बीते ना रैना..
(5)
एक रुके पे कुछ लिखा ऊपर से गिरा.... लिपस्टिक से लिखा था " तुम से बात करनी है, एसटीडी नम्बर दे दिया"... उसको कुछ अजीब तो नहीं... पर परेशान सा हो कर खड़ा हो गया.. और बोला, " कया नाम है तुम्हारा, कहा रहती हो... "
वो मुस्कराहट भरे लहजे मे बोली, " मेरा घर शिमला और चाचा के लडके की शादी पे ज़ा रही हू। " एक बुजर्ग बीच मे आ गया... कोई हद होती है, जिंदगी मे, बेशर्मी की। " जैसे उसने उनको सुना दिया हो।-----" बाबा जी आपका भी टाइम था। " तेश मे बोला फिरोज... " कया बेटा उच्चा -----सुनता है। " वो जैसे बैठ गया आपनी सीट पर गुप चुप...
उसके मखमली हाथ, " हाय मर जाऊ। " साथ बैठे मुसाफिर लडके ने कहा। " फिरोज को हसी आ गयी। उसने पता नहीं झूठ कहा पता नहीं सच बबीता उसका नाम था।
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ट्रेन मे चेकिंग चल रही थी। हर बैग देखा ज़ा रहा था। जो आटेची के साथ बैग था पूछा उन्होने ने ----" किसका है,"----- फिरोज ने कहा ---" हमारा तो है नहीं.... " साभधान सर "----" किसका है, ये जल्दी बोलो। " कास्टेवल ने कहा। बजुर्ग ने कहा, " साथ वाले महाशे का ज़नाब... जान कर बोल नहीं रहा....
फिर दूसरा भी जैसे भड़ास निकाल के बोला, " यही है सर। "
रुकिए..... "फिरोज खड़ा होकर बोला, मेरा कोई दस्तावेज कोई मालिक होगा इसका... मुझे कया मालम..." सब कमबख्तो ने भड़ास निकाली सब हसीना फसने के चक्र मे... बहुत मन दुखी हुआ, और आगे कया लिखा था... अनजल पुकारे, दिल्ली दूर नहीं....
एक झटका लगा, फिरोज को... " "जाली करसी जनाब " कास्टेबल ने एक दम से रोब से कहा। " अब तेरा कुछ नहीं हो सकता... जाली भाई... हथ कड़ी डालो "
"ठहरो साहब --- ये सुरीली आवाज बर्थ से आयी। कास्टबेल ने कहा " हाँ बोलो मैडम!"
---बैग इसका नहीं है --- मैं इतनी देर से देख रही हू, तुम समझते ही नहीं बात " उसने ए स ई की तरफ डाट ते हुए कहा। " मैडम आपकी तारीफ " ----- मुस्कराते हुए उसने एड़टी विकेशन के लिए कार्ड दिया।" साभधान "
" सॉरी मैडम, ये फिर किसका है.. " दिल्ली आगे बीस मिनट का ठिकाना था। " दिल्ली मे एक जीवन नाम का कुली है... जीवन ही था वो, उसने फिरोज की तरफ देखा। फिरोज की सीटी बीटी गुम हो गयी थी। " जी जीवन ही था। " मैडम " आप किस स्टेशन पे ज़ा रही है। " चुप हो चूका था, सब गुपचुप जयादा हो गए थे। सब को जैसे पता लग गया हो, बड़ा अफसर, गाड़ी मे है। " करसी जाली जो है, हम जीवन जो हाथ छुड़ा के भाग निकला... यही बयान कर डाल दे मैडम... " ----" अगर चाहते हो, तो सिग्नेचर करा लो, रिपोर्ट पकी हो जाएगी...
तभी लेडी पत्रकार ने पूछा, " आप को कया मिला...." ये 2020 चल रहा था। " आपनी जुबा को लुगाम दो। " एक गोली इतनी तेज निकली दिमाग़ को चीर कर आगे जीप चलाने वाले के कंधे पे लगी थी! रास्ते की हालत खराब जयादा थी। गंजे का सिर लिश्का सूरज की रौशनी मे। पत्रकार तो सदा के लिए चुप हो गयी थी। अगले दिन ही बजार के बजार दुकाने बंद हो गयी थी। इतना जलूस निकला था, पूछो मत। ये गोलिओ की आवाजे रिकॉर्ड और मूवी बन चुकी थी। कितना गलत हो रहा था, पत्रकार को कयो मारा गया। बस यही गुथी थी।
नीरज शर्मा --------------------------------- ( चलदा )