे नहीं रुके। उनके जाने के बाद सोनेकर का चेहरा सोचपूर्ण होता चला गया।


 मे आई कम इन सर?" अंजुमन ने दरवाजे पर ठिठकर


पूछा


अपने चैम्बर में बैठे विनोद ने अपना चेहरा ऊपर उठाया, फिर बोला- "इजाजत लेने की जरूरत नहीं। सीधी चली आया करो।"


"थैंक्यू सर ।" कहकर अंजुमन भीतर आ गई। "बैठो ।" विनोद बोला ।


अंजुमन बैठ गई और फिर बोली- "आपके पास जो कॉल आई थी वह किसी एस. टी.डी. बूथ से आई थी।"


"कौन-से एस.टी.डी. बूथ थे "कृष्णा कॉलोनी में है सर ।" जवाब मिला कोई नरेश नाम का आदमी चलाता है।"


"तुमने पूछा, फोन करने वाला कौन था?"


"जी हां उसका कहना है कि वह कोई दाढ़ी मूंछों वाला नौजवान था उसकी आंखों पर सुनहरी तारों वाला चश्मा था लेकिन उसे उसने पहली बार देखा था।"


"वह आया किस पर था?क्या वाहन था उसके पास?"


"नरेश का कहना है कि वह पैदल ही बुथ तक आया था। या तो उसके पास कोई वाहन था ही नहीं। अगर था, तो वह उसे इधर-उधर खड़ा करके आया था।”


मैंने हर हाल में उसका पता लगाना है। तुम दुच्चा सिंह को बुलाओ।"


"दुच्चा सिंह ?"


"सरदार दुच्चा सिंह । तुम जानती नहीं उसे?" "एक सरदार आया तो था यहां, लेकिन ... "


"लेकिन क्या?"


"वह तो शायद कोई सफाई कर्मी था?" “क्या कह रही हो?"


"वह तो यहां आते ही हमारी टेबल्स पर से झूठे कप उठा ले गया। फर्श पर पोंचा लगा गया। यहां तक कि मेरे सैंडल भी साफ कर गया। मैंने रोका तो कहने लगा कि यह तो हमारा कर्त्तव्य है। मनुष्य का जन्म पाकर मनुष्य की सेवा नहीं की तो विरथा ही जन्म गंवाया।"


"ओह माई गॉड।” विनोद माथे पर हाथ मारकर बोला- "अरे, वह कोई सफाई कर्मचारी नहीं है। एडवोकेट टुच्चा सिंह है।"


"क...क... क्या?"


"जाकर देखो उसे। मेरा ख्याल है, टुच्चा सिंह उस दढ़ियल का पता लगा सकता है।"


"मैं अभी उसे ढूंढ़ती हूं सर।" कहकर अंजुमन वहां से चल पड़ी।