Vakil ka Showroom - 3 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 3

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वकील का शोरूम - भाग 3

"फिर तो आप यह भी जानती होंगी कि हनुमान बिल्कुल वाजिब फीस लेता है जो कहता है, वही करता है।"


“मैं इस बात को भी जानती हूं।"


"इस शहर मे तहलका मचने वाला है मैडम ।" हनुमान धीरे से बोला- तैयार हो जाइए।"


मैं तैयार हूं।"


तो फिर इंतजार कीजिए मेरा या मेरे फोन का। अगली खबर कभी भी आ सकती है।”


युवती ने अपनी गर्दन को एक बार फिर जुम्बिश दी। हनुमान ने अपने दाएं हाथ की एक उंगली से अपने माथे को छुआया, फिर फुदकता हुआ ड्राइंगरूम से बाहर निकल गया।


उसके जाते ही युवती वहां रखे फोन पर झपट पड़ी।


शाम ढल चुकी थी।


बैरिस्टर विनोद अपनी नई-नकोर इंडिका को ड्राइव करता हुआ जिस इमारत के निकट पहुंचा, वह शहर आगरा का जाना माना पागखाना था।


पार्किंग में कार खड़ी करने के बाद वह पागलखाने के भीतरी द्वार की ओर बढ़ा, लेकिन इससे पहले कि वह द्वार तक पहुंच पाता, उसे अपने पीछे एक जाना पहचाना स्वर सुनाई पड़ा हैलो बैरिस्टर ।"


विनोद ठिठका, फिर पलट गया।


उसे कुछ ही कदमों की दूरी पर डॉक्टर प्रकाश सोनेकर दिखाई दिया। पागलखाने का एक डॉक्टर


देखने में गोरा चिट्टा, लाल गुलाल चेहरे वाला, बिल्कुल किसी जवान व स्वस्थ अंग्रेज जैसा


"ओह! हैलो डॉक्टर ।" विनोद ने आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लिया कहिए, कैसे हैं आप?"


बड़े ही दिलकश अंदाज में मुस्कराया डॉक्टर सोनेकर, फिर बोला- "हमारी हालत का अंदाजा लगाना कौन-सा मुश्किल काम है। जो लोग जानवर पालते हैं, उनके साथ रहते हैं, वैसे ही बन जाते है। हम दिन-रात पागलों के साथ रहते है इसलिए हमारी हालत भी पागलों से कौन-सी जुदा होगी।"


आप मजाक कर रहे हैं।" करना पड़ता है। अगर मजाक न करेंगे, हंसेगे बोलेंगे नहीं तो सचमुच पागल हो जाएंगे।


विनोद ने सहमति में गर्दन हिला दी।


रेणु से मिलने आए हो?" तभी डॉक्टर की आवाज एकाएक गंभीर हो गई।


और यहां है ही कौन, जिससे मिलने यहां आ सकूं।" विनोद गर्दन झुकाकर बोला आप जानते तो है सब ।"


जानता हूँ, तभी तो तुम्हें यहां आने से मना करता हूँ। डरता हूँ, कहीं किसी दिन वह तुम्हारी गर्दन न दबा दे। वह पागल ही नहीं है, खतरनाक पागल है। उसके करीब जाना भी खतरे से खाली नहीं है।"


यह बात आप कई बार मुझे बता चुके है।" लेकिन तुम पर फिर भी कोई असर नहीं हुआ।" आप अच्छी तरह जानते हैं, यहां आना मेरी मजबूरी है। आप चाहे लाख मना करें, मुझे यहां आना ही होगा।"


तुम भावनाओं की से में बह रहे हो, जो कभी भी खतरनाक साबित हो सकता है।"


अब छोडिए भी इस बात को। मुझे रेणु से मिलने की इजाजत दीजिए।" मैं इजाजत नहीं दूंगा, तो क्या तुम नहीं मिलोगे।"


"मुझे मिलने में बहुत मुश्किल होगी। किसी वरिष्ठ अधिकारी का सिफारशी पत्र लाना होगा, लेकिन फिर भी अंतिम इजाजत तो आपसे ही लेनी होगी।"


