( बीते न रैना )
उपन्यास की छेवी किश्त चल रही है, कितना सकून था, पहले जो समय थे, शहर तब भी सोता नहीं था, आज तो बिलकुल नहीं सोता है... पैसे के लेन देन ने बस आदमी की मत मार डाली है, हर किसी को बस पैसा चाहिए... वो भी बिना मेहनत का।
फिरोज के चेहरे पर सलवटे उबर आयी। आखिर चाहते कया थे, जिनकी वो गिरफ्त मे था। आज वो कहा था, ये सोचना उसको आपने बारे मे बहुत अजीब करता था। साल 2020 मार्च का महीना पांच साल से वो बंदी था... आपने ही देश मे... या कुछ सोचना बंद हो जाता है।
घर और दोस्तों के लिए वो मर चूका था। वो पाकिस्तान मे था, जासूस समझ के उसे पकड़ा हुआ था। ये खबर कभी बाहर आयी थी। कब... शायद कभी नहीं...
उसका दोस्त मदन जिसने उसको ढूढ़ने का बहुत प्रयास किया था। वो जीवन तक भी पंहुचा था। पर वो लेडी बबीता भी दो साल से लापता थी। बहुत प्रयास करके वो दुसपन समझ के भूल चूका था। फिरोज की मदर बूढ़ी और मरने की कगार पर थी... कल फांसी लगेगी। जर्नल ने कहा एक बार अख़बार मे पिक्चर दे दो। खबरनामे मे लगा दो, छोड़ना तो इसे कभी नहीं है।
उसे पांच साल बाद पता चला वो पाकिस्तान मे है, कैसे... कयो.... जासूस.... किसका.... बोलना बेकार था।
ठीक 4 वजे फांसी दे दी गयी। जासूस भारती एक फांसी दे के मारा गया। खबर हेड लाइन पे थी।कौन????? हेडकवाटर को खबर गयी.... पांच साल से बंदी को फांसी, कैसे हो गयी। कौन है ये फिरोज....
पता चला... तो जमीन निकल गयी... पैरो नीचे... ये सच्ची स्टोरी पे लिख रहा हू... कयो, कैसे, वो लपेट मे आ गया... जांच शुरू.... अमृतसर मे दादके थे... भैसे चराते चराते... कब पाकिस्तान निकल गया... 2015 मे....
मदन से बाते करता करता... कब कया हो गया। गिरफ्त.... इतनी कस के हुई... भागने का सवाल ही नहीं था... उम्र 50साल.... हैरत अंगेज कारनामा...
तभी गर्म गर्म चाये फिरोज के मुँह पे पड़ी... वो हूब के बैठ गया... उसे मुँह जले का नहीं... खाब का ख़याल करके कापने लगा था.... दिमाग़ मिसयूज हो रहा था जैसे। घबरा के बोला... " कहा हू मैं। " भईया घर पर हो। " सरला ने उच्ची से कहा। सरला ने थोड़ा घबराते हुए पूछा, " कया हुआ, भाई। "
सच मे बताओ, मदन कहा है, साल कौन सा है।
"अरे कया हुआ , साल 1980 चल रहा है भाई.. मदन की कल ही कार एक्सीडेंट मे बम्बे मे मौत हो गयी..." जैसे फिरोज घूम गया। चक्र आ गया। " नहीं झूठ है " मानने को तैयार ही नहीं था। " मै शिमले गया था या नहीं। "
बहन घबरा गयी। " नहीं गए, तुम कैसे ज़ा सकते हो, भाई दोनों टागे नहीं है... पोलियो से मारी गयी थी। "
" मदन कौन था। " सरला को उसने थोड़ा सास सा लेकर पूछा। " भाई तुम बेतुके से सवाल कयो कर रहे हो, कहती हू न मैं, ये नॉनसेन्स कहानीया मत पढ़ा करो। " फिर कमरे मे स्नाटा था। वो जान चूका था, सब उसके मन का ख़याल है, आज के बाद कोई कहानी नहीं पढ़ोगा... और डॉ की राये लुगा... अक्सर मुझे हो कया जाता है। 🙏🏻
(समाप्ति ) ---------------------------------नीरज शर्मा।