सुहागरात
पहली रात की उलझनें
शुरुआत
शादी की रौनक खत्म हो चुकी है। दिनभर की भागदौड़ और रस्मों के बाद घर के सभी लोग थके हुए हैं। हवेली का आंगन अब शांत है, लेकिन दुल्हन का कमरा खास तैयारी से सजा हुआ है।
कमरे के अंदर, गुलाब की पंखुड़ियां बिस्तर पर बिखरी हुई हैं। दीवारों पर हल्की सुनहरी रोशनी फैलाने वाली मोमबत्तियां जल रही हैं। खिड़की से ठंडी हवा आ रही है। यह वो खास रात है, जिसका ज़िक्र सबने मज़ाक में दिनभर किया था।
रवि दरवाजे के पास खड़ा है। उसने अभी तक कमरे में कदम नहीं रखा। उसकी सांसें तेज़ चल रही हैं। दुल्हन कविता अंदर बिस्तर पर बैठी है, दुपट्टा सिर पर ठीक से ओढ़े हुए। उसका दिल भी तेज़ी से धड़क रहा है।
रवि आखिरकार कमरे के अंदर आता है और दरवाजा धीरे से बंद कर देता है। कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा जाती है। वह थोड़ी दूरी पर खड़ा रहता है। कविता की नज़रें झुकी हुई हैं।
रवि: (धीमी आवाज में) तुम्हें... आराम करना होगा, दिनभर की थकान होगी।
कविता: (हल्की मुस्कान के साथ) और तुम्हें नहीं हुई?
रवि पहली बार उसकी आवाज सुनकर हल्का-सा मुस्कुराता है। वह कमरे के कोने में रखे पानी के जग से खुद के लिए पानी डालता है और उसे भी ऑफर करता है।
रवि: (हिचकिचाते हुए) पानी लोगी?
कविता: (मुस्कुराते हुए) हां, पिला दो।
रवि उसके पास जाता है। पहली बार उनके बीच की दूरी कम होती है।
जब रवि कविता को पानी का गिलास पकड़ाता है, उनके हाथ थोड़े से छू जाते हैं। दोनों के दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं। रवि जल्दी से पीछे हट जाता है और खुद को संभालने की कोशिश करता है।
रवि: (मजाक करते हुए) तुम्हें तो डर नहीं लग रहा?
कविता: (मुस्कुराते हुए) डर तो मुझे तब लगता अगर तुम इतने शरीफ नहीं होते।
दोनों इस हल्की-फुल्की बातचीत पर हंसने लगते हैं। कमरे का माहौल थोड़ा हल्का हो जाता है।
रोमांस की शुरुआत
रवि कविता के करीब बैठता है।
रवि: (धीमी आवाज में) तुम्हें देखकर ऐसा लगता है कि तुम बहुत समझदार हो... और मैं?
कविता: (मजाकिया अंदाज में) तुम... थोड़े डरपोक लगते हो।
रवि हंस देता है। वह कविता की आंखों में देखता है।
रवि: (धीमे स्वर में) तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।
कविता शरमा जाती है। रवि धीरे-धीरे उसका हाथ पकड़ता है। कविता थोड़ी झिझकती है, लेकिन रवि उसे आराम महसूस कराता है।
रवि कविता को थोड़ा करीब खींचता है।
रवि: (धीरे से) अगर तुम्हें बुरा लगे, तो मना कर देना।
कविता: (धीमी आवाज में) मैं तुम्हें समझने की कोशिश कर रही हूं...
रवि उसकी तरफ झुकता है। उसकी सांसें कविता की गर्दन पर महसूस होती हैं। कविता आंखें बंद कर लेती है। रवि उसके माथे पर एक हल्का चुंबन देता है।
कविता: (धीमे स्वर में) मुझे डर लग रहा है।
रवि: (प्यार से) मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।
कविता रवि को थोड़ा और करीब खींच लेती है। दोनों के बीच का अंतर खत्म होने लगता है। कमरे में केवल मोमबत्ती की हल्की रोशनी और उनकी धीमी सांसों की आवाज सुनाई देती है।
रवि धीरे-धीरे कविता को बिस्तर पर बैठा लेता है। उसकी उंगलियां कविता की पीठ पर धीरे-धीरे सरकने लगती हैं। कविता रवि के चेहरे को छूती है। दोनों के बीच एक अजीब सी कनेक्शन महसूस होती है।
गुलाब की खुशबू पूरे कमरे में फैल जाती है। रवि कविता को सहलाते हुए उसे अपने करीब लाता है। दोनों एक-दूसरे में खो जाते हैं।
रात खत्म होने के बाद सुबह की हल्की रोशनी खिड़की से कमरे में आती है। रवि और कविता एक-दूसरे की बाहों में आराम कर रहे हैं। यह उनकी नई जिंदगी की शुरुआत का पहला कदम था।