"मैं तुम्हें नहीं रोक सकता।" सोनेकर एक गहरी सांस लेकर बोला- "लेकिन हर बार की तरह फिर कहूंगा कि उसके नजदीक न जाना। दूर से ही देखना। उससे ऐसी कोई बात न करना, जिससे उसे गुस्सा या जोश आए।"


"मुझे आपकी हिदायत याद रहेगी।"

ज्यादा देर वहां न रुकना। इससे तुम्हारे दिमाग पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।" आप फिक न करें डॉक्टर थैंक्यू फॉर द काईंड


ऑपरेशन


इसके बाद सोनेकर से हाथ मिलाकर विनोद उस गैलरी की ओर बढ़ चला, जो पागलखाने के सबसे खतरनाक कैदियों की ओर जाती थी। वह गैलरी अंधेरे में डूबी दिखाई दे रही थी। या तो वहां प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं थी या फिर वहां के संसाधन निष्क्रिय हो चुके थे।


मगर विनोद को इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी। D


उसने बदन पर ऑरेंज शार्ट प्यूनिक पहन रखा था जिसके


नीचे फ्लोरल प्रिंट का टॉप झांक रहा था। उसी से मैच करता उसने अपने बालों में बैंड लगा रखा था। चेहरे पर पड़ रही चंद्रमा की किरणों में उसका सौंदर्य और निखर आया था।


उसकी स्कूटी देखते ही दरबान ने बंगले का गेट खोल दिया


था तथा सैल्यूट मारकर पीछे हट गया था। फिर तेजी से स्कूटी ने भीतर प्रवेश किया था तथा वह पार्किंग में जाकर रुकी थी।


इसके कुछ ही क्षणों बाद वह सुंदर युवती निःसंकोच बंगले के भीतरी भाग में प्रवेश कर गई। सीढ़ियां चढ़कर वह पहली मंजिल पर पहुंची तथा उसने एक बंद दरवाजे पर धीरे से दस्तक दी।


कौन?" अंदर से एक मर्दाना स्वर उभरा।


अंजुमन ।" युवती ने जवाब दिया।


दरवाजा खटखटाने की क्या जरूरत है।" भीतर से


आवाज आई चली आओ।


युवती ने निःसंकोच भीतर प्रवेश किया


भीतर एक आरामकुर्सी पर अधलेटी मुद्रा में एक युवक बैठा था। उसकी दाढ़ी मूँ भरा चेहरा गंभीर था तथा सोचपूर्ण


मुद्रा में था। हैलो अंजुमन!" वह बोला- हाउ आर यू?"


"आई एम फाइन ।" वह युवती व्यावसायिक अंदाज में मुस्कराकर बोली- "एंड हाउ आर यू?"


"आई एम आलसो फाइन ।"


क्या हो रहा है?"


तुम देख तो रही हो। खाली बैठा हूं । कुछ भी नहीं कर रह


जब तुम खाली बैठते हो, कुछ करते दिखाई नहीं देते तो


उसका साफ-सा मतलब है कि तुम किसी बहुत ही गंभीर बात पर चिंतन कर रहे हो।”


बहुत कुछ जान गई हो मेरे बारे में।"


"यह तो औरत जात की फितरत है। जिससे मिलती है, उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने कि कोशिश करती है। जबकि पुरुष... ।"


पुरुष भी कई प्रकार के होते हैं।” युवक उसकी बात काटकर बोला- "इसलिए सबके लिए एक ही जैसी टिप्पणी मत करना।”


"नहीं करूंगी। अब बोलो, किसलिए बुलाया था मुझे ?”


क्या बिना किसी काम के मैं तुम्हें नहीं बुला सकता?" "नहीं। तुम जानते तो हो, यह मेरे धंधे का वक्त है। कुछ कमाऊंगी नहीं तो खाऊंगी क्या?"


बुकिंग है?"


“हां पांच हजार में। खाना-पीना, शराब-कबाब सब फ्री ।


कस्मटर खुश हो गया तो इनाम भी ।”


"अभी जाना है?"


"इतनी जल्दी भी नहीं है। थोड़ी देर रुक सकती हूं।”


तो रुक जाओ।"


"कोई खास बात है?"


“एक बहुत जरूरी काम में तुम्हारी मदद की जरूरत है। कर सकोगी?"


युवती का चेहरा गंभीर हो गया। उसने आहत भाव से युवक


की ओर देखा